Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 157
________________ 143 Paramatma Prakash in Apabhransha 293) विसय-कसायहि मण-सलिलु णवि डहुलिज्जइ जासु । __अप्पा णिम्मलु होइ लहु वढ पञ्चक्खु वि तासु ॥ १५६ ॥ 294) अप्पह परह परंपरह परमप्पउह समाणु । परु करि परु करि परु जि करि जइ इच्छइ णिवाणु ॥ १५६११॥ 295) अप्पा परहँ ण मेलविउ मणु मारिवि सहस ति । सो बढ जोएँ किं करइ जासु ण एही सत्ति ॥ १५७ ॥ 296) अप्पा मेल्लिविणाणमउ अण्णु जे झायहि माणु। वढ अण्णाण-वियंभियहँ कउ तहँ केवल-णाणु ॥ १५८ ॥ 297) सुण्णउँ पउँ झायंताह वलि वलि जोइयडाहँ। समरसि-भाउ परेण सह पुण्णु वि पाउ ण जाहै ॥ १५९ ॥ 298) उन्यस वसिया जो करइ वसिया करइ जु मुण्णु । ' बलि किजउँ तसु जोइयहि जासु ण पाउ ण पुण्णु ॥ १६० ॥ 299) तुट्टइ मोहु तडित्ति जहि मणु अत्यवणहँ जाइ। सो सामिय उवएसु कहि अण्णे देवि काइँ ॥ १६१ ॥ 300) णास-विणिग्गउ सासडा अंबरि जेत्थु विलाइ । तुइ मोह तड ति तहि मणु अत्थवणहँ जाइ ॥ १६२ ॥ 301) मोहु विलिज्जइ मणु मरइ तुट्टइ सामु-णिसामु । केवल-णाणु वि परिणमड अंबरि जाहँ णिवासु ॥ १६३ ॥ 302) जो आयासह मणु धरइ लोयालोय-पमाणु । तुट्टइ मोहु तड ति तमु पावइ परहँ पवाणु ॥ १६४ ॥ 303) देहि वसंतु वि णवि मुणिउ अप्पा देउ अणंतु । अंबरि समरसि मणु धरिवि सामिय गठ्ठ णिभंतु ॥ १६५ ॥ 304) सयल वि संग ण मिल्लिया णवि किउ उवसम-भाउ । सिव-पय-मग्गु वि मुणिउ णवि जहि जोइहि अणुराउ ॥ १६६ ॥

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