Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Spiritual Enlightenment
258) मुक्खु ण पावहि जीव तुहुँ घरु परियणु चिंतंतु । तो वरि चिंतहि तउ जि तउ पावहि मोक्खु महंतु ॥ १२४ ॥ 259 ) मारिवि जीव लक्खडा जं जिय पाउ करीसि ।
पुत-कलत कारण तं तुहुँ एकु सहीसि ।। १२५ ॥ 260 ) मारिविचूरिवि जीवडा जं तुहुँ दुक्खु करीसि ।
तं तह पासि अनंत-गुणु अवसइँ जीव लहीसि ॥ १२६ ॥ 261) जीव वहत णरय - गइ अभय-पदाणे सम्गु ।
बे पह जवला दरिसिया जहि रुच्च वहि ँ लग्गु ॥ १२७ ॥ 262 ) मूढा सलु विकारिमउ भुलउ में तुस कंडि ।
सिव-परि णिम्मल करहि रह घरु परियणु लहु छंडि ॥ १२८ ॥ 263) जोइय सयलु विकारिमउ णिकारिमउ ण कोइ ।
जीवि जंतिं कुडि ण गय इहु पडिछंदा जोइ ॥ १२९ ॥ 264) देउलु देउ वि सत्थु गुरु तित्थु वि वेउ वि कबु |
बच्छु जु दीसह कुसुमियउ इंधणु होस सव्वु ॥ १३० ॥ 265 ) एक जि मेल्लिवि बंभु परु भुवणु वि एहु असेसु ।
पुहविहि ँ णिम्मिउ भंगुर एहउ बुज्झि विसेसु ॥ १३१ 266) जे दिट्ठा सूरुम्गमणि ते अत्थवणि ण दिट्ठ |
ते कारण वढ धम्मु करि धणि जोन्त्रणि कउ ति ॥ १३२ ॥ 267) धम्पुण संचिउ उ ण किउ रुक्खे चम्ममरण ।
खज्जिवि जर उद्देहियए परइ पडिव्त्रउ तेण ॥ १३३ ॥ 268) अरि जिय जि-पइ भत्ति करि सुहि सज्जणु अवहेरि ।
तिं बप्पेण वि कज्जु णवि जो पाडइ संसारि ॥ १३४ ॥ 269) अरे जिउ सोक्खे मग्गसि धम्मे अलसिय ।
पक्खे ँ विणु के ँ व उड्डण मग्गेसि मेंडय दंडसिय ॥ १३४१ ॥
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