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सका । इसी तरह आप्तस्वरूप, पार्श्वनाथसमस्यास्तोत्र, महर्षिस्तोत्र, नेमिनाथस्तोत्र और शलाका निक्षे०के विषयमें यह भी नहीं मालूम हो सका कि इनके रचयिता कौन हैं। जिन प्रतियोंपर से ये छपाये गये हैं, उनमें अन्धकत्ती ओंके नाम नहीं है । इस लिए इनके विषय में भी कुछ नहीं लिखा जा सका।
इस परिचयके लिखने में सुहद्धर बाबू जुगलकिशोरजीके कई नोटोंसे और उनकी सूचनाओंसे बहुत कुछ सहायता मिली हैं, अतएव हम उनके बहुत ही कृतज्ञ हैं। बम्बई, अगहन सुदी १४ वि० संवत् १९७९ । ।
नाथूराम प्रेमी।
हस्तलिखित प्रतियोंकी सहायता । १ श्रीयुक्त ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी, जैनधर्गभूषण---१ धम्मरसाथण, २ सारसमुच्चय (ख) और ३सामायिक पाठ । इनमसे पहले दो मन्थोंकी प्रतिया आपने देहलीके पुस्तक-भाण्डारसे नकल कराकर भिजवाई थी और उन्हें पालमनिवासी श्रीयुत छाजूरामजोंने लिखा है। तीसरे प्रन्यकी प्रेसकापी आपने स्वयं ही एक प्राचीन प्रतिते करके भेजी थी।
२ श्रीयुक बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार, सरसावा-१ सिद्धान्तसार मूल, २ अमृताशीति, ३ रत्नमाला, ४ शास्त्रसारसमुच्चय, ५ पार्श्वनाथस्तोत्र, ६ नेमिनाथस्तोत्र, ७ निजात्मारक और ८ आप्तस्थरूप । इनमेंसे अधिकांश मन्थोंकी कापी आपने जैन सिद्धान्तभवन आराकी प्रतियों के आधारसे कराके भेजी थी। शास्त्रसारसमुच्चयके सूत्रपाका संशोधन भी आपने उक्त ग्रन्थको कनड़ी टीकाके आधारसे कर दिया था। पिछले अन्धकी प्रेस कापी अपने स्वयं अपने हाथसे करके भेजी थी।
३ श्रीयुक्त पं० रामलाल कंचनलालजी,मरसेना-१ सिद्धान्तसारदीका, २ अंगप्रज्ञप्ति । इन दोनों अन्यों की प्रतियाँ श्रीयुक्त बाबू जुगलकिशोरजोने उर महाशयसे प्राप्त करके भेजने की कृपा की थी।
४ श्रीयुक्त पं० इन्द्रलालजी साहित्यशास्त्री जयपुर—१ शानलोचनस्तोत्र, २ समवसरणस्तोत्र, ३ सर्वशस्तवन, ४ पार्धनाथसमस्यास्तोत्र, ५चित्रबन्धस्तात्रे, ६ महर्षिस्तोत्र, ७ शंखदेवाष्टका जयपुरके