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________________ 142 Spiritual Enlightenment 281) घर-वासउ मा जाणि जिय दुक्किय वासउ एहु । पासु कयंते मंडियउ अविचल णिस्संदेहु ॥ १४४ ॥ 282) देहु वि जित्थु ण अप्पगउ तहि अप्पणउ कि अण्णु । पर-कारणि मण गुरुत्र तुहुँ सिव- संगमु अत्रगण्णु ॥ १४५ ॥ 283) करि सिव- संग एक पर जहि पाविज्जइ सुक्खु । जोइय अण्णु म चिंति तुहुँ जेण ण लब्भइ मुक्खु ॥ १४६ ॥ 284) बलि किउ माणुस - जम्मडा देवखंतहँ पर सारु । जइ उट्टभइ तो कुहइ अह डज्झइ तो छारु ॥ १४७ ॥ 285) उन्चलि चोप्पडि चिह्न करि देहि सु-मिट्ठाहार । देहहँ सयल रित्थ गय जिमु दुज्जणि उत्रयार ॥ १४८ ॥ 286) जेहउ जज्जरु गरय-घरु तेहउ जोइय काउ । res णिरंतरु पूरियउ किम किज्जइ अणुराउ || १४९ ॥ 287) दुक्ख पावइँ असुचियाँ ति हुयणि सयलइँ लेवि । यहि ँ देहु विणिम्मियउ विहिणा वहरु मुणेवि ॥ १५० ॥ 288 ) जोइय देहु घिगावणउ लज्जहि किं ण रमंतु । णाणि धमें रइ करहि अप्पा विमलु करंतु ॥ १५१ ॥ 289 ) जोय देहु परिचयहि देहु ण भल्लउ होइ । देह - विभिण्णउ णाणमउ सो तुहुँ अप्पा जोइ ।। १५२ ॥ 290) दुक्ख कारणु मुणिवि मणि देहु वि एहु चयंति । तित्थु ण पावहि परम- सुहु तित्थु कि संत वसंति ॥ १५३ ॥ 291) अप्पायत्तउ जं जि मुहु तेण जि करि संतोसु । पर हु वढ चिंता हियइ ण फिट्ट सोसु ॥ १५४ ॥ 292) अप्प णाणु परिचयवि अण्णु ण अत्थि सहाउ । इउ जाणेविणु जोहु परहँ म बंधउ राउ ।। १५५ ।
SR No.022373
Book TitleSpiritual Enlightenment
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogindu Deva, A N Upadhye
PublisherRadiant Publishers
Publication Year2000
Total Pages162
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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