Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Spiritual Enlightenment 145) मुत्ति-विहूणउ णाणमउ परमाणंद-सहाउ ।
णियमि जोइय अप्पु मुणि णिचु णिरंजणु भाउ ॥१८॥ 146) पुग्गल छबिहु मुत्तु वढ इयर अमुत्तु वियाणि ।
धम्माधम्मु वि गयठियह कारणु पभणहि णाणि ॥ १९ ॥ 147) दवई सयलइँ वरि ठियइँ णियमें जासु वसंति ।
तं णहु दव्यु वियाणि तुहुँ जिणवर एउ भणंति ॥ २० ॥ 148) कालु मुणिज्जहि दव्वु तुहुँ वट्टण-लक्खणु एउ।
रयणहँ रासि विभिण्ण जिम तसु अणुयहँ तह भेउ ॥ २१ ॥ 149) जीउ वि पुग्गल कालु जिय ए मेल्लेविण दव्व ।
इयर अखंड वियाणि तुहुँ अप्प-पएसहि सन्च ॥ २२ ॥ 150) दव्य चयारि वि इयर जिय गमणागमण-विहीण ।
जीउ वि पुग्गल परिहरिवि पभणहि णाण-पत्रीण ॥ २३ ॥ 151) धम्माधम्मु वि एकु जिउ ए जि असंख-पदेस ।
गयणु अणंत-परसु मुणि बहु-विह पुग्गल-देस ॥ २४ ॥ 152) लोयागासु धरेवि जिय कहियइँ दम्बइँ जाइँ।
एकहि मिलियइँ इत्थु जगि सगुणहि णिवसहि” ताइँ ॥ २५ ॥ 153) एयइँ दव्वइँ देहियहँ णिय-णिय-कज्जु जणंति ।
चउ-गइ-दुक्ख सहंत जिय ते संसारु भमंति ॥ २६ ॥ 154) दुक्खहँ कारणु मुणिवि जिय दव्वहँ एहु सहाउ ।
होयवि मोक्खहँ मम्गि लहु गम्मिज्जइ पर-लोउ ॥ २७ ॥ .. 155) णियमे कहियउ एहु मइँ ववहारेण वि दिहि ।
एवहि णाणु चरित्तु मुणि जे पावहि परमेट्टि ॥ २८ ॥
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