Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 153
________________ Paramatma Prakash in Apabhransha 139 247) जोइय लोहु परिचयहि लोहु ण भल्लउ होइ । लोहासत्तउ सयलु जगु दुक्खु सहंतउ जोइ. ॥ ११३ ।। 248) तलि अहिरणि वरि घण-वडणु संडस्सय लुंघोडु । लोहहँ लम्गिवि हुयवहहँ पिक्खु पडतउ तोडु ॥ ११४ ॥ 249) जोइय णेहु परिक्ष्यहि णेहु ण भल्लउ होइ । हासत्तउ सयलु जगु दुक्खु सहतउ जोइ ॥ ११५ ॥ 250) जल-सिंचणु पय-णिद्दलणु पुणु पुणु पीलण-दुक्खु । णेहह लग्गिवि तिल-णियरु जति सहतउ पिक्खु ॥ ११६ ॥ 251) ते चिय धण्णा ते चिय सप्पुरिसा ते जियंतु जिय-लोए। वोहह-दहम्मि पडिया तरंति जे चेव लीलाए ॥ ११७ ॥ 252) मोक्खु जि साहिउ जिणवरहि छंडिवि बहु-विहु रज्जु । भिक्ख-भरोडा जीव तुहुँ करहि ण अप्पउ कज्जु ॥ ११८ ॥ 253) पावहि दुक्खु महंतु तुहुँ जिय संसारि भमंतु । अट्ठ वि कम्मइँ णिहलिवि वचहि मुक्खु महंतु ॥ ११९ ॥ 254) जिय अणु-मित्तु वि दुक्खडा सहण ण सकहि जोइ । चउ-गइ-दुक्खहँ कारणइँ कम्मइँ कुणहि किं तोइ ॥ १२० ॥ 255) धंधइ पडियउ सयलु जगु कम्मइँ करइ अयाणु । मोक्खहँ कारणु एक खणु णवि चिंतइ अप्पाणु ॥ १२१ ॥ 256) जोणि-लक्खइँ परिभमइ अप्पा दुक्खु सहंतु । पुत्त-कलत्तहि मोहियउ जाव ण णाणु महंतु ॥ १२२ ॥ 257) जीव म जाणहि अप्पणउँ घरु परियणु तणु इट्छ । कम्मायत्तउ कारिमउ आगमि जोइहि दिछ ।। १२३ ॥

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