Book Title: Shrutsagar Ank 2014 03 037
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ फरवरी - २०१४ शासनदेवीना कथन मुजब श्री अभयदेवसूरीश्वरजी संघ सहित सेढी नदीना किनारे आव्या. त्यां सूरीदेवे ३२ श्लोक प्रमाण जयतिहुण स्तोत्रनी रचना करी. आ स्तोत्रनी रचना थतांज श्री स्थंभन पार्श्वनाथनी दिव्य अने अलौकिक प्रतिमाजी प्रगट थयां. आ प्रतिमाजीना स्नात्रजळथी सूरीदेवनो कुष्ठरोग तुरतज नष्ट थयो. धरणेन्द्रदेवना सूचनथी सूरीदेवे स्तोत्रनी छेल्ली बे गाथा गोपवी दीधी. श्री संघे सेढी नदीना किनारे स्थंभनपुरमां जिनालय बंधावीने श्री अभयदेवसूरि महाराजाना वरद हस्ते श्री स्थंभन पार्श्वनाथ प्रभुनी जिनालयमा प्रतिष्ठा करावी. आ स्थान महान तीर्थरूपे प्रसिद्ध थयुं त्यारबाद सूरिजीए नवे अंगोनी टीका रची. आ अंगो उपर पूर्वे श्री शीलंकाचार्ये पण टीका रची हती. आ घटना ११मा सैकामां बनी हती. अर्थात् आ तीर्थनी स्थापना अभयदेवसूरिजी म.साहेबना समयथी थइ छे. विक्रमसंवत १३६८मां चमत्कारिक अने दिव्य एवी श्री स्थंभन पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजीने त्यांथी स्थंभन तीर्थमां लाववामां आवी. खंभातनो संघ आ प्रतिमाजीनी हैयाना भावथी सेवा-पूजा-भक्ति करवा लाग्यो. शासन सम्राट आचार्य भगवंत विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजाना वरद हस्ते वि.सं.१९५५मां आ प्रतिमाजीने पुनःप्रतिष्ठित करवामां आवी. आचार्य भगवंत श्री विजयनेमिसूरीश्वरजीना उपदेशथी आ जिनालयनो जिर्णोद्धार थयो. आजे पण खंभातना खारवाडमां आ भव्य तारकतीर्थ विद्यमान छे त्रण शिखरथी युक्त आ भव्य जिनप्रासाद देवविमान सदृश शोभी रह्यो श्री जिनप्रभसूरिए आ प्रभुजीने भव्यभयहर पार्श्वनाथना नामथी ओळखाव्या छे. भव्य अने मनोहर अनेक जिनप्रसादो खंभातमां शोभी रह्या छे जैन परंपरा अने प्रणालिकाओनो परिचय करावतां अनेक जैन संस्थानो आज पण खंभातमां विद्यमान छे. अनेक खंभात सूरि-पुंगवोना पावन पगलांथी खंभात पुनित बनेलुं छे. जैन संस्कृतिना अपूर्व वैभवने खंभाते माण्यो छे अने जोयो छे. खंभात अनेक महान ग्रंथोनी सर्जनभूमि छे. अनेक उदार श्रेष्ठीओए आ नगरनुं गौरव वधार्यु छे. भोजनशाळा, आयंबिलशाळा, धर्मशाळा आदिनी सुंदर सगवड छे. श्री पार्श्वनाथ कल्पमां श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुजीना प्रबळ प्रभावने जणाव्यु छ : अनेक तारक तीर्थोनी यात्रानो लाभ श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमाना दर्शनथी थाय छे. आ परमात्माने प्रणाम करवा मात्रनी भावनाथी मासखमणचें फळ मळे छे. दरिद्र पुरुष अढळक संपत्तिनो मालिक बने छे. अने दुर्भाग्य पुण्यनुं भाग्य खीली उठे छे इत्यादि. For Private and Personal Use Only

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