Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 159
________________ 145 Paramatma Prakash in Apabhransha 317) जिणि वत्यिं जेम बुहु देहु ण मण्णइ जिष्णु । देहि जिणि गाणि तहँ अप्पु ण मण्णइ जिष्णु ॥ १७९ ॥ _-318) वत्थु पणटइ जेम बुहु देहु ण मण्णइ गर्छ । णढे देहे गाणि तहँ अप्पु ण मण्णइ गठ्ठ ॥ १८० ॥ 319) भिण्णउ वत्थु जि जेम जिय देहहँ मण्णइ णाणि । देहु वि मिष्णउँ णाणि तहँ अप्पहँ मण्णइ जाणि ॥ १८१ ॥ 320) इहु तणु जीवड तुज्झ रिउ दुक्खइँ जेण जणेइ । सो परु जाणहि मित्तु तुहुँ जो तणु एह हणेइ ॥ १८२॥ 321) उदयहँ आणिवि कम्मु मइँ जं झुंजेवउ होइ।। तं सइ आविउ खविउ मइँ सो पर लाहु जि कोइ ।। १८३ ।। 322) पिठुर-वयणु सुणेवि जिय जइ मणि सहण ण जाइ । ' तो लहु भावहि बंभु परु जि मणु अत्ति विलाइ ॥ १८४ ॥ 323) लोउ विलक्खणु कम्म-वसु इत्थु भवंतरि एइ। चुज्जु कि जइ इहु अप्पि ठिउ इत्यु जि भवि ण पडेइ ॥ १८५॥ 324) अवगुण-गहणइँ महुतणइँ जइ जीवहँ संतोसु । तो तहँ सोक्खहँ हेउ हउँ इउ मण्णिवि चइ रोसु ।। १८६ ॥ 325) जोइय चिंति म किं पि तुहुँ जइ बीहउ दुक्खस्स । तिल-तुस-मित्तु वि सल्लडा वेयण करइ अवस्स ॥१८७ ॥ 326) मोक्खु म चिंतहि जोइया मोक्खु ण चिंतिउ होइ । जेण णिबद्धउ जीवडउ मोक्खु करेसइ सोइ ॥ १८८॥ 327) परम-समाहि-महा-सरहि जे बुड्डहि पइसेवि । अप्पा थक्कइ विमल तहँ भव-मल जंति बहेवि ॥ १८९॥ 328) सयल-वियप्पहँ जो विलउ परम-समाहि भणंति । तेण सुहासुह-भावडा मुणि सयल वि मेल्लंति ॥१९॥

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