Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Paramatma Prakash in Apabhransha
134)
133 ) अणु जइ जगहँ वि अहिययरु गुण-गणु तासु ण होइ । तो तइलोउ वि किं धरइ णिय-सिर- उप्पर सोइ ॥ ६ ॥ उत्तमु सुक्खु ण देइ जइ उत्तमु मुक्खु ण होइ । तो कंसलुवि कालु जिय सिद्ध वि सेवहि सोइ ॥ ७ ॥ 135) हरि-हर-बंधु वि जिणवर वि मुणिश्वर-विंद वि भव्व ।
परम- णिरंजणि मणु धरिवि मुक्खु जि झायहि सव्व ॥ ८ ॥ 136) तिहुयणि जीवहँ अस्थि गवि सोक्खहँ कारणु कोइ ।
मुक्खु मुरविणु एक पर तेणवि चिंतहि सोइ ॥ ९॥ 137) जीवहँ सो पर मोक्खु मुणि जो परमप्पय-लाहु ।
कम्म-कलंक - विमुकाएँ णाणिय बोल्लहि साहू ॥ १० ॥ 138) दंसणु णाणु अनंत-सुहु समउ ण तुट्टइ जासु ।
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सो पर सास मोक्ख-फलु बिज्जउ अस्थि ण तासु ॥ ११ ॥ 139 ) जीवहँ मोक्खहँ हेउ वरु दंसणु णाणु चरितु ।
पुणु तिष्णि त्रिअ मुणि णिच्छएँ एहउ वुत्तु ॥ १२ ॥ 140) पेच्छइ जाणइ अणुचरइ अप्पि अप्पर जो जि ।
दंसणु णाणु चरितु जिउ मोक्खहँ कारणु सो जि ॥ १३ ॥ 141) जं बोल्लइ ववहार- उ दंसणु णाणु चरित्तु ।
तं परियाणहि जीव तुहुँ जे परु होहि पवितु ॥ १४ ॥ 142) दव्बइँ जाणइ जह-ठियाँ तह जगि मण्णइ जो जि ।
अप्पहँ केरउ भावडउ अविचल दंसणु सो जि ॥ १५ ॥ 143) दब्बइँ जाणहि ताइँ छह तिहुयणु भरियउ जेहि । आइ-विणास - विवज्जियहि पाणिहि पभणियएहि ।। १६ ।।
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144) जीउ सचेणु दव्वु मुणि पंच अचेयण अण । पोग्गल धम्माहम्मु गहु काले सहिया भिण्ण ॥ १७ ॥
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