Book Title: Siddhantasaradisangrah
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: M D Granthamala Samiti

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Page 12
________________ प्राचार्य योगीन्द्रदेव कब हुए हैं, और वे किस संघके प्राचार्य थे, इसका अभी तक कुछ भी पता नहीं लगा है। परमात्मप्रकाश प्रभाकरमहके सम्बोधन के लिए उसीकी प्रार्थनासे बनाया गया है, ऐसा उक मन्थमें कई जगह उलेख है:-- भावं पणविवि पंचगुरु सिरिजोईदुजिणाऊ । भट्टपहायरि विग्णयउ, विमलकरविणु भाउ ॥ ८ पुण पुण पणविवि पंचगुरु, भावि वित्त धरेवि। भपहायर णिसुणि तुहूं, अप्पा तिहुवि कहेचि ॥११ इत्थु ण लिन्घउ पंडियहि, गुणदोसुचि पुणुरत्तु । भट्ट पभायरकारणई, मइ पुणु पुणु वि पउत्तु ।। ३५२ मालूम नहीं ये भदरभाकर कौन हैं। निशानामापीने अपने पोंमें प्रभाकरके और भटके सिद्धान्तोंका खण्डन किया है और वे दोनों बड़े भारी दार्शनिक हो गये हैं। 'भट्ट' कुमारिलभट्टका संक्षिप्त नाम है। क्या उनके हितके लिए योगीन्द्रदेवने परमात्मप्रकाशकी रचना की थी। परमात्मप्रकाशके सम्बोधनोंको और उसमें प्रभाकर महकी विनीत प्रार्थनागको पढ़कर तो ऐसा नहीं जान पड़ता है कि वह कोई जनेतर दर्शनका श्रद्धाल है। बद्द एक जगह कहता है-'सिरिगुरु अक्खहि मोक्ख महु'-हे श्रीगुरु मुझे मोक्ष बतलाइए। दूसरी जगह वह परमेष्टीको नमस्कार करता है-'भाविं पणविव पंचगुरु। योगीन्द्रदेव भी उसे जगह जगह ' योगिन् ' अर्थात् 'हे योगी' कहकर सम्बोधन करते हैं। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि वह कोई योगीन्द्र देवका ही जैन शिष्य है जिसे शुद्ध निश्चयका स्वरूप समझाने का प्रयत्न किया गया है। ___ अमृताशीति (पृ. ९६) में विद्यानन्द स्वामीका 'अभिमतफलसिद्धे।' मादि श्लोक उधृत किया गया है और प्रभाकर तथा भह विद्यानन्द स्वामोसे पहले हुए हैं अतएव उनका और योगीन्द्र देवका समसामयिक होना संभव नहीं है । अकलंकदेवने भी प्रभाकर और भटका खण्डन किया है और अफलंकदेव विद्यानन्द स्वामीसे भी पहलेके हैं। समयसारकी तात्पर्यत्ति जयसेनसूरिने योगीन्द्रदेवका निम्नलिखित दोहा उधृत किया है:

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