Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 160
________________ 146 Spiritual Enlightenment 329) घोरु करंतु वि तव चरणु सयल वि सत्य मुणंतु । परम-समाहि-विवन्जियउ गवि देक्खइ सिउ संतु ॥ १९१॥ 330) विसय-कसाय वि णिदलिवि जे ण समाहि करंति । ते परमप्पहँ जोइया णवि आराइय होति ॥ १९२ ॥ 331) परम-समाहि धरेवि मणि जे परवंभु ण जंति । ते भव-दुक्खइँ बहुविहहँ कालु अणंतु सहति ॥ १९३॥ 332) जामु सुहामुह-भावडा णवि सयल वि तुटुंति । परम-समाहि ण ताम मणि केवुलि एमु भणंति ॥ १९४ ॥ 333) सयल-वियप्पहँ तुट्टाहँ सिव-पय-मम्गि वसंतु । कम्म-चउकइ विलउ गइ अप्पा हुइ अरहंतु ॥ १९५।। 334) केवल णाणिं अणवरउ लोयालोउ मुणंतु । णियमें परमाणंदमउ अप्पा हुइ अरहंतु ॥ १९६॥ 335) जो जिणु केवल णाणमउ परमाणंद-सहाउ । सो परमप्पउ परम-परु सो जिय अप्प-सहाउ ॥ १९७॥ 336) सयलहँ कम्माँ दोसह वि जो जिणु देउ विभिण्णु। . सो परमप्प-पयासु तुहुँ जोइय णियमें मण्णु ॥ १९८॥ . 337) केवलन्दसणु णाणु मुहु वीरिउ जो जि अणंतु । सो जिण-देउ वि परम-मुणि परम-पयासु मुणंतु ॥ १९९ ॥ 338) जो परमप्पउ परम-पउ हरि हरु बंभु वि बुद्ध । परम-पयासु भणंति मुणि सो जिण-देउ विसुदु ॥२०॥ 339) प्राणे कम्म-क्खउ करिवि मुक्कउ होइ अणंतु । जिणवरदेवई सो जि जिय पणिउ सिद्ध महंतु ॥२०१॥

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