Book Title: Some Aspects of Indian Culture
Author(s): A S Gopani, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Gunapala and His Jambucariyam
117
Beginning
नमिऊण चलणजुयल पढमजिणिदस्य भुवननाहस्स । अवसप्पिणीए धम्मो पयासिओ जेण इह पढम ।। बालत्तणमि जेण' सुमेरुसिहरेऽभिसेयकालंमि । वामचलणंगुलीए लीलाए डोलिया पुहवी ॥ त' वरकमलदलच्छ जिणचंद मत्तपीलुगइगमण । नमिऊण महावीर सुरगणसयसंथुयं वीर ।। सेसे वि य बावीसे नमिऊण नटुरागमयमोहे । सुरमणुया सुरमहिए जीवाइपयत्थओब्भासे ॥ नभिउ अणाइनिहणे सिद्धिगए अट्टकम्ममलमुक्के । सिद्धे सासयनाणे अव्वाबाह सुह [पत्र-२, B] पत्ते ।। वरकमलसरिसवयणा कमलदलच्छी य चारुकमलकरा । वियसियकमलनिसण्णा सुयमयदेवी नमिऊण ।। आयरिएउवज्झाए साहुजण गुरुजण च नमिऊण ।
जइ वि हु एयौं बहुसो अणेयसाहहिं आगमे भणिय । तह वि य फुडवियडस्थ संखेवेण अहं भणिमो ।। सुयणो सोऊण इम' गुणगहण कुणइ जइ वि ते नरिण । गुणभूसिए बि कब्वे दोसे गिण्हइ खलो चेव ।। सुयणाण किं न नमिहह जे वि य दोसे वि[पत्र २, A]
पेच्छहिं गुणोहे । पियजणविरहे जह कोइ पिअयण पेच्छइ वण' पि ॥ न हनिम्मला वि किरणा रविणो पेच्छइ कोसिओ तमसे । तह चेव गुणा इह दुज्जणो वि पेच्छेइ विवरीए । जइ वि हु बीहामि अहं खलाण एमेव तह वि कुवियाण । तह वि महंत वसण नो तीरइ छव्हिय एयं ॥ अह वा जो च्चिय एककस्य खलो सोच्चिय अण्णस्स सज्जणो होइ। कह सुयणदुज्जणाण' पसंसनिंदा अह' करिमो ? ॥ जेण भणिय:रता पेच्छंति गुणा दोसा पेच्छंति जे विरति । मज्झत्था पुण पुरिसा[षत्र २, B] दोसे य गुणे य पेच्छति ॥ ता मज्झत्था तुम्हे दोसे परिहरह तह वि दट्टण । गिण्हइ विरले वि गुणे सुयणसहाव पि मा मुयह ॥
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