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Paramatma Prakash in Apabhransha 293) विसय-कसायहि मण-सलिलु णवि डहुलिज्जइ जासु । __अप्पा णिम्मलु होइ लहु वढ पञ्चक्खु वि तासु ॥ १५६ ॥ 294) अप्पह परह परंपरह परमप्पउह समाणु ।
परु करि परु करि परु जि करि जइ इच्छइ णिवाणु ॥ १५६११॥ 295) अप्पा परहँ ण मेलविउ मणु मारिवि सहस ति ।
सो बढ जोएँ किं करइ जासु ण एही सत्ति ॥ १५७ ॥ 296) अप्पा मेल्लिविणाणमउ अण्णु जे झायहि माणु।
वढ अण्णाण-वियंभियहँ कउ तहँ केवल-णाणु ॥ १५८ ॥ 297) सुण्णउँ पउँ झायंताह वलि वलि जोइयडाहँ।
समरसि-भाउ परेण सह पुण्णु वि पाउ ण जाहै ॥ १५९ ॥ 298) उन्यस वसिया जो करइ वसिया करइ जु मुण्णु ।
' बलि किजउँ तसु जोइयहि जासु ण पाउ ण पुण्णु ॥ १६० ॥ 299) तुट्टइ मोहु तडित्ति जहि मणु अत्यवणहँ जाइ।
सो सामिय उवएसु कहि अण्णे देवि काइँ ॥ १६१ ॥ 300) णास-विणिग्गउ सासडा अंबरि जेत्थु विलाइ ।
तुइ मोह तड ति तहि मणु अत्थवणहँ जाइ ॥ १६२ ॥ 301) मोहु विलिज्जइ मणु मरइ तुट्टइ सामु-णिसामु ।
केवल-णाणु वि परिणमड अंबरि जाहँ णिवासु ॥ १६३ ॥ 302) जो आयासह मणु धरइ लोयालोय-पमाणु ।
तुट्टइ मोहु तड ति तमु पावइ परहँ पवाणु ॥ १६४ ॥ 303) देहि वसंतु वि णवि मुणिउ अप्पा देउ अणंतु ।
अंबरि समरसि मणु धरिवि सामिय गठ्ठ णिभंतु ॥ १६५ ॥ 304) सयल वि संग ण मिल्लिया णवि किउ उवसम-भाउ ।
सिव-पय-मग्गु वि मुणिउ णवि जहि जोइहि अणुराउ ॥ १६६ ॥