Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Paramatma Prakash in Apabhransha 22) जासु ण धारणु धेउ ण वि जासु ण जंतु ण मंतु ।
जासु ण मंडलु मुद्द ण वि सो मुणि देउँ अणंतु ॥ २२ ।। 23) वेयहि सत्यहिं इंदियहि जो जिय मुणहु ण जाइ ।
णिम्मल-झाणहँ जो विसउ सो परमप्पु अणाइ ॥ २३॥ 24) केवल-दसणणाणमउ केवल-सुक्ख-सहाउ ।
केवल चीरिउ सो मुणहि जो जि परावर भाउ ॥ २४ ॥ 25) एयहि जुत्तउ लक्खणहि जो परु णिकलु देउ ।
सो तर्हि णिवसइ परम-पइ जो तइलोयहँ झेउ ॥ २५ ॥ 26) जेहउ णिम्मलु णाणमउ सिद्धिहि णिवसइ देउ ।
तेहउ णिवसइ बंसु परु देहहँ मं करि भेउ ॥ २६॥ 27) में दिखें तुटंति लहु कम्मइँ पुन्च-किया। • सो परु जाणहि जोइया देहि वसंतु ण काइँ ॥ २७ ॥ 28) जित्यु ण इंदिय-सुह-दुहइँ जित्थु ण मण-वावारु ।
सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ अण्णु परि अवहारु ॥ २८ ॥ 29) देहादेहहि जो वसइ भेयाभेय-णएण ।
सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ कि अण्णे बहुएण ॥ २९ ॥ 30) जीवाजीव म एक करि लक्खण-भेएँ भेउ ।
जो परु सो परु भणमि मुणि अप्पा अप्पु अभेउ ॥ ३० ॥ 31) अमणु अणिदिउ णाणमउ मुत्ति-विरहिउ चिमित्तु ।
अप्पा इंदिय-विसउ णवि लक्खणु एहु णिरुत्तु ॥ ३१ ॥ 32) भव-तणु-भोय-विरत्त-मणु जो अप्पा झाएइ ।
वासु गुरुक्की वेल्लडी संसारिणि तुट्टेइ ॥ ३२ ॥
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