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इस प्रन्धका नाम हमें 'सामायिकपा' नहीं मालूम होता, साथ ही यह पूर्ण भी नहीं मालूम होता । क्योंकि इसके अन्त में लिखा है कि ' इति द्वितीयभावना समाप्ता ।' अवश्य ही इसके पहले प्रथम भावना रही होगी । अन्तिम श्लोकसे संभव है कि इसका नाम 'तत्त्वभावना' रहा हो।
इसकी कापी जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी श्रीशीतलप्रसादजो अपने प्रससमें प्राप्त की हुई किसी स्थान के सरस्वतीमाहारकी प्रति परसे स्वयं करके लाये थे और उसी परसे यह मुद्रित कराई गई है। अतएव जब तक इसकी कोई दूसरी प्रति प्राप्त न हो तब तक इसके नामका और पूर्णता अपूर्णताका निर्णय नहीं हो सकता ।
१३-पं० श्री आशाधर । 'कल्याणमाला' के कसी पं. आशावर प्रसिद्ध विद्वान हैं । उनके बनाये हुए दो ग्रन्थ सागारधामृत (नं० २) और अनगारधर्मामृत (नं. १४) इसी मन्थमालामें मुद्रित हो चुके हैं और उसमें उनका परिचय भी दिया जा चुका है । वे विक्रमको १३ वी शताब्दिके अन्त तक मौजूद थे।
__ अपरिचित ग्रन्थकर्ता। अर्हत्प्रवचनके का प्रभाचन्द्र', शंखदेवाटकके कता भानुकीर्ति', धर्मरसायनके कर्ता पमनन्दि", सारसमुच्चयके कत्ती कुलभद्र, और धुतावतारके का विवुध' श्रीधरके विषयमें हमें कोई उल्लेखयोग्य परिचय प्राप्त नहीं हो
१-प्रभाचन्द्र नामके अनेक आचार्य और भट्टारक हो चुके है। २-अतिशयक्षेत्रकाण्डमें 'होलगिरी शंखदेवम्मि' पाठई जिससे मालूम होता है कि होलगि. रिनामक पर्वतपर शंखदेव या शंखेश्वर पार्श्वनाथ नामका कोई तीर्थ है। मालम नहीं, इस समय वह ज्ञात है या नहीं । संभवतः यह दक्षिण कनादककी ओर होगा। -भानुकीर्ति कई हो गये हैं । एक गण्ड विमुकदेवके शिष्य देवकीर्तिके गुरुभाई थे और दो १७ वीं शताब्दिमें हुए हैं-एक गुणभद्रसूरिके पट्टधर और दूसरे यश कीर्तिके पदपर होनेवाले जिनके कि शिष्य श्रीभूषण थे। ४-पद्मनन्दिपंचविंशतिकाके कर्ता, जम्बूद्वीपप्रशक्षिके कत्ती आदि कई पचनन्दि हो गये हैं । ५-एक वियुध श्रीधर भविष्यदत्तचरितके कर्ता हुए हैं। संभव है, वे ही ये हों।