Book Title: Shrutsagar Ank 2014 03 037
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३७ २७ जवानी नागकुमारोए मंजूरी आपी. द्वारिकामां आ प्रतिमाजीने सुवर्ण अने रत्नोथी जडित जिनालयमा प्रतिष्ठित करवामां आवी. वरसोना वीतवा साथे द्वारिका नगरी एक दिवस कुदरतना काळनो भोग बनी. त्यारे अधिष्ठायक देवनी सूचनाथी एक सुश्रावके आ प्रतिमाजीने समुद्रमां पधरावी. सागरनी अंदर तक्षक नामना नागेन्द्रदेवे आ प्रतिमाजीनी एंशी हजार वर्ष सुधी पूजा - भक्ति करी. त्यारबाद वरुणदेवे चार हजार वर्ष सुधी सेवा-पूज-भक्ति करी. एक दिवस कांतिपुरना सार्थवाह धनश्रेष्टि वेपारार्थे वहाणो लइने परदेश गया हता. आगळ जतां मधदरिये तेमनां वहाणो थंभी गयां. धनश्रेष्ठिना अथाग प्रयत्नो छतां कोइ प्रयत्नो कारगत न नीवडतां छेवटे निराश थयेला धनश्रेष्ठिए आत्मविलोपन करवानो मार्ग विचार्यो. त्यारे आकाशवाणी द्वारा धनश्रेष्ठिने जाणवा मळ्युं के समुद्रना पेटाळमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी एक भव्य प्रतिमाजी छे तेना प्रभावथी तारी आ आपत्ति दूर थशे. आ प्रतिमानो भव्य इतिहास पण आकाशवाणी द्वारा धनश्रेष्ठि जाण्यो. धनश्रेष्ठि आ दिव्यवाणीथी हर्षित थया अने दैवी सहायथी तेमणे समुद्रना पेटाळमांथी श्री पार्श्वप्रभुनी दिव्य प्रतिमाजी बहार लाव्या. प्रतिमाजी बहार आवी के वहाणो चालवा लाग्यां. धनश्रेष्ठिए अनेरा उत्सव साथै प्रतिमाजीनो भव्य नगरप्रवेश करावी एक जिनालयमा बिराजमान करावी. आ प्रतिमाजीनी साथे अन्य बे प्रतिमाजीओ प्राप्त थइ हती तेमांथी एक पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजी चारूप गाममां अने श्रीपत्तनमां श्री नेमिनाथ प्रभुनी प्रतिमा आजे पण बिराजमान छे. कांतिपुरना लोको २००० वर्ष सुधी आ प्रतिमाजीने हृदयना खरा भावथी पूजा करी. विक्रमना पहेला सैकामां श्रीपादलिप्तसूरि महाराजाना शिष्य बनेला नागार्जुन नामना योगीए आ प्रतिमाजीनुं हरण करीने कोटिबंध नामना रसनी सिद्धि प्रतिमाजीना प्रभावथी प्राप्त करी. कार्यसिद्धि बाद आ प्रतिमाजी सेढी नदीना किनारे खाखरना वृक्ष नीचे भूमिमां भंडारी दीधी. त्यां पण देवो द्वारा आ प्रतिमाजीनी पूजा - भक्ति थती रही. आचार्य भगवंतश्री जिनेश्वरसूरीश्वरजी महाराजाना शिष्यरत्न श्री अभयदेव मुनि मात्र १६ वर्षनी कुमारवये सूरीपदे प्रतिष्ठित थयेला कर्मना प्रभावे आ सूरिदेव कुष्ठरोगना भोग बन्या हता आ व्याधि धर्मनिंदानुं कारण बनतां सूरिदेव भारे दुःखी थया. त्यारे शासनदेवीए सूरिदेवने प्रत्यक्ष दर्शन आप्यां अने जणायुं के शेढ़ी नदीना किनारे खाखराना वृक्ष नीचेनी भूमिमां श्री पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजी छे. शासनदेवीए प्रतिमाजीनो इतिहास जणाव्यो अने नवअंगोनी टीका रचवा पण विनंती करी. For Private and Personal Use Only

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