SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 130 Spiritual Enlightenment 145) मुत्ति-विहूणउ णाणमउ परमाणंद-सहाउ । णियमि जोइय अप्पु मुणि णिचु णिरंजणु भाउ ॥१८॥ 146) पुग्गल छबिहु मुत्तु वढ इयर अमुत्तु वियाणि । धम्माधम्मु वि गयठियह कारणु पभणहि णाणि ॥ १९ ॥ 147) दवई सयलइँ वरि ठियइँ णियमें जासु वसंति । तं णहु दव्यु वियाणि तुहुँ जिणवर एउ भणंति ॥ २० ॥ 148) कालु मुणिज्जहि दव्वु तुहुँ वट्टण-लक्खणु एउ। रयणहँ रासि विभिण्ण जिम तसु अणुयहँ तह भेउ ॥ २१ ॥ 149) जीउ वि पुग्गल कालु जिय ए मेल्लेविण दव्व । इयर अखंड वियाणि तुहुँ अप्प-पएसहि सन्च ॥ २२ ॥ 150) दव्य चयारि वि इयर जिय गमणागमण-विहीण । जीउ वि पुग्गल परिहरिवि पभणहि णाण-पत्रीण ॥ २३ ॥ 151) धम्माधम्मु वि एकु जिउ ए जि असंख-पदेस । गयणु अणंत-परसु मुणि बहु-विह पुग्गल-देस ॥ २४ ॥ 152) लोयागासु धरेवि जिय कहियइँ दम्बइँ जाइँ। एकहि मिलियइँ इत्थु जगि सगुणहि णिवसहि” ताइँ ॥ २५ ॥ 153) एयइँ दव्वइँ देहियहँ णिय-णिय-कज्जु जणंति । चउ-गइ-दुक्ख सहंत जिय ते संसारु भमंति ॥ २६ ॥ 154) दुक्खहँ कारणु मुणिवि जिय दव्वहँ एहु सहाउ । होयवि मोक्खहँ मम्गि लहु गम्मिज्जइ पर-लोउ ॥ २७ ॥ .. 155) णियमे कहियउ एहु मइँ ववहारेण वि दिहि । एवहि णाणु चरित्तु मुणि जे पावहि परमेट्टि ॥ २८ ॥
SR No.022373
Book TitleSpiritual Enlightenment
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogindu Deva, A N Upadhye
PublisherRadiant Publishers
Publication Year2000
Total Pages162
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy