Book Title: Sramana 2010 01
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 239
________________ गुजराती अनुवाद : तेना वचन सांभलीने सुधर्मसूरिजीए विचार्युह, अहो! आ जगतमां अति दुरंत दुःखे दूर था वो विषयराग केवो विलसी रह्यो छे! हिन्दी अनुवाद : उसके वचनों को सुनकर सुधर्मसूरिजी ने विचार किया, अहो ! इस जगत् में अति दुरन्त दु:ख से दूर हो, ऐसा यह विषय - राग कैसा विलस रहा है? गाहा : एवं पि ता दिज्जउ पव्वज्जा ताहि गहिय- सुत्तत्थो । सयमेव विवेग- जुओ उज्झिस्सइ राग- संबंधं ।। १७२।। संस्कृत छाया : एवमपि तावद् दीयतां प्रव्रज्या तदा गृहीतसूत्रार्थः । स्वयमेव विवेकयुक्त उज्झिष्यति रागसम्बन्धम् ।। १७२ ।। गुजराती अनुवाद : ते विषयमा रागी छे छतां पण तेने दीक्षा अपाय, दीक्षा ग्रहण बाद सूत्रार्थमां निपुण थयेलो - विवेकी ते जाते ज रागना संबंधने छोडी देशे । हिन्दी अनुवाद : यह विषय में रागी है, फिर भी इसे दीक्षा दी जा सकती है, दीक्षा ग्रहण करने के बाद सूत्रार्थ में निपुण हुआ यह विवेकी स्वयं ही राग के सम्बन्ध को छोड़ देगा। (धनवाहननी भार्या सहित प्रव्रज्या ) गाहा : एवं विचिंतिऊणं अणंगवइयाए संजुओ ताहे । धणवाहणो स-भाया गुरुणा पव्वाविओ विहिणा ।। १७३ ।। चंदजसा - नामाए मयहरियाए समप्पिया सावि । साहुणि-गण-मज्झ गया सिक्खइ वर साहुणी - किरियं ।। १७४।। - संस्कृत छाया : एवं विचिन्त्यानङ्गवत्या संयुक्तास्तदा । धनवाहनः सभार्यः गुरुणा प्रव्राजितो विधिना । । १७३ । । 580

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