Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 142
________________ 128 ... Spiritual Enlightenment 122) राएँ रंगिए हियवडए देउ ण दीसइ संतु। - दप्पणि मइलए विंबु जिम एहउ जाणि णिमंतु ॥ १२०॥ 123) जसु हरिणच्छी हियवडए तमु णवि बंभु वियारि । एकहिँ केम समंति बढ बे खंडा पडियारि ॥ १२१ ॥ 124) णिय-मणि णिम्मलि णाणियहँ णिवसइ देउ अणाइ । इंसा सरवरि लीणु जिम महु एहउ पडिहाइ ॥ १२२ ॥ 125) देउ ण देउले णवि सिलए णवि लिप्पइ णवि चित्ति । अखउ णिरंजणु णाणमउ सिउ संठिउ सम-चित्ति ॥ १२३ ॥ 126) मणु मिलियउ परमेसरहँ परमेसरु वि मणस्स। बीहि वि समरसि-हवाइ पुज्ज चडावउँ कस्स ॥ १२३२॥ 127) जेण णिरंजणि मणु धरिउ विसय-कसायहिँ जंतु । मोक्खर कारणु एत्तडउ अण्णु ण तंतु ण मंतु ॥ १२३५३ ॥ [२. बिजउ अहियार ] 128) सिरिगुरु अक्खहि मोक्खु महु मोक्खहँ कारणु तत्यु । मोक्खहँ केरउ अण्णु फलु जे जाणउँ परमत्यु ॥१॥ 129) जोइय मोक्खु वि मोक्ख-फलु पुच्छिउ मोक्खहँ हेउ । । सो जिण-मासिउ णिसुणि तुहुँ जेण वियाणहि भेउ ॥२॥ 130) धम्माँ अत्यहँ कामहँ वि एयहँ सयलहँ मोक्खु । उत्तमु पभणहिणाणि जिय अण्णे जेण ण सोक्खु ॥३॥ 131) जइ जिय उत्तमु होइ णवि एयह सयलहँ सोइ । तो किं तिणि वि परिहरवि जिण वञ्चहि पर-लोइ ॥ ४ ॥ 132) उत्तमु सुक्खु ण देइ जइ उत्तमु मुक्खु ण होइ । तो किं इच्छहिं बंधणहिँ बद्धा पसुय वि सोइ ॥ ५॥

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