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फरवरी - २०१४ छे. शब्द द्वारा अर्थ प्रगट थाय छे तेथी तेने द्रव्यश्रुत कहेवाय छे. अनंत तीर्थंकर भगवंतो श्रुतज्ञानना माध्यमे ज मोक्षमार्गनी प्ररूपणा करे छे.
श्रुतज्ञानना बळे ज केवळज्ञाननो दीपक प्रगटे छे. भगवान ऋषभदेवे पोतानी पुत्री ब्राह्मीने अक्षरोना आलेखननुं ज्ञान आपी आ जगत उपर मोटो उपकार को छे. आ विश्वनो व्यवहार श्रुतज्ञानने आभारी छे. एकेन्द्रिय अने विकलेन्द्रिय जीवोमां पण किंचित् रूपे श्रुतज्ञाननो क्षयोपशम जोवा मळे छे. वादळनी गर्जनाथी केटलीक वनस्पति खीले छे, तो केटलीक वनस्पति चंद्र अने सूर्यना दर्शनथी खीली उठे छे. कोई मदिराना छंटकारथी नवपल्लवित थाय छे. हा! तेमनुं श्रुत अज्ञान अव्यक्त छे.
३. अवधिज्ञान : इन्द्रिय अने मननी सहायता विना सीधे-सीधुं आत्माने पदार्थनुं थतुं ज्ञान ते अवधिज्ञान छे. आ ज्ञान देव-नारकीने जन्मथी मरण पर्यन्त पंखीने मळेली उडवानी शक्तिनी जेम भवप्रत्ययिक सदा काळ होय छे. अने मनुष्य अने तिर्यंचोने तप-संयमादि विशिष्ट गुणोने आश्रयीने ज थाय छे माटे गुणप्रत्ययिक कहेवाय छे.
अहीं अवधि एटले मर्यादा अमुक चोक्कस प्रकारनी मर्यादा साथेनो आत्माने सीधो बोध करावे ते ज्ञान एटले अवधिज्ञान, जेम टेलिविझनना पडदा उपर दूरदूरना दृश्यो जोइ शकाय छे. तेम अवधिज्ञानी दूर दूरना दृश्यो जोइ शके छे. विशेषावश्यक भाष्य अनुसार जे ज्ञान अधिकाधिक अधोगामी रूपी पदार्थने जाणे छे ते अवधिज्ञान छे.
अवधिज्ञानी छ द्रव्यमांथी फक्त पुद्गल द्रव्यने ज जाणी शके छे कारण के पुद्गलरूपी द्रव्य छे. सामान्य अवधिज्ञानी पुद्गलना स्कंध, देश जोई शके छे. मध्यम ज्ञानी परमाणुने जोई शके छे. परमावधिज्ञान अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान प्राप्त करावे छे. परमावधिज्ञान चरम शरीरीने थाय छे.
४. मनापर्यवज्ञान : इन्द्रिय अने मनना माध्यम विना ज आत्मा संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवोना मनोगत भावोने जाणनारुं ज्ञान ते मनःपर्यवज्ञान छे. मन ए मनोवर्गणाना पुद्गलोथी बनेलुं छे. मनमा जे विभिन्न आकारो प्रगट थाय छे, एना आधारे मन लब्धिधारी आत्मा बीजाना मानसिक भावोने जाणी शके छे. मनःपर्यवज्ञान फक्त मनुष्य गतिमां ज थाय छे. आ ज्ञान उत्तम साधु-साध्वीने थाय छे.
५. केवळज्ञान : त्रणे काळ, अने सर्व रूपी-अरूपी पदार्थोने एक साथे संपूर्णपणे जाणनारुं ज्ञान ते केवळज्ञान (पूर्णज्ञान) कहेवाय छे आ ज्ञान फक्त मनुष्यगतिमां ज थाय छे.
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