Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 145
________________ 131 Paramatma Prakash in Apabhransha .156) जं जह थकउ दव्यु जिय तं तह जाणइ जो जि। अप्पहं केरउ भावडउ गाणु मुणिजहि सो जि ॥ २९ ॥ 157) जाणवि मण्णवि अप्पु परु जो पर-भाउ चएइ । सो णिउ सुद्धउ भावडउ णाणिहि चरणु हवेइ ॥ ३० ॥ 158) जो भत्तउ रयणत्तयहँ तमु मुणि लक्खणु एउ । अप्पा मिल्लिवि गुण-णिलउ तासु वि अण्णु ण झेउ ॥ ३१ ॥ 159) जे रयणत्तउ णिम्मलउ णाणिय अप्पु भणंति । ते आराहय सिव-पयहँ णिय-अप्पा झायति ॥ ३२ ॥ 160) अप्पा गुणमउ णिम्मलउ अणुदिणु जे झायति । ते पर णियमे परम-मुणि लहु णिव्वाणु लहंति ॥ ३३॥ 161) सयल-पयत्यहँ जं गहणु जीवहँ अग्गिमु होइ । ' वत्थु-विसेस-विवज्जियउ तं णिय-दंसणु जोइ ॥ ३४ ॥ 162) दसण-पुव्वु हवेइ फुड जं जीवहँ विष्णाणु । वत्थु-विसेसु मुणंतु जिय तं मुणि अविचलु णाणु ॥ ३५ ॥ 163) दुक्खु वि सुक्खु सहंतु जिय णाणिउ झाण-णिलीणु । कम्महँ णिज्जर-हेउ तउ वुच्चइ संग-विहीणु ॥ ३६ ॥ 164) कायकिलेसे पर तणु झिज्जइ विणु उवसमेण कसाउ ण खिज्जइ। ण करहि इंदिय मणह णिवारणु उग्गतवो वि ण मोक्खह कारणु ॥ ३६*१ ॥ 165) अप्प-सहावे जासु रइ णिचुववासउ तासु । बाहिर-दव्वे जासु रइ भुक्खुमारि तासु ॥ ३६१२ ॥ 166) बिण्णि वि जेण सहंतु मुणि मणि सम-भाउ करेइ । पुण्णहँ पावहँ तेण जिय संवर-हेउ हवेइ ॥ ३७॥

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