Book Title: Spiritual Enlightenment
Author(s): Yogindu Deva, A N Upadhye
Publisher: Radiant Publishers
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Spiritual Enlightenment 167) अच्छइ जित्तिउ काल मुणि अप्प-सरूवि णिलीणु ।
संवर-णिज्जर जाणि तुहुँ सयल-वियप्प-विहीणु ॥ ३८ ॥ 168) कम्मु पुरकिउ सो खवइ अहिणव पेसु ण देइ ।
संगु मुएविणु जो सयलु उवसम-भाउ करेइ ॥ ३९ ॥ दंसणु णाणु चरित्तु तमु जो सम-भाउ करेइ ।
इयरहँ एकु वि अस्थि णवि जिणवरु एउ भणेइ ॥ ४० ॥ 170) जॉवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ ।
होइ कसायहँ वसि गयउ जीउ असंजदु सोइ ॥ ४१ ॥ 171) जेण कसाय हवंति मणि सो जिय मिल्लहि मोहु ।
मोह-कसाय-विवजयउ पर पावहि सम-बोहु ॥ ४२ ॥ 172) तत्तातत्तु मुणेवि मणि जे थक्का सम-भावि ।
ते पर मुहिया इत्थु जगि जहँ रइ अप्प-सहावि ॥ ४३॥ 173) बिणि वि दोस हवंति तसु जो सम-भाउ करे।
बंधु जि णिहणइ अप्पणउ अणु जगु गहिल करेइ ॥ ४४ ॥ 174) अष्णु वि दोसु हवेइ तमु जो सम-भाउ करेइ ।
सत्तु वि मिल्लिवि अप्पणउ परहँ णिलीणु हवेइ ॥ ४५ ॥ 175) अण्णु वि दोसु हवेइ तसु जो सम-भाउ करेइ ।
वियल हवेविणु इक्कलउ उप्परि जगहँ चडेइ ॥ ४६ ॥ 176) जा णिसि सयलहँ देहियहँ जोग्गिउ तहि जग्गेइ ।
जहि पुणु जग्गइ सयलु जगु सा णिसि मणिवि सुवेइ ॥ ४६*१ ॥ 177) णाणि मुएप्पिणु भाउ समु कित्थु वि जाइ ण राउ ।
जेण लहेसइ णाणमउ तेण जि अप्प-सहाउ ॥ ४७ ॥ 178) भणइ भणावइ णवि थुणइ णिदइ णाणि ण कोइ।
सिद्धिहि कारणु भाउ समु जाणंतउ पर सोइ ॥ ४८ ॥
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