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पढ़नेवाला बबी उलझनमें पड़ जाता है । अस्तु । हमारा खयाल है कि पानन्दि मुनि उनके कोई गुरुस्थानीय व्यक्ति हैं और इसी लिए उन्होंने उनका स्मरण किया है। __ नियमसारको तात्पर्यवृत्तिके कत्ताका नाम श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव है। मालूम नहीं कि इस स्तोत्रके का वे ही हैं, अथवा अन्य कोई दूसरे । पानन्दिनामके भी अनेक विद्वान हुए हैं, इस लिए उनके विषयमें भी कुछ नहीं कहा जा सकता । ___ काशीकी यशोविजयजैनप्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित जनस्तोत्रसंग्रह (द्वितीय भाग ) में सबसे कोई १६-१७ वर्ष पहले यह स्तोत्र मुद्रित हो चुका है। उसके साथ जो टीका छपी है वह रामशेखरसूरिके शिष्य मुनिशेखरसूरिकृत है, परन्तु हम जो यह टीका छाप रहे हैं यह किसी अन्य विद्वान्की है जो कि अपना नाम प्रकट नहीं करते हैं।
उक्त मुद्रितप्रतिमें और खंभातके जैनपुस्तकालयकी प्रतिम-जिसका जिकर पिटर्सनकी १८८४-८६ की रिपोर्ट (पृ. २१२ नं. २८) में किया गया हैइम स्तोत्रका अन्तिम श्लोक इसी इपणे मिलता है, अतएव इपके कती पचप्रभदेव ही मालूम होते हैं ।
इस स्तोत्रका दूसरा नाम 'लक्ष्मीस्तोत्र' है। क्योंकि इसका प्रारंभ 'लक्ष्मी' शब्दसे शुरू होता है और भकामर, कल्याणमन्दिर आदि अनेक स्तोत्रों के नाम इसी तरह प्रसिद्ध हुए हैं।
१२-श्री अमितगतिमुरि * सामायिकपाठके कत्ती अमितगतिसूरि वे ही जान पढ़ते हैं जिनके बनाये हुए धर्मपरीक्षा, सुभाषितरत्नसन्दोह, अमितगतिश्रावकाचार, योगसारप्राभूत, और भावनावानिशतिका नामक प्रथ+ मुद्रित हो चुके हैं और जो विक्रमको ग्यारहवीं शताब्दिके आचार्य थे।
___ * इनका विस्तृत परिचय पानेके लिए मेरी लिखी हुई 'विद्वारस्नमाला 'का 'श्रीअमितगतिसूरि ' नामक लेख पढ़िए । । यह भी 'सामायिक पाठ ' के नामसे छपा है; परन्तु वास्तव में इसका नाम भावना द्वात्रिंशतिका है। + अमितगतिका 'पंचसंग्रह' नामक ग्रन्थ इसी ग्रन्थमालामें प्रकाशित होनेवाला है।