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Paramatma Prakash in Apabhransha 270) जेण ण चिण्णउ तवयरणु णिम्मलु चितु करेवि ।
अप्पा वंचिउ तेण पर माणुस-जम्मु लहेवि ॥ १३५॥ 271) ए पंचिंदिय-फरहडा जिय मोकला म चारि ।
चरिवि असेसु वि विसय-वणु पुणु पाडहि संसारि ॥ १३६ ॥ 272) जोइय विसमी जोय-गइ मणु संठवण ण जाइ ।
इंदिय-विसय जि मुक्खडा तित्यु जि वलि बलि जाइ ॥ १३७ ॥ 273) सो जोइउ जो जोगवइ दंसणु णाणु चरितु ।
होयवि पंचहँ बाहिरउ झायंतउ परमत्थु ॥१३७१५ ॥ 274) विसय-सुहइँ बे दिवहडा पुणु दुक्खहँ परिवाडि ।
भुल्लउ जीव म वाहि तुहुँ अप्पण खंधि कुहाडि ॥ १३८ । 215) संता विसय जु परिहरइ बलि किज्जउँ हउँ ताम्।
सो दइवेण जि मुंडियउ सीसु खडिल्लउ जासु ॥ १३९ ।। 276) पंचहँ णायकु वसिकरहु जेण होंति वसि अण्ण ।
मूल विणइ तरु-वरहँ अवसइँ मुक्कहिँ पण्ण ॥ १४०॥ 277) पण्ण ण मारिय सोयरा पुणु छट्ठउ चंडालु।
माण ण मारिय अप्पणउ के व छिज्जइ संसारु ॥ १४०.१ ॥ 278) विसयासत्तउ जीव तुहुँ कित्तिउ कालु गमीसि ।
सिव-संगमु करि णिच्चलउ अवसइँ मुक्खु लहीसि ॥ १४१ ॥ 279) इहु सिक्संगम परिहरिवि गुरुवड कहि वि म जाहि ।
जे सिव-संगमि लीण णवि दुक्खु सहता वाहि ॥ १४२ ॥ 280) कालु अणाइ अणाइ जिउ भव-सायरु वि अणंतु ।
जीवि विणि ण पत्ताइँ जिणु सामिउ सम्मत्तु ॥ १४३ ॥