Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Spiritual Enlightenment 305) घोरु ण चिण्णउ तव चरणु जणिय-बोहहँ सार।
पुण्णु वि पाउ वि दड्डु णवि किमु छिज्जइ संसार ॥ १६७ ॥ 306) दाणु ण दिण्णउ मुणिवरहँ ण वि पुजिउ जिणणाहु ।
पंच ण वंदिय परम-गुरू किमु होसइ सिव-लाहु ॥ १६८ ॥ 307) अद्धम्मीलिय-लोयणिहि जोउ कि झंपियएहि ।
एमुइ लब्भइ परम-गइ णिचिंतिं ठियएहि ॥ १६९ ॥ 308) जोइय मिल्लहि चिंत जइ तो तुट्टइ संसारु ।
चिंतासत्तउ जिणवरु वि लहइ ण हंसाचारु ॥ १७० ॥ 309) जोइय दुम्मइ कषुण तुहँ भव-कारणि ववहारि ।
बंभु पवंचहिजो रहिउ सो जाणिवि मणु मारि ॥ १७१ ॥ 310) सबहिं रायहि छहि रसहि पंचहि रूवहि जंतु ।
चित्तु णिवारिवि शाहि तुहुँ अप्पा देउ अणंतु ॥ १७२ ॥ 311) जेण सरूवि झाइयइ अप्पा एहु अणंतु ।
तेण सरूवि परिणवइ जह फलिहउ-मणि मंतु ॥ १७३ ।। 312) एहु जु अप्पा सो परमप्पा कम्म-विसेस जायउ जप्पा ।
जामइँ जाणइ अप्पे अप्पा तामइँ सो जि देउ परमप्पा ॥ १७४ ॥ 313) जो परमप्पा णाणमउ सो हउँ देउ अणंतु ।
जो हउँ सो परमप्पु परु एहउ भावि णिभंतु ॥ १७५॥ 314) णिम्मल-फलिहहँ जेम जिय भिण्णउ परकिय-भाउ ।
अप्प-सहावहँ तेम मुणि सयलु वि कम्म-सहाउ ॥ १७६ ॥ 315) जेम सहाविं णिम्मलउ फलिहउ तेम सहाउ ।
भंतिए मइलु म मणि जिय मइलउ देवखवि काउ ॥ १७७ ॥ 316) रत्त वत्थे जेम बुहु देहु ण मण्णइ रत्तु ।
देहिं रत्तिं णाणि तहँ अप्पु ण मण्णइ रत्तु ॥ १७८ ॥
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