Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers

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Page 147
________________ Paramatma Prakash in Apabhransha 179) गंथहँ उप्पर परम-पुणि देसु वि करइ ण राउ । गंथ जेण वियाणियउ भिष्णउ अप्प - सहाउ ॥ ४९ ॥ 180) विसयहँ उप्पर परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ । विसयहँ जेण वियाणियउ भिष्णउ अप्प - सहाउ ॥ ५० ॥ 181 देहहँ उप्पर परम-मुणि देसु वि करइ ण राउं । देहहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प - सहाउ ॥ ५१ ॥ 182) वित्ति-णिवित्तिहि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ । बंधहँ हेउ वियाणियउ एयह जेण सहाउ || ५२ ॥ 183) "बंध मोक्खहँ हेउ णिउ जो णत्रि जाणइ कोइ । सो पर मोहिं करइ जिय पुण्णु वि पाउ वि दोइ ॥ ५३ ॥ 184) दंसण - गाण-चरित्तमउ जो गवि अप्पु मुणेइ । मोक्ख कारण भणिवि जिय सो पर ताइँ करेइ ॥ ५४ ॥ 185) जो गवि मण्णइ जीउ समु पुण्णु वि पाउ वि दोइ । सो चिरु दुक्खु सतु जिय मोहिं हिंडइ लोइ ॥ ५५ ॥ 186) वर जिय पावइँ सुंदर णाणिय ताइँ भणति । जीवहँ दुक्ख जणिवि लहु सिवमइँ जाइँ कुणति ॥ ५६ ॥ 187 ) मं पुणु पुण्इँ भल्लाइँ - णाणिय ताइँ भणति । जीव रज्जइँ देवि लहु दुक्खइँ जाइँ जणंति ॥ ५७ ॥ 188) वरणिय - दंसण - अहिमुहउ मरणु वि जीव लहेसि । मा यि दंसण-विम्मुहउ पुण्णु वि जीव करेसि ॥ ५८ ॥ 189 ) जे णिय - दंसण - अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति । तिं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहति ॥ ५९ ॥ 190) पुणेण होइ बिहवो विहवेण मओ मरण मह-मोहो । म- मोहेण य पावं ता पुण्णं अम्ह मा होउ ॥ ६० ॥ 133

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