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• श्रुतसागर
वर्ष-४, अंक-१, कुल अंक-३७ फरवरी-२०१४
श्रुतसेवा अने श्रुतरक्षानुं मंगल स्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
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प्रत वाचनमा उपयोगी अने प्रतनी सुरक्षा माटे वपरातु कलात्मक पुंटुं
ATESTMISTOTO
PHOVANTARA
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र
* संपादक
श्रुतसागर
३७
आशीर्वाद
राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
हिरेन के दोशीं
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Vots
निदेशक *
कनुभाई एल. शाह
एवं
ज्ञानमंदिर परिवार
१७ फरवरी, २०१४, वि. सं. २०७०, महा वद- 9
प्रकाशक
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर - ३८२००७
फोन नं. (०७९) २३२७६२०४ २०५ २५२ फेक्स (०७९) २३२७६२४९ website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org
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अनुक्रम १. संपादकीय
हिरेन के. दोशी २. गुरुवाणी
आ. पद्मरागरसूरिजी ३. शिवपुरीतीर्थ चैत्यपरिपाटी हिरेन के. दोशी ४. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय
डॉ. रतनबेन खीमजी छाडवा ५. जैनदर्शनमां पांच ज्ञान स्वरूप डॉ. भानुबेन शाह ६. श्री भद्रावती तीर्थ : एक परिचय मुनि विद्याविजयजी ७. श्री खंभात तीर्थ : एक परिचय कनुभाई एल. शाह ८. श्रुतसेवानो सोनेरी अवसर ९. ज्ञानमंदिर जान्युआरी-१४ कार्य अहेवाल
कनुभाई एल. शाह
प्राप्तिस्थान
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर परिवार डाईनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ ।।
प्रकाशन सौजन्य श्री हीरालालभाई रसिकदास कापडियानी श्रुतभक्ति अने श्रुतसेवाना अनुमोदनार्थे श्री विबोधचंद्र हीरालाल कापडिया
अंधेरी-मुंबई-४०००५८
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संपादकीय श्रुतसागरनो ३७मो अंक आपश्रीना हाथमां छे.
एक सुभाषितकार कहे छे :- मनुष्य ए पशु जेवो छे, जो ज्ञान न होय तो. सुभाषितकारनी वात पण साची जणाय छे. पाणी अने श्वासनी जेम जीवन माटे ज्ञान पण आवश्यक छे. अने एटले ज आपणा शास्त्रकारोए लख्युं छे के हे प्रभु जो आपना जिनागम न होत तो अनाथ एवा अमे क्यां जात? ज्ञाननी महत्ता दरेक धर्ममां अने दरेक देश काळे एनी समान रूपे आवश्यकता रही छे. अने एटले ज दरेक धर्म अने दरेक परंपराए अलग अलग आयामो अने एना विविध स्वरूपोथी ज्ञाननो स्वीकार को छे.
___ षड्दर्शनना पायाना सिद्धांतोमां ज्ञानतत्त्व अने आत्मतत्त्व बहु पायानुं अने महत्त्व- स्थान धरावे छे. अने एना आधारे ज ते ते दर्शनना सिद्धांतो अने तत्त्वोनी रचना करवामां आवी छे. आ अंकमां ए ज हेतुसर आपणे त्यां पूर्ण ज्ञानी पुरुषोए प्ररूपेली ज्ञान संबंधी केटलीक विगतो रजु करी छे. जेथी सामान्य वाचको जैनदर्शनमां प्ररूपायेला ज्ञानना विविध प्रकारो अने स्वरूपोने जाणी शके. आ अंकनी वात :
प. पू. आचार्य भगवंतश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ना प्रवचनोमांथी चूंटेला पाप अने सत्य विषयक केटलांक चोंटदार सुवाक्योने गुरुवाणी हेठळ प्रकाशित कर्या छे. विक्रमनी १९मी सदीमां थयेला अमीविजयजी म. सा. ना शिष्य विनोदविजयकृत शिवपुरीतीर्थ चैत्यपरिपाटीनी कृति आ अंकमां प्रकाशित करी छे. तो साथे साथे विक्रमनी सत्तरमी सदीमां थयेला वाचक सोममूर्ति कृत उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झाय आ अंकमां प्रकाशित करी छे. आ कृतिनुं संपादन डॉ. रतनबेन छाडवा द्वारा थयेल छे. कृतिपरिचयमां कृतिनो भावानुवाद अने उत्तराध्ययनसूत्रनी केटलीक प्राथमिक जाणकारीओ नोंधेली छे.
डॉ. भानुबेन सत्रा द्वारा जैनदर्शनमां पांच ज्ञानना स्वरूपनी प्राथमिक पण सुंदर रीते प्रस्तुति करेली छे. पांच ज्ञानना स्वरूपनी विभावना अने ए ज्ञाननी विशेषताने लेखमां स्थान अपायेलुं छे. जे वाचको माटे रसप्रद बने एवं छे. दर वखतनी जेम आ अंके पण जैन सत्यप्रकाशमांथी पू. मुनिश्री विद्याविजयजी म. सा. द्वारा लखायेलो कच्छना प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र श्री भद्रेश्वरतीर्थनो परिचय आ लेखमां प्रकाशित कर्यो छे. तीर्थना सामान्य परिचयनी साथे भद्रावतीतीर्थनी ऐतिहासिक विगतो पण आ लेखनी महत्ताने वधारे छे. महिमासभर अने पवित्रता बक्षे एवा
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फरवरी - २०१४ केटलाय विशिष्ट तीर्थो काळना प्रवाहमां गरक थता जाय छे, त्यारे आवा तीर्थोनुं महत्त्व वधारेने वधारे प्रसार पामे ए जरूरी छे. ए शिवाय तीर्थपरिचय अंतर्गत स्तंभन पार्श्वनाथ भगवाननुं तीर्थ स्तंभनतीर्थ खंभातनो पण परिवय आपवामां आव्यो छे. तीर्थ परिचयनी साथे साथे तीर्थोत्पत्तिनी कथाथी तीर्थ महत्ताने जाणी शकाय छे.
श्रुतरसिको माटे एक आनंदना समाचार रूप कही शकाय एबुं ज्ञानमंदिरमां जोडावा माटेना आमंत्रण स्वरूपे एक पत्र प्रकाशित करवामां आव्यो छे. प्रभुना शासनने वधुने वधु दीप्तिमंत करी शकाय एवो कोई सरळतम मार्गोमांथी एक मार्ग छे श्रुतनो, ज्ञाननो. छेल्लां केटलांय वर्षांथी विशिष्टप्रकारना श्रुतकार्यो ज्ञानमंदिरमां चाली रह्या छे. अने ए कार्योमा जोडावा माटे ज्ञानमंदिरनो संपर्क करवो.
| सुवाक्य
* पगमा दोरी गूंचवाई होय त्यारे कूदाकूद
करवाने बदले शांतिथी ऊभा रहेवू जोईए. जीवनमां पण समस्याओ ऊभी थाय त्यारे शांति समता अने श्रद्धाना आसन पर बेसतां आवडे तो ज जल्दी उकेल आवे.
* धीरज एटले राह जोवानी क्षमता नहीं, पण राह जोती वखते स्वभावने काबूमां राखवानी क्षमता.
* बीजानी भुल काढवा माटे भेजूं जोईए
अने आपणी भुल स्वीकारवा माटे कलेजुं जोईए.
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गुरुवाणी
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आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी
पाप
* पाप आवीने लात के धोको गारतुं नथी पण गाणसनी बुद्धिने फेरवे छे, जेथी माणस अवळे रस्ते जइने दुःख पामे छे, पाप सारा मार्गे जनारने कंटकवाळा मार्गे दोरी जाय छे.
प्राण हरावे तेवी जीभने धिक्कार छे. जे हिंसक काम करावे तेवी बुद्धिने धिक्कार छे, जे पाप करावे छे एवा शरीरने तेवी बुद्धिने धिक्कार छे, जे पाप करावे छे एवा शरीरने धिक्कार छे, जेने पाप जेवुं खोटुं जोवुं गमे एवी आंखने धिक्कार छे !
* पापने आपणे दूर करी शकता नथी. पाप दूर करवानी शक्ति आपणामां नथी. पाप दूर करवा माटे परमात्मा ज शक्तिमान छे. तेमणे कह्युं छे एम करीए तो, तेमना चरणोमां पडवाथी, समर्पणथी ज पापो दूर थाय छे.
हजु सुधी एवं बन्युं नथी के कोई पाप ढांक्युं ढंकायुं होय. घणुं पाप ज्यारे भेगुं थाय छे त्यारे ते आपोआप प्रगट थाय छे. पाप करतां विचार करवो के जेथी पाछळथी पस्तावुं न पडे.
जीवनमां चार प्रकारना दोषो पाप छे. तेमां त्रण प्रकारना एवा छे के जे भगवानना नामस्मरणथी, पश्चात्तापथी, ज्ञान-ध्यानथी धोवाई जाय छे, नाश थई जाय छे पण वोभुं पाप जरूर भोगवयुं पडे छे.
* संसारमां बे प्रकारनी मनोवृत्ति होय छे - श्वानवृत्ति अने सिंहवृत्ति, कूतराने कोई लाकडी मारे तो ते लाकडीने करडे छे. पण लाकडी मारनारने करडतुं नथी. परंतु सिंह तो तेने मारनारने ज खतम करी नाखे छे. ते गुनेगारने मारी नाखे छे. एवी ज रीते ज्ञानीओ क्रोध करनार उपर, दुःख देनार उपर गुस्सा करता नथी पण क्षमता, दया अने प्रेमथी व्यक्तिमा रहेला क्रोधनो ज अथवा दुर्गुणोनो ज नाश करी नाखे छे ज्यारे श्वानवृत्तिवाळा पापने नहीं पण व्यक्तिने मारी नाखे छे.
संसारनुं हार्द मन छे. दीवामां तेल होय तो ज ते प्रकाश आपे छे. माणसनो बहारनो संसार नहीं परंतु अंदरनो संसार तेनुं जीवन बगाडे छे.
* पारकी आशाए जीवन जीववुं तेमां पराधीनता छे आशाना बंधनमां बंधायेल
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फरवरी - २०१४
मानवी मुक्त थवा घणां तरफडियां मारे छे पण तेमांथी मुक्त थवातुं नथी, ऊलटो वधारे बंधनथी मजबूत थाय छे..
* मनुष्यनी अंदर केटलाय तोफानो, भयंकर विचारो चालता होय छे, जो ए बहार आवे तो कोडीनां थई जाय छे.
• श्रेष्ठमां श्रेष्ठ तीर्थस्थाने मानवीनुं मन पवित्र जोईए तमे ज्यारे पण तीर्थयात्राए जाओ त्यारे मन पवित्र करीने जजो जेथी तमारा मनमां भगवाननी छाया प्रतिबिंब झीलाई शके मन मेलुं हशे तो प्रतिबिंब नहीं पडे.
1
* महान पुरुष शक्ति प्राप्त करे छे तेनी साधना द्वारा मननी पवित्रतामां चमत्कार छे, कोई मंत्र सिद्ध नथी. मननी पवित्रताथी एमना शब्द मंत्र बने छे.
मननी वासनाओ खूब ज भयंकर छे. सारी व्यक्तिओने पण ते नचावे छे. मन उपर विजय प्राप्त करवानो छे. सर्व पापोनुं मूळ तृष्णा छे. सर्व पापो करनार मन छे. जे मनने साधे ते सर्वने साधे.
ज्यां सुधी मन तृप्त नहीं थाय त्यां सुधी ते स्थिर थशे नहीं. तमे मनने जेम जेम दबावशो तेम तेम ते उपद्रव करशे अने वधु अस्थिर बनशे तेना करतां तेने समजावीने धीमे धीमे परमात्माना चिंतनमां जोडवं. आम करवाथी मन शांत थई जशे .
मन ज्यारे शुद्ध छे, पवित्र छे, पापना बोजथी मुक्त छे, त्यारे बहानां ग तेटला दुःखो आवी पडे तो पण आत्मामा - अंतरमां तो आनंद ज होय छे. पण जो मन मेलुं, अशुद्ध होय तो बहार घणां सुखो होवा छतां अंतर दुःखनी पीडाथी पीडातुं रहे छे.
घणा लोको धर्म पर भाषणो करी शके छे, सुंदर लखी शके छे, लोकोने समजावी शके छे पण आचरण करी शकतां नथी. तेओ बुद्धिवादी छे. बुद्धिनो व्यय करवानुं जाणे छे, पण हृदयने पवित्र करवानुं जाणता नथी.
बीमार माणसने उठवानी पण इच्छा थती नथी. अने ऊभा थवानी तेनी शक्ति खतम ई जाय छे, तेवी रीते मनमां मिथ्याभाव आवे छे त्यारे जीवने पाप करवानी इच्छा थती नथी, पाप करवानी वृत्ति ज खतम थई जाय छे. ज्यारे आवी स्थिति आवे छे त्यारे ते प्रामाणिकता अने योग्यता प्राप्त करे छे.
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• घडियाळने चावी आपवामां न आवे तो ते बंध पडी जाय छे. ते रीते मनने पण जो सद्विचाररूपी चावी आपवामां न आवे तो ते बंध पडी जाय छे.
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श्रुतसागर - ३७
सत्य
* सत्य ए ज धर्म छे. सत्यथी जीवनमां धर्म प्रगटे छे. जीवनमां सत्यनी कसोटी
अग्नि-परीक्षा छे, तेमांथी पसार थनार क्यांय निष्फळ जतो नथी. * वर्तमानकाळमां सत्य जेटलुं कठोर लागे छे तेटलुं ज सत्याचरणथी भावि मृदु लागे छे. अनेक कुरबानीओ अने सर्वसमर्पण विना सत्य लाव, मुश्केल छे.
आथी ज तो सत्यनो उपासक मरीने अमर बनी जाय छे. * मशीनना भागोने छूटा पाडीए तो जुदा पडेला भागने मशीननो भाग कहेवाय, ए गागोने गंगा करीए तो गशीन बने छे. एगां प्रचंड शक्ति पेदा थाय छे. तेवी रीते जगतमा जेटला जुदां जुदां दर्शनो छे, ए सत्य छे, परंतु खंडित सत्य छे. जगतनां दरेक दर्शनोमां मानवताना संस्कार भरेला छे. ए बधां खंडित सत्योने भेगा करीए तो पूर्ण सत्य बने. एमां प्रचंड शक्ति पेदा थाय छे. ए सत्यना प्रकाशमां आत्मा, परमात्माने जोवाय छे. * सत्य सहज छे ज्यारे असत्य शीखवू पडे छे. * सत्यवादीनी जगतमां घणी प्रसिद्धि होय छे. ते कदाच भूलथी असत्य बोली
जाय तो पण जगत तो तेने सत्य ज माने. पण असत्यवादी कोईवार महान
सत्य बोली जाय तो पण लोको तेने असत्य ज माने छे. * जे जीवन सत्यथी दूर छे ते जीवनमां कोई सुगंध नथी. * सत्यनी उपासना माटे जीवनमात्रमा आत्मश्रद्धानी माफक आत्म साहसनी
जरुरियात रहे छे. * Mીવનમાં સત્ય અને સ્વરૂપે પ્રગટ થતું હોય છે. માથી છો ! ન હર્શનને सत्य मानी लेवानी वात क्यारेक भ्रममां परिणमे छे. सत्यना मार्गी माटे आत्मश्रद्धा अने स्वयं नियंत्रण बंने अनिवार्य छे. जो के आम छतां सत्यनुं दर्शन हमेशां स्वानुभव द्वारा प्रगटे छे. एटले ज्यां सुधी सत्य मेळववानी साहसवृत्ति
जागे नहि त्यां सुधी केवळ माहिती पूरती नथी. * सत्यनी उपासनाथी व्यक्ति परमात्मा सुधी पहोंची शके छे. सत्यनी उपासनाथी विकारी वासनानो नाश थाय छे. सत्यनी उपासनाथी जीवनमां सदाचार आवे छे, जीवनमा संयमनी सुवास आवे छे. एक वखत सत्यने स्वीकार्या पछी तेनी पाछळ जीवन समर्पण कर जोइए, जेथी जीवनमां पूर्णता प्राप्त थाय.
(अनुसंधान पृष्ठ ३१ पर)
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शिवपुरीतीर्थ चैत्यपरिपाटी
हिरेन के. दोशी मारगुर्जर केटलीक लघु चैत्यपरिपाटीओनी कृतिओमां एक नवी कृति प्रकाशित थाय छे, शिवपुरीतीर्थ चैत्यपरिपाटी. कृति रचना अने शब्दबंधने जोता कृतिनी रचना १९मी सदी आस-पास थई होवानी संभावना छे. अने एटले ज शिवपुरी एटले प्राय करीने आजे मध्यप्रदेशमां आवेलां शिवपुरी नगरनी आ चैत्यपरिपाटी होवानुं जणाय छे.
शिवपुरी तीर्थमां कविए जुहारेला चैत्यने अहीं क्रमानुसार कृतिना पद्योमां आवरी लीधा छे. जिनालय के जिनालयना निर्माण संबंधी हकीकतो कृतिमां क्यांय जणाती नथी. कृतिमां जिनालय संबंधी अन्य विगतो जिनालयमा बिराजमान मूळनायक परमात्मा संबंधी हकीकतो ज प्रधानपणे कविने स्थान न आपता ए व्यक्त करी छे. ___ आ कृतिनी कुल १८ गाथामां कविए शिवपुरीतीर्थना पंदर जिनालयोनुं वर्णन कर्यु छे. एकाद जिनालयने बाद करता अन्य कोई ठेकाणे खास करीने कविए प्रासाद संबंधी हकीकत आपी नथी. आम कृतिना वाचनमां चैत्यपरिपाटीना स्वरूप करता कृतिमां स्वतन प्रकारनी छांट वधारे अनुभवाय छे.
शिवपुरी तीर्थमां श्री आदिश्वर भगवानना त्रण, श्री नमिनाथ भगवान- एक, श्री संभवनाथ भगवान, एक, श्री अजितनाथ भगवान- एक, श्री शीतलनाथ भगवान- एक, श्री महावीरस्वामी भगवान- एक, श्री कुंथुनाथ भगवाननुं एक, श्री शांतिनाथ भगवान- एक अने श्री पार्श्वनाथ भगवानना त्रण, आम कुल १३ जिनालय स्वतंत्र गण्या छे. ज्यारे श्री पद्मप्रभ भगवाननो उल्लेख श्री आदिश्वर भगवानना जिनालयनी अंदर अने श्री चिंतागणी पार्श्वनाथ भगवाननो उल्लेख श्री अजितनाथ भगवानना जिनालयनी अंदर कर्यो छे. आम कुल पंदर जिनालयोनी स्पर्शनानी वात कविए कृतिना माध्यमे अभिव्यक्त करी छे.
कृतिमां कविए दरेक परमात्माना लंछननी वात समानभावे करी छे. क्यांक परमात्मानी नगरी के माता-पितानुं नाम उमेरीने स्तवना अने परमात्मा संबंधी विगतो रजु करी छे. कृतिनी बारमी कडीमां कविए आदिश्वर भगवाननो प्रासाद चतुर्मुख जणाव्यो छे. कविए सोळमी कडीमां जिनालय माटे आगार शब्द वपरायो छे. जे विशेषता जणाय छे. कविए कृतिनी अढारमी कडीमां जणाव्या अनुसार अमीविजयजी उपाध्यायना शिष्य तरीके कवि पोताने उदबोध छे. अने पोतानो
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श्रुतसागर - ३७ नामोल्लेख पण कवि करे छे. ए सिवायनी कवि संबंधी हकीकतो प्राप्त थई नथी. शब्द रचनाने आधारे कविनो सत्ता समय अनुमानथी १९मी सदी आसपासनो गणी शकाय छे. प्रायः करीने आ विनोदविजय महाराज वीरविजयजी म. सा. नी परंपराना होई शके छे. ते छतांय आ बाबते विशेष कांईक प्रमाण मळे तो वधारे स्पष्ट थई शके.
आ कृतिनी हस्तप्रत अमारा ज्ञानमंदिरमा २८८८० नंबरना क्रमांके संगृहीत छे. प्रतमां कुल ३ पत्र छे. प्रत परिमाण २५४१२ छे. ११ लाईनमा २६ जेटला अक्षरोनुं आलेखन करवामां आव्युं छे. अक्षरो प्रमाणमां मोटा अने बेडोळ छे. प्रत पाणीना कारणे थोडी खराब थयेली छे. आ कृति अने हस्तप्रतनी विशेष विगतो कैलासश्रुतसागर ग्रंथ सूचि भाग सातमां प्रकाशित थयेली छे.
शिवपुरीतीर्थ चैत्यपरिपाटी
|| इडर आंबा आबाली रे, ईडर दाडिम द्राख ए देशी ।। शिवपुरीनयरी सोहांमणी रे, पनंरे जिनप्रासाद | भावधरीने भेटीये रे, आंणी मन अ(आ)ला(हला)द ।। १।। चतुरनर वंदो श्रीजिनदेव, सारो प्रभुनी सेव...(आंकणी) प्रथम नमो श्रीआदीनाथने रे, दोलतनो दातार | वृषभलंच(छ)न सोहांमणो रे, मरुदेवी मातमल्हार ।।२।। चतुरनर वंदो... नमतां श्रीनमीनाथने रे, सुखसंपति सबे(वि) थाय । कमललंछन सुकोमलु रे, क(कं)चनवरणी काय ।।३।।। चतुरनर वंदो... श्रीसंभवजिननी सेवा करो रे, तेह प्रभु तारणहार । हीवरलंछन हिस्वतो रे, अडवडीया आधार ।।४।। चतुरनर वंदो... अजीते अष्टकर्म जीतीया रे, देखो तस दीदार । गजलंछन पद गाजतो रे, पूजो तुमे नर-नारी ।।५।। चतुरनर वंदो... श्रीआदिजिन अलवेसरु रे, जस भेट्या दुख जाय । वनी(नि)नयरीनो धणी रे, पिता श्रीनाभिराय ||६|| चतुरनर वंदो... शीतलनाथ वंदो सहु रे, कचनवर्ण शरीर । श्रीवत्सलंछन सोहे सदा रे, तेहने पुजो वडवीर ।।७।। चतुरनर वंदो...
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फरवरी - २०१४ श्रीमहावीरमोटो धणी रे, त्रिजगनायक देव । सीहलंछन पद तले वसे रे, प्रभुने पुजे नितमेव ।।८।। चतुरनर वंदो... श्रीकुंथुजिणेसर जगजयो रे, प्रणमु तेहना पाय । छाग लंछन पाए सदा रे, गजपूरी नयरीनो राय ।।९।। चतुरनर वंदो... नयरी वाराणसीनो धणी रे, श्रीशंखेश्वरपास । सत्तरभेद पूजा रसो(चो) रे, मन धरी परम उल्लास ||१०||चतुरनर वंदो... श्रीगोडीजीना गुण गावता रे, पातिक दूर पलाय । लंछन नाग पाए वसे रे, नीलवरण प्रभु काया ।।११।। चतुरनर वंदो.. श्रीऋषभदेव गुण राजीयो, चतुर्मुख प्रासाद | तेहने पूजो तुमे प्रांणीया रे, छोडीने परमाद ।।१२।। चतुरनर वंदो.. सोलमा श्रीजिनशांतिजी रे, एह सम अवर न कोय । मृगल(लं)छन महिमा घणो रे, देख्यं दोलि(ल)त होय ।।१३।। चतुरनर वंदो... वली प्रणमो भवी प्रांणीया रे, जीराउलो जिनराज | श्रीशिवपुरी नास(थ) थ(त)ने रे, महेर करे माहाराज ।।१४।। चतुरनर वंदो... श्रीआदिज(जि)नना प्रासादमें रे, श्री पद्मप्रभु जिनराय । सर्वथा तुमे सोहामणी रे, जेहने पूज्या जस थाय ।।१५।। चतुरनर वंदो... श्रीअजितना आगारमें रे, श्रीचिंतामणी पास । जे भवी(वि) पूजें बहु प्रेमसु रे, तेहने द्ये अमरविलास ||१६|| चतुरनर वंदो... ए पनरे प्रासाद जिनवरतणा रे, सीवपूरीनयरी मझार | जन भेटो भावस्यु रे, ज्युं पामो सुख श्रीकार ।।१७।। चतुरनर वंदो.. श्रीअमीवी(वि)बुध गुणराजीयो रे, तत्सीस वी(वि)नोद नाम । तेह तणो सुपसाउले रे, तीर्थंकर परणाम ।।१८।। चतुरनर वंदो श्रीजिनदेव, सारो प्रभुनी सेव...
॥इति श्रीशिवपुरीजिन तीरथमाला स्तवन संपूरणं ।।
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उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय
डॉ. रतनबेन खीमजी छाडवा सज्झाय एटले स्वाध्याय सज्झाय एटले उत्कृष्ट प्रकारनो तप राज्झाय एटले पोतानुं पोताने मळवू.
साहित्यना एक प्रकार तरीके गणाती सज्झाय परिणामे जीवने विकासना पंथे वधुने वधु आगळ धपावे छे.
खास करीने सज्झाय साहित्यमां महापुरुषोनी जीवनकथाने अने आगमिक सिद्धांतोने वणी लेवामां आवता होय छे. कवि द्वारा एनी रजुआत पद्यमां सुंदर रीते थाय छे. आq ज एक पद्य एटले उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय
आ कृतिमां प्रभु महावीरगी अंतिम देशनाना साररूपे गुंथायेला उत्तराध्ययनसूत्रना छत्रीस अध्ययनोनी वात आ कृतिमां संक्षेपमां रजु करी छे. श्री उत्तराध्ययनसूत्र साधना मार्गने सिद्ध करवानी अद्भुत कळा शीखवतुं एक आगम शास्त्र छे. वैदिक (शास्त्रोमां) परंपरामां जे स्थान भगवद्गीतानुं, बुद्ध परंपरामां धम्मपदनु, पारसीमां अवेस्तानुं, इसाइमां बाइबलनु, मुसलमानोमां कुराननुं छे. एथी अधिक महत्त्व जैन परंपरामां आगमोनी श्रेणिमां उत्तराध्ययनसूत्रनुं छे.
भारत सरकारे पण उत्तराध्ययनसूत्रने नेशनल ट्रेझर (राष्ट्रीय धरोहर) तरीके जाहेर करेल छे. आ मूलागम उपर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी तथा बालावबोध, टबार्थ, स्तवनो जेवी संस्कृत प्राकृत अने देशी भाषामां अनेक कृतिओ रचाई छे. जे प्रस्तुत आगमनी लोकप्रियतानुं ज्वलंत उदाहरण छे. आ मूलागमने अढी हजार वर्ष थइ गया छतां पण वर्तमानकाळमां एटलुं ज प्रचलित छे. आ आगम चार अनुयोगमां विभक्त छे. जेमां आध्यात्मिक तेम ज नैतिक जीवन, विभिन्न दृष्टिकोणथी ऊंडाणभर्यु चिंतन छे.
आ आगम एक नोखी अनोखी भात पाडतुं आगम छे. तत्त्वनी अनुपम वातो जाणवा मळे छे. राजाथी लइ रैयत सुधीनाने उपयोगी वातोने आबेहूब रीते वर्णवी छे. तेमां सर्व शास्त्रोनो सार आवी जाय छे. प्राकृत तेमज अर्धमागधी भाषाना सुंदर दृष्टांतो आपी आगमकारे कुशळताथी छत्रीस अध्ययनोनी गूंथणी करी छे. आवा आगमसूत्र उपरथी 'उत्तराध्ययन सज्झाय' मां खूब ज सुंदर रीते कवि सोममूर्तिए छत्रीस अध्ययनोनो सार संक्षिप्तमां रजु को छे.
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फरवरी - २०१४ उत्तराध्ययनसूत्रनो संक्षिप्त परिचय :
प्रथम विनयश्रुत अध्ययनमां विनयधर्मनी वात छे. तो बीजा परीषह नामना अध्ययनमां संयमजीवनमां श्रमण-श्रमणी भगवंतो द्वारा सहन कराता परीषहनी वात वांचवा मळे छे. त्रीजा अध्ययनमां मोक्षनां साधन गणी शकाय एवा चार दुर्लभ अंगो 'चतुरंगीय'नी वात छे. चोथु अध्ययन असंस्कृत छे, जेमां जीवने अप्रमत्त रहेवानो उपदेश छे. पांचमुं अध्ययन अकाममरणीय छे, जेमां सद्गृहस्थोना लक्षणो अने सकाममरणनी प्राप्ति अने उपायनो उल्लेख छे. छटुं अध्ययन क्षुल्लकनिर्ग्रन्थीय छे. जेमां सत्यदृष्टिनो उपदेश अने अप्रमत्त रहेवानी प्रेरणानुं निरूपण करायेलं छे. सातमं अध्ययन उरभ्रीय नामनुं छे. जेमा बोकडाना दृष्टांत द्वारा संसार आसक्त जीवोनी दुर्दशानुं गार्गिक चित्रण करायुं छे तेगज आसक्तिनुं परिणाम, अने मानुषिक दैविक कामभोग अने एना परिणामनो उल्लेख छे.
आठम अध्ययन कापिलीय छे. जेमां कशील जीवनना दुष्परिणामो तेमज लोभवृत्तिनुं स्वरूप तेमज निर्लिप्ततानो उपदेश आपवामां आव्यो छे. नवमुं अध्ययन नमिप्रव्रज्या छे. नमि राजर्षिनो जन्म, पूर्वजन्मस्मरण, अने एमनी दीक्षानुं वर्णन आ अध्यननमां मळे छे. दसमुं अध्ययन द्रुमपत्रक छे. जेमां वृक्षना पीळां पांदडाना दृष्टांतथी जीवननी क्षणभंगुरता बतावी छे. रोगोथी शरीरनो ध्वंस, अने इंद्रियबळनी क्रमिक हानिनी वात पण सुंदर रीते रजु करी छे. अगियारमुं अध्ययन बहुश्रुतपूजा छे. जेमां बहुश्रुत थवानी भूमिका, अबहुश्रुतनुं स्वरूप, विनीत अने अविनीतना लक्षणो पण आ अध्ययनना माध्यमे जाणी शकाय छे. बारमुं अध्ययन हरिकेशीय छे. जेमां हरिकेशबल मुनिनो परिचय छे. भावयज्ञ अने भावरनाननी वात आ अध्ययनना माध्यमे प्राप्त थाय छे. तेरमुं अध्ययन चित्तसंभूतीय छे. जेमां बे भाइओना छ जन्मोनी पूर्वकथानुं वर्णन छे. चौदमुं अध्ययन इक्षुकारीय छे. जेमां इक्षुकारनगरना छ जीवोनो परिचय आपवामां आव्यो छे.
पंदरमुं अध्ययन सभिक्षु छे, जेमां साधुना गुणो अने आचारपरक जीवनवर्णन आ अध्ययनमां करवामां आव्युं छे. सोळमुं अध्ययन ब्रह्मचर्य छे, जेमां ब्रह्मचर्यना समाधिस्थानो विशे उल्लेख करवामां आवेल छे. तेमज दस समाधि स्थानोनुं पद्य रूपे निरूपण करवामां आव्युं छे. सत्तरमुं अध्ययन पापश्रमणीय छे. जेमां अष्टप्रवचनमाताना पालनमां कुशील आचरणथी पथभ्रष्ट थयेला साधुना स्वरूपनी विगतो वांचवा मळे छे. अढारमुं अध्ययन संजयीय छ, जेमां राजा संजयनु पूर्वभवनो वृतांत, विगेरे कथाओनो समावेश आ अध्ययन अंतर्गत करवामां आवेल छे. ओगणीसमुं अध्ययन मृगापुत्रीय छे. जेमां मृगापुत्रनो वैभव, तेमज
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मृगापुत्रनी संयमसाधनानुं वर्णन करवामां आवेल छे. वीसमुं अध्ययन महानिर्ग्रन्थीय छे. जेमां मोक्ष अने धर्मनुं कथन छे तेमज राजा श्रेणिक साथे अनाथी मुनिनो संवाद छे. एकवीसमुं अध्ययन समुद्रपालीय छे, जेमां वणिक पुत्र समुद्रपालनी कथा छे, बावीस अध्ययन रथनेमीय छे, जेमां राजीमति रथनेमिने उन्मार्गथी सत्पथ पर लावता राजीमति अने रथनेमिना शब्दचित्रनुं हृदयस्पर्शी चित्रण छे.
१३
त्रेवीसमुं अध्ययन केशी गौतमीय छे, जेमां पार्श्वनाथ प्रभुना शिष्य केशी अने भगवान महावीरना शिष्य गौतम वच्चे थयेलो संवाद, जिज्ञासा अने मिलननी वातोनुं आलेखन छे. चोवीसमुं अध्ययन प्रवचनमाता छे, जेमां पांच समिति अने त्रण गुप्तिनुं सुंदर वर्णन प्रस्तुत कर्तुं छे. पच्चीसमुं अध्ययन यज्ञीय छे, जेमां जयघोष अने विजयघोष मुनिनो संवाद छे. वेद अने यज्ञनी अशरणतानी वात आ अध्ययनना माध्यमे मळे छे. छव्वीसमुं अध्ययन समाचारी छे, जेमां साधुनी दशविध सामाचारीनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. सत्यावीसमुं अध्ययन खलुंकीय छे, जेमां गर्गमुनिनो परिचय तेमज अविनीत शिष्योनी अविनीतताने वर्णववामां आवी छे. बळदना दृष्टांत द्वारा अविनीत शिष्योनी क्रियानुं वर्णन छे.
.
अट्ठावीसमुं अध्ययन मोक्षमार्ग गति छे. जेमां मोक्षमार्गरूप रत्नत्रयीनुं विस्तारथी वर्णन छे. ओगणत्रीसमुं अध्ययन सम्यक् पराक्रम छे. जेमां सम्यक् पराक्रमना ७३ स्थानो बताया छे. त्रीसमुं अध्ययन तपोमार्गगति छे. तेमां बार प्रकारना तपनी विविध विगतोनो समावेश थाय छे तेमज तपाचरणना फळनो निर्देश करवामां आवे छे. एकत्रीसमुं अध्ययन चरणविधि छे. जेमां चारित्रनुं वर्णन छे. बत्रीसमुं अध्ययन प्रमादस्थानीय छे, जेमां विषयो तरफ प्रवृत्त इन्द्रियोनी वृत्तिने निरोध करवानो उपदेश छे. तेजम विषयोथी निवृत्ति अने तेना फळनी वात आ अध्ययनथी जाणी शकाय छे. तेत्रीरामुं अध्ययन कर्मप्रकृति छे. जेमां रांगारना परिभ्रमणनुं मूळ कारण अने कर्मनी विभावना आ अध्ययनमां दर्शावी छे. चोत्रीसमुं अध्ययन लेश्या छे. जेमां लेश्याओनुं विविध निक्षेपा वडे वर्णन करवामां आव्युं छे. पांत्रीसमुं अध्ययन अनगारमार्गगति छे. जेमां अणगारना गुणोनी साथे आहार अने आवास आराधना अने साधनानुं वर्णन करवामां आव्युं छे. छत्रीसमुं अध्ययन जीवाजीवविभक्ति छे, जेमां जीव- अजीवना भेद - प्रभेदनं विस्तारथी वर्णन करवामां आव्युं छे.
आम उत्तराध्ययनसूत्रनी भावयात्रा करावी आपती आ कृति अत्रे सौ प्रथम वार प्रकाशित थाय छे.
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कर्ता परिचय :- आ कृतिना कर्ता अंचलगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरिनी परंपराना सोममूर्ति वाचक द्वारा आ कृतिनी रचना थई छे. आ
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फरवरी - २०१४ कृतिनी छेल्ली कडीना प्रथम चरणमां आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरि महाराजनी कृपाथी आ कृतिनी रचना करी होवानो उल्लेख स्वयं कविए कर्यो छे. त्यारबाद ए ज कडीना त्रीजा चरणमां कविए पोताना नामनो निर्देश कर्यो छे. ज्ञानमंदिरमां सोममूर्ति वाचकना समयमां लखायेली बे हस्तप्रतो प्राप्त थाय छे. जेमां बन्ने हस्तप्रतमां सोममूर्ति वाचकना शिष्य तरीके रत्नमूर्तिवाचकनो उल्लेख थयेलो छे. आम सोममूर्तिना शिष्य रत्नमूर्ति होवानुं जाणी शकाय छे. ए सिवाय सोममूर्ति वाचक अंगे विशेष माहिती जोवामां आवी नथी.
प्रत परिचय :- आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमां प्रत क्रमांक ४७५८९ना आधारे आ कृतिनुं संपादन थयुं छे. आ प्रतमां कुल बे पत्र छे. प्रतनी लंबाइ से. मी. २५४१२ छे. दरेक पत्रमा ९ पंक्तिओ छे. तेमां आशरे १० थी ११ अक्षरो सुचारू रूपे आलेखायां छे. प्रतलेखन संवतनो उल्लेख नथी, पण लेखनना आधारे आ प्रत १९मी सदीमां लखाई होवानी संभावना छे.
।। श्री उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय ।।
|| वीर जिणंद नमेवि, श्रीसिद्धारथकुलतिलु ए । कनकवरण शरीर, त्रिसलानंदनगुणनिलु ए ।।१।। हस्तपालनंइ राजि, चरम चउमासुं तिहां रहीआ ए । आणी पर उपगार, अरथ अनोपम बहु कहीआ ए ||२|| उत्तराध्ययन छत्रीस सूत्र, अरथ जे सांभलइ ए । धिन धिन ते नरनारि, रिद्धि-वृद्धि संपति मिल[इ] ए ।।३।। विनया(य)अध्ययन वखाणि, साधुविनय प्रकासीउ ए । बीजुं परीसहा(ह)अध्ययन, जगगुरुइ श्रीमुखि भासीउ ए ||४|| चउरंगी त्री जोइ, असंखयुं चउy सुणु ए । अकाममरण सकाम, अध्ययन पांचमुं ते भणुं ए ।।५।। खुडगी छठे होइ, एलका सातमु सही घणु ए । कपिल अनइ नेमीराय, द्रुमपति(त्त) एकादसमुं गणुए ।।६।। बहुश्रुत अध्ययन अपार, बहुश्रुतपूजा आचरु ए । हरिकेसीय अध्ययन, सुणतां भवसायरतरू ए ||७||
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श्रुतसागर - ३७
चित्रसंभूत सुजाण, इखुकारराय [कारीय] चऊदसमु ए | भिखु पनरमुं कहेसि, ब्रह्मवारी सोलमुं नमु ए ।।८।। पाप समण[अ]ध्ययन, पाप सवे ते मुकीइ ए । संजि(जइ)नी(ते) अढारमुं अध्ययन, सुणतां ध्यान न चूकीइ ए ।।९।। मृगापुत्र अध्ययन मृगर्नु, उतुं मांडीउं ए । अनाथी अणगार अनाथपणुं, जोइ छांडीउं ए ।।१०।। समुद्रपाल कुमार बइठां, गउषि निहालीउं ए । देखी हणता चोर, संयम लेइ पालीउं ए ।।११।। बावीसमं रहिनेमि, राजीमती जे कहिंउं ए । वचन सुणीअ वइर(रा)गि, संयममारगि थिर रहिउ ए ।।१२।। केसी गौतम बेइ, संजिमनी चरचा करीए। आवी वीर पासि, मुगति वधू हेलां वरी ए ।।१३।। चउवीसमु अध्ययन प्रवचन, समाचरी कहीउं ए । सूध्य साधुनइ सीख, सहि गुरु मुखथी लहिउ ए ।।१४ || जइघोष विजइघोष भाइ, सामाचारी छवीसमुंए । गरगाचारय जाणि, मोक्ष मारग न अठावीसमु ए ।।१५।। समिकित पराक्रम अध्ययन, समकित सूधू पालीइ ए । तप मारगर्नु त्रीस, विधि चरित्र दोष टालीइ ए ।।१६ ।। प्रमादर्नु परिहार, करम प्रकृति जाणयो ए । बत्रीनेइं तेत्रीस लेसा चउत्रीसमुं आणयो ए ।।१७।। अणगारनुं पांत्रीस, छत्रीस मइ विस्तर घणु ए । जीवाजीवादिक भेदा, उलटी आणीउं ते भणु ए ।।१८।। ए नाम छत्रीस सूत्र, अरथि सांभली जे सदृहि । ते भव्य प्राणी हेऊ आणी, वीर जिना गोतमनई कहि ।।१९।। श्रीधरममूरति प्रसादि, हिरख आणी गावसि । सोममूर्ति कहि नरनारि, निश्चिइ मुगतिना सुख पामसि ।।२०।।
।। इति उत्तराध्ययन स्वाध्याय संपूर्ण ।।
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जैनदर्शनमां पांच ज्ञाननुं स्वरूप
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डॉ. भानुबेन शाह
मानवसंस्कृतिना उदयकाळथी ज ज्ञान विमर्शनो विषय रह्यो छे. हालनी सभ्यता अने संस्कृतिए ज्ञाननी महत्ताने एकमते स्वीकारी छे. जैन ज्ञाननी विशद चर्चा आगम ग्रंथो तेमज अन्य आगमेत्तर ग्रंथोमां जोवा मळे छे. जैनदर्शननुं 'श्री नंदीसूत्र' नामनुं मूळ आगम ज्ञानमीमांसानुं सर्वश्रेष्ठ साहित्य छे. पूर्वे 'ज्ञानप्रवाद' नामनुं पांच पूर्व हतुं, जेमां पांच ज्ञाननी चर्चा करवामां आवी हती.
आ पूर्वमां अंबाडी सहितना हाथीना वजननी बराबर शाहीथी लखी शकाय तेलुं श्रुत हतुं. 'श्री भगवतीजी सूत्र, श्री रायप्रश्नीय सूत्र, श्री ठाणांग सूत्र, श्री उत्तराध्ययन सूत्र, श्री आवश्यक निर्युक्ति जेवा आगम ग्रंथोमां ज्ञाननी चर्चा करवामां आवी छे. आ सिवाय पण आगमेतर जैन परंपराना साहित्यमा वाचकप्रवर उमास्वातिकृत श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र अने कर्मग्रंथ विगेरेमां पण ज्ञाननी विचारणा जोवा मळे छे.'
श्री रायप्रश्नीय सूत्र - १२९मां पार्श्वप्रभुना शिष्य केशीस्वामी प्रदेशी राजाने पांच ज्ञाननुं स्वरूप समजावे छे. अने एटले ज भगवान महावीरस्वामी पूर्वे पण पांच ज्ञाननी प्ररूपणा हती तेवुं सिद्ध थाय छे. कर्मग्रंथमां पांच ज्ञाननुं विवरण छे. श्री ठाणांगसूत्रमां पांच ज्ञानने संक्षेपमां प्रत्यक्ष अने परोक्ष बे प्रकारमां समावेश करेल छे.
२. श्रुतज्ञान परोक्ष छे.
३. अवधिज्ञान
श्री नंदीसूत्रमां (सूत्र - २) ज्ञानना पांच प्रकाराने प्रत्यक्ष अने परोक्ष एम बे भागमां विभक्त करवामां आव्या छे. अहीं इन्द्रियजन्य ज्ञानने परोक्ष अने आत्मजन्य ज्ञानने पत्यक्ष संज्ञा आपवामां आवी छे. न्यायना ग्रंथोमां पण इन्द्रियजन्य ज्ञाननी प्रत्यक्षमां गणना करी छे. आ रीते लोकानुसरण पण स्पष्ट थाय छे. आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणे आ समीकरणने लक्षमां राखी इन्द्रिय प्रत्यक्षने सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष नाम आप्युं वस्तुतः इन्द्रियना माध्यमथी थतुं ज्ञान परोक्ष छे परंतु लोकव्यवहारे तेने प्रत्यक्ष मानवामां आवे छे.
अहीं स्पष्ट थाय छे के
१. इन्द्रियजन्य मतिज्ञान पारमार्थिक दृष्टिए परोक्ष अने व्यवहारिक दृष्टिए प्रत्यक्ष छे.
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४. मनपर्यवज्ञान अने
५. केवळ ज्ञान पारमार्थिक छे.
ज्ञाननी व्याख्या : ज्ञान एटले जाणवुं जाणवुं ए जीवनो गुण छे. जीवअजीव भेदनुं मुख्य कारण ज्ञान छे.
१. जेनाथी वस्तुना स्वरूपनो निर्णय थइ शके ते ज्ञान. (नंदीसूत्र ) २. ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी प्रगट थतो आत्मानो गुण ३. स्व अने परनुं जाणपणुं ते ज्ञान. (प्रमाणनय पृ. ५)
४. सत् अने असत् नुं पृथ्थकरण करी शके ते ज्ञान.
५. ज्ञेय पदार्थोनी विशेष जाणकारी आपनारी चैतन्यशक्ति ते ज्ञान. पांच ज्ञाननुं स्वरूप :
१.
मतिज्ञान : पांच इन्द्रियो अने मनशी थनारुं ते ते विषयने जणावनाएं ज्ञान ते मतिज्ञान छे. चक्षुथी रूपविषयक, घ्राणथी गंध विषयक जिह्वाथी रसविषयक, त्वचाथी स्पर्शविषयक, श्रोत्रथी शब्दविषयक अने मनथी संकल्प - विकल्पविषयक जे ज्ञान थाय छे ते मति - ज्ञान छे. तीव्रता, मंदतानुसार मतिज्ञानमां पण तारतम्यता होय छे. कोई शीघ्र सगजे, कोई गोडेथी सगजे, कोई वारंवार जाणवाथी सगजे, कोई प्रसंगे आपमेळे समजे. मतिज्ञानने आभिनिबोधिक ज्ञान पण कहेवाय छे. अभि = समीप रहेल पदार्थोंनो, नि निश्चयात्मक बोध थाय ते अभिनिबोध, ते उपरथी स्वार्थमां 'इकण' प्रत्यय लागवाथी आभिनिबोधिक शब्द बने छे. पदार्थनी हाजरीमा थतो संशयरहित बोध ते आभिनिबोधिक ज्ञान आ ज्ञान मतिज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमथी उत्पन्न थाय छे.
=
२. श्रुतज्ञान : आ ज्ञान पण इन्द्रियो अने मनथी ज थाय छे. तथापि जे ज्ञान प्राप्त करवामां भणावनार अने समजावनार गुरुनी अने शास्त्रादिनी जरूरियात रहे अर्थात् गुरु के आगमादि शास्त्रोना आलंबने जे ज्ञान प्राप्त थाय छे ते श्रुतज्ञान कहेवाय छे. जेम कोई पण पुस्तक विगेरेनुं एक पानुं चक्षुथी वांची जवुं ते मतिज्ञान छे परंतु तेमां रहेला हार्दने - परमार्थने जाणवुं समजवं ते श्रुतज्ञान छे. शब्दोमां रहेलो परमार्थ पामवो ते श्रुतज्ञान छे.
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आ परमार्थ समजावनार कोई गुरु होय तो ते परमार्थने पामवो सुगम बनी जाय छे. श्रुतज्ञान शब्द अथवा संकेतथी थाय छे. ते ज्ञानमां मुख्यता होवाथी ते मननो विषय मनाय छे बोलवु ए वचन छे परंतु बोलवानो जे अर्थ होय ते श्रुतज्ञान
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फरवरी - २०१४ छे. शब्द द्वारा अर्थ प्रगट थाय छे तेथी तेने द्रव्यश्रुत कहेवाय छे. अनंत तीर्थंकर भगवंतो श्रुतज्ञानना माध्यमे ज मोक्षमार्गनी प्ररूपणा करे छे.
श्रुतज्ञानना बळे ज केवळज्ञाननो दीपक प्रगटे छे. भगवान ऋषभदेवे पोतानी पुत्री ब्राह्मीने अक्षरोना आलेखननुं ज्ञान आपी आ जगत उपर मोटो उपकार को छे. आ विश्वनो व्यवहार श्रुतज्ञानने आभारी छे. एकेन्द्रिय अने विकलेन्द्रिय जीवोमां पण किंचित् रूपे श्रुतज्ञाननो क्षयोपशम जोवा मळे छे. वादळनी गर्जनाथी केटलीक वनस्पति खीले छे, तो केटलीक वनस्पति चंद्र अने सूर्यना दर्शनथी खीली उठे छे. कोई मदिराना छंटकारथी नवपल्लवित थाय छे. हा! तेमनुं श्रुत अज्ञान अव्यक्त छे.
३. अवधिज्ञान : इन्द्रिय अने मननी सहायता विना सीधे-सीधुं आत्माने पदार्थनुं थतुं ज्ञान ते अवधिज्ञान छे. आ ज्ञान देव-नारकीने जन्मथी मरण पर्यन्त पंखीने मळेली उडवानी शक्तिनी जेम भवप्रत्ययिक सदा काळ होय छे. अने मनुष्य अने तिर्यंचोने तप-संयमादि विशिष्ट गुणोने आश्रयीने ज थाय छे माटे गुणप्रत्ययिक कहेवाय छे.
अहीं अवधि एटले मर्यादा अमुक चोक्कस प्रकारनी मर्यादा साथेनो आत्माने सीधो बोध करावे ते ज्ञान एटले अवधिज्ञान, जेम टेलिविझनना पडदा उपर दूरदूरना दृश्यो जोइ शकाय छे. तेम अवधिज्ञानी दूर दूरना दृश्यो जोइ शके छे. विशेषावश्यक भाष्य अनुसार जे ज्ञान अधिकाधिक अधोगामी रूपी पदार्थने जाणे छे ते अवधिज्ञान छे.
अवधिज्ञानी छ द्रव्यमांथी फक्त पुद्गल द्रव्यने ज जाणी शके छे कारण के पुद्गलरूपी द्रव्य छे. सामान्य अवधिज्ञानी पुद्गलना स्कंध, देश जोई शके छे. मध्यम ज्ञानी परमाणुने जोई शके छे. परमावधिज्ञान अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान प्राप्त करावे छे. परमावधिज्ञान चरम शरीरीने थाय छे.
४. मनापर्यवज्ञान : इन्द्रिय अने मनना माध्यम विना ज आत्मा संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवोना मनोगत भावोने जाणनारुं ज्ञान ते मनःपर्यवज्ञान छे. मन ए मनोवर्गणाना पुद्गलोथी बनेलुं छे. मनमा जे विभिन्न आकारो प्रगट थाय छे, एना आधारे मन लब्धिधारी आत्मा बीजाना मानसिक भावोने जाणी शके छे. मनःपर्यवज्ञान फक्त मनुष्य गतिमां ज थाय छे. आ ज्ञान उत्तम साधु-साध्वीने थाय छे.
५. केवळज्ञान : त्रणे काळ, अने सर्व रूपी-अरूपी पदार्थोने एक साथे संपूर्णपणे जाणनारुं ज्ञान ते केवळज्ञान (पूर्णज्ञान) कहेवाय छे आ ज्ञान फक्त मनुष्यगतिमां ज थाय छे.
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श्रुतसागर - ३७
बृहत्कल्प भाष्यमां केवळज्ञानना पांच लक्षण दर्शाव्या छे. १. असहाय - इन्द्रिय अने मन निरपेक्ष. २. एक - ज्ञानना सर्व प्रकारोथी विलक्षण, श्रेष्ठ, ३. अनिवरति व्यापार - अविरहित उपयोगवाळो. ४. अनंत - अनंत ज्ञेयनो साक्षात्कार करवावाळु. ५. अविकल्पित - विकल्परहित, विभाग रहित. कर्मग्रंथ भा-१मां पण केवळज्ञानना पांच अर्थ बताव्या छे.
चार घाति कर्म क्षय करनार उत्तम साधु ज केवळज्ञाननो स्पर्श करी शके छे. केवळज्ञानी अपरिमित क्षेत्र, अपरिमित भावोने जाणी शकवानुं सामर्थ्य धरावे छे प्रत्येक द्रव्यना अनंतानंत पर्यायोने साक्षात् करवानुं वैशिष्टय केवळज्ञानमां छे. आधुं ज्ञान धरावनार 'सर्वज्ञ' ज सर्वज्ञतानी मौलिक अवधारणा जैनोने ज अभ्युपगम
छे.
__ मति आदि चार ज्ञानो क्षयोपशमिक भावनां छे. अने केवळज्ञान क्षायिक छे. अने आवरण संपूर्ण क्षय थया पछी जे ज्ञान प्रगट थाय ते क्षायिक कहेवाय छे. अने आवरण उदयमां होवा छतां मंद उदय थवाथी कंईक अंशे ज्ञान प्रगट थाय अने कंईक अंशे आवरणनो उदय पण होय तो तेने क्षयोपशमभाव कहेवाय छे. तेनाथी थयेलां ज्ञानो क्षायोपशमिक कहेवाय छे. आवरणनो सर्वथा विनाश ते क्षय, अने तीव्र आवरणने मंद करीने भोगवq ते क्षयोपशम जाणवो. मति आदि चार ज्ञाननो एकी साथे एक जीवमां होई शके छे, परंतु केवळज्ञान थाय त्यारे प्रथमना चार ज्ञानो होतां नथी. आत्मानी ज्ञानशक्ति पांच प्रकारनी होवाथी तेने आवरण करनारं ज्ञानावरणीय कर्म पण पांच प्रकारनुं छे.
अज्ञान : विपरीत ज्ञान, संशय विमोहयुक्त ज्ञान, जड़-चेतनमां भेद, रतिअरति करावनारुं ज्ञान अज्ञान कहेवाय छे. जेम सम्यग्दृष्टिनुं जाणपणुं ए ज्ञान छे, तेम मिथ्या दृष्टिनुं जाणपणुं ए अज्ञान कहेवाय छे. तेना त्रण प्रकार छे. (१) मति अज्ञान, (२) श्रुत अज्ञान, (३) विभंगज्ञान.
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञानना स्वरूपमां वैपरीत्य प्रगटता ते मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, अने विभंगज्ञान रूपे जणाय छे. ज्यारे मनःपर्यवज्ञान अने केवळज्ञानमां मिथ्यात्वनो अभाव होवाथी अज्ञानजन्य भेद नथी.
अज्ञानी मात्र व्यवहारिक जगतना पदार्थोने बराबर जाणे अने माने छे. आत्मा
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२०
___ फरवरी - २०१४ अने शरीरने एकमेक माने, द्रव्यना गुण अने पर्यायोने समग्रभावे न जाणे के एना स्वरूपने पण न समजे तेमज ए बाबतमां श्रद्धानो पण अभाव होय. आत्मा सिवायना पदार्थो प्रत्ये उदासीनभाव ए ज सम्यक्ज्ञान छे, ए सिवायनुं अन्य अज्ञान छे. मिथ्यात्वना कारणे पदार्थनी संपूर्ण सत्यतानो निर्णय न थई शके. अवधिज्ञान द्वारा प्रगट थयेला ए ज्ञानने अखंड (पूर्ण) मान, विभंगज्ञान छे. आ ज्ञान संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवोमां ज उत्पन्न थाय छे. आम जीवविशेषमां विविध कर्मना क्षये उपरोक्त पांचेय ज्ञान प्रगट थवानी योग्यता छे. अने एना आधारे जीवना विकासनी पण महत्ता जैन परंपरामां खूब सारी रीते दर्शाववामां आवी छे. विस्तृत ज्ञाननी समजणा आपता जैन ग्रंथो अने जैनागमो पण आजे सारा एवा प्रमाणमां उपलब्ध छे. कर्मग्रंथ, ज्ञानबिंदु, नंदीसूत्र, विशेषावश्यकभाष्य जेवा केटलाय विशिष्ट कोटिना ग्रंथो जैन दर्शनना पांचेय ज्ञान उपर सारो एवो प्रकाश पाथरे छे.
श्रुतसेवानो एक अभिप्राय ज्ञानमंदिर व्यवस्थापकश्री, कोबा संस्थान धर्मलाभ
अमारा जणाव्या मुजब प्राचीन हस्तप्रतो, झेरोक्ष करावीने जे पत्रो तमारी संस्था द्वारा मोकलवामां आव्या ते बराबर मळी गया छे. अमारा काम माटे आ बधुं उपयोगी बने तेवू छे. खरेखर आ काळमां आवा प्रकारचें काम करवू, आटला मोटा प्रमाणमां प्राचीन प्रतो भेगी करवी, 'सर्वजनहिताय' ए आखो ज्ञानसंग्रह खुल्लो मूकवो, ए खरेखर केटलुं बधुं उमदा काम कहेवाय? आना प्रेरक उदारहृदयी पू. आ. श्री पद्मसागरसूरिजी महाराजे आ विराट कार्य कर्यु छे, ए निःशंक कही शकाय संशोधक विद्वानो माटे अहीं अखूट खजानो पड्यो छे.
लि. मुक्तिमुनिचन्द्रवि. ना धर्मलाभ
(पू. कलापूर्णसूरिजी समुदाय)
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श्री भद्रावती तीर्थ : एक परिचय
(कच्छनुं एक प्राचीन महातीर्थ )
मुनि विद्याविजयजी.
रहे छे उल्लु गुल्शनमां, हतो ज्यां वास बुलबुलनो ; मयूरा ज्यां हता त्यां राग, गाये कागडाओ छे.
कच्छ एक महापुरातन देश छे, ए वात समजाववा जेवी नथी रही. प्राचीन कालना आ कच्छ देशमां एवी नगरीओ होवानुं संभवित छे, के जेनी जाहोजलाली देश-देशान्तरोमां फैलायेली हशे अने तेमांये कच्छदेश हमेशांथी दरिया किनारे आवेलो देश होवाथी ए दरियाकांठानां शहेरो महाबंदरों तरीके व्यापारनां केन्द्रस्थानो तरीके प्रसिद्ध होय, ए पण स्वाभाविक छे.
कच्छमां 'भद्रेश्वर' नामनुं एक गाम छे, के जे कच्छना मुद्रा तालुकामां आवेलुं छे. आ भद्रेश्वर एक प्राचीन जमानानी 'भद्रावती' नगरी. बीजा शब्दोमां कहीए तो चौदमी शताब्दीना प्रारंभमां थयेला महादानी जगडुशाहनी जे भद्रावतीनुं वर्णन जैन ग्रंथोमां आवे छे ते आ ज भद्रावती.
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एक काळे जे नगरीनी भागोळमां ज दरियो उछाळा मारी रह्यो हशे, ज्यां हजारो वहाणोनी आव- जावथी अने लोकोना कोलाहलथी काने पड्युं संभळातुं नहि हशे, मोटा मोटां शिखरोथी आकाशने स्पर्श करी रहेलां मंदिरोना घंटानादो गाजी रह्या हशे, मोटी मोटी अट्टालिकाओथी सुशोभित असंख्य महेलो पोतानी सुंदरता बताववा स्पर्धा करी रह्या हशे अने ज्यां अनेक प्रकारना बागबगीचाओ जुदी जुदी जातनां पुष्पोनी सौरभो माइलो सुधी फेलावता हशे, ते भद्रावती नगरी आजे -
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"रहे छे उल्लु गुल्शनमां, हतो ज्यां वास बुलबुलनो, मयूरा ज्यां हता त्यां राग, गाये कागडाओ छे."
आ कथननी सत्यता शाबीत करी रही छे. परिवर्तनशील संसारमा एम थतुं ज आव्युं छे. भद्रावती नगरीनो इतिहास बहु जूनो बताववामां आवे छे. कहेवाय छे के महाभारतमां वर्णवेली यौवनाश्व राजानी नगरी, ते आ ज भद्रावती अने पांडवोए अश्वमेधनो घोडो पण अहीं ज बांध्यो हतो.
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उपरनी वात तो बहु पौराणिक छे. पण जेने आपणे इतिहासकाळ कहीए, ए समयनां प्रमाण लइए तो पण भद्रावती एक प्राचीन नगरी हती, एम सिद्ध थाय छे.
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२२
फरवरी - २०१४ भद्रावतीनो इतिहास अत्यारना 'भद्रेश्वर'ना जैन मंदिरनी साथे घनिष्ट संबंध धरावे छे. विक्रम संवत चारसो पचास वर्षों पूर्वे, एटले आजथी लगभग २४४४ वर्ष उपर, आ नगरीना देवचंद्र नामना एक जैन धनाढ्ये एक विशाल जैनमंदिर बनावेलुं. एबुं एक ताम्रपत्र उपरथी जणायुं छे. आ ताम्रपत्रमांना उल्लेख प्रमाणे वीर नि. सं. २३मां आ मंदिर बन्यु. आ मूळ ताम्रपत्र भुजना कोइ यति पासे छे, अने तेनी नकल भद्रेश्वरना मंदिरमा साचवी राखेल छे. तेम ज कच्छनी भूगोळमां पण छपायेल छे. विक्रम संवत् आठथी दश सुधी भद्रावती नगरी पढीयार जातिना राजपुतना हाथमां हती, एम श्रीयुत लालजी मुलजी जोशी पोताना 'कच्छनी लोककथा' नामना पुस्तकमां लखे छे.
जुनी भद्रावतीना जे अवशेषो अहीं दृष्टिगोचर थाय छे, तेमां जगडुशाहे बंधावेली 'जुडीआ वाव' 'माणेश्वर चोखंडा महादेवनुं मंदिर,' 'पुलसर तलाव', 'आशापुरीमातानुं मंदिर' 'लालशा बाजपीरनो कुबो, 'सोल थांभलानी मस्जीदो', 'पींजरपीरनी समाधि' अने 'खीमली मस्जीद' - आम हिंदु-मुसलमान संस्कृतिना अनेक अवशेषो अहीं मोजूद छे. तेमांना केटलाक उपर अने केटलाक पाळीयाओ उपर शिलालेखो पण छे. दाखला तरीके आशापुराना मंदिरना एक थांभला उपर संवत् ११५८ नो लेख छे. केटलाक पाळीयाओ उपर संवत् १३१९ना लेखो छे. चोखंडा महादेवना मंदिरनी डेलीना एक ओटलाना चणेला पत्थरमां संवत् ११९५नो सिद्धराज जयसिंहना समयनो लेख छे. कहेवाय छे के आ पत्थर दुधियावाला मंदिरमाथी लावीने बेसाडवामां आव्यो छे.
चोवीसो वर्ष उपर देवचन्द्र नामना गृहस्थे बनावेला महावीरस्वामीना मंदिरनो जे उल्लेख उपर करवामां आव्यो छे, ते मंदिरनो जीर्णोद्धार कुमारपाल राजाए पण कराव्यानो उल्लेख मळे छे. ते पछी जे जगडुशाहनुं नाम उपर लेवायुं छे, ते जगडुशाहे आ मंदिरनो जीर्णोद्धार कराव्यो. आ जगडुशाहे देशना रक्षण माटे अढळक द्रव्य
खानां प्रमाणो इतिहास प्रसिद्ध छे. 'वीरधवलप्रबंध'मां जे 'वेलापुर बंदर'नुं नाम आवे छे ते आ ज 'भद्रावती' हतुं, एम पण इतिहासकारो माने छे.
आ प्रसंगे आपणे महादानी जगडुशाहनी दानवृत्ति जरा जोईए. हिन्दुस्तानमां पडेलो पनरोतरो दुकाल (१३१५) इतिहास प्रसिद्ध छे. जगडुशाहनुं चरित्र कहे छे के, ते वखते भद्रावती, वाघेलाने ताबे हती. जगडुशाहे तेमनी पासेथी पोताने कबजे लीधी. अने आ दुष्कालमां एटलुं बधुं दान कर्यु, के आखा देशने दुष्कालनी असर न थवा दीधी. बल्के कविओ कल्पना करे छे के, दुकाळने पण खूब खबर
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श्रुतसागर - ३७ पाडी दीधी, अने एने कहेवू पड्युं -
'मेल जगडुशाह जीवतो, (के) फरी न आq तारा देशमां.'
जगडुशाहना दान- अनुमान आपणे एटला उपरथी करीशुं के, एमनी जुदा जुदा देशमां अनेक दानशालाओ चालती हती. रेवाकांठा, सोरठ अने गुजरातमां ३३, मारवाड घाट अने कच्छमां ३०, मेवाड, मालवा अने ढालमा ४० अने उत्तर विभागमा १२ एम एमनी सत्रशालाओ (दानशालाओ) हती. वळी एमणे ८००० मुंडा विशलदेवने, १२००० मुंडा सिंधना हमीरने, २१००० मुंडा दिल्हीना सुलतानने, १८००० मुंडा मालवाना राजाने, अने ३२००० मुंडा मेवाडना राजाने अनाजना आप्या हता. वळी आ ज अरसामां मंदिरनो जीर्णोद्धार करीने पण हजारो जीवोने रोजी आपी सुखी कर्या हता. जे नगरीमां आवा दानवीरो मौजूद हता ते नगरीनी जाहोजलाली केवी हशे, एनी कल्पना करवी जरा पण कठिन नथी.
भद्रावती ए बंदर हतुं. व्यापारनुं मोटु मथक हतुं, ए वात इतिहासकारोए स्थिर करी छे. श्रीयुत साक्षरवर्य डुंगरशी धरमशी संपट पोताना 'कच्छनुं व्यापारतंत्र' नामना पुस्तकमां लखे छे :
'कच्छनी प्राचीन भद्रावती एक सरस बंदर हतुं. अने त्यांनो वेपार अने त्यांनुं वहाणवटु अति विकासने पाम्यां हता. तेरमा सैकामां ए भद्रावतीमां जगडुशाह नामे मोटो वेपारी थई गयो छे. ए बहु धनवान हतो. तेनी अनेक पेढीओ दूर देशावरोमां हती. तेनां वहाणो जगतनां बंदरोमां कीमती माल लइ आव-जा करता हता. एमणे भद्रेश्वरमां मोटुं जैनप्रासाद बांध्युं छे, जे अद्यापि पर्यन्त जैन भाईओगें यात्रानुं स्थल जणाय छे. कच्छमां संवत् १३१५नी सालमां भारे अनावृष्टि थई, लोको अने जानवरो भयंकर दुष्कालना पंजामां सपडाया हता. ते वखते जगडुशाहे पोताना भंडारो खोली मनुष्योने अन्नवस्त्रो, अने जानवरोने चारो पूरो पाड्यो हतो. एणे लाखो रूपिया धर्मादा माटे खरच्या हता.' पृ. ६-७.
आ बधा उपरथी ए नक्की थाय छे के, आ भद्रावती एक वखते जब्बर नगरी हती, अने देश-देशांतरोनी साथे व्यापारनो संबंध धरावतुं एक मोटुं बंदर हतुं, ए वात चोक्कस छे. अने ते चोदमी शताब्दी सुधी तो पुर जाहोजलालीवाळू शहेर हतुं.
पण, ते पछी तो तेनो पडतो काळ आव्यो होय एम जणाय छे. भद्रावती नगरी शाथी भांगी? ए संबंधी खास कांइ प्रमाण मलतुं नथी. पण एना जे खंडेरो वगेरे अवशेषो देखाय छे, ते उपरथी एम अनुमान थाय छे, के धरतीकंपने लीधे आ
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फरवरी - २०१४ नगरी दटाइ गइ होवी जोईए. आ संबंधमां श्रीयुत लालजी मूलजी जोशी पोताना 'कच्छनी लोककथाओ' नामना पुस्तकमां एक स्थळे भद्रावती उपर नोट लखतां लखे छे के :
'विक्रम संवत् ८ थी १० सुधी ते 'पढीयार' नामनी एक शूरवीर राजपुत कोमना हाथमां हतुं. ते पछी वाघेलाओना हाथमां आव्युं, ते पछी समा जाम जाडेजाओना हाथमां गयुं. ए रीते आपणे जोशं तो विक्रम राज्यनी तेरमी शताब्दिनी छेल्ली पचीशीमां भद्रेश्वर जाडेजा रजपुतोना हाथमां आव्युं हतुं. परन्तु पढीयार रजपुतोनी हकुमत जतां, शहेरनी उन्नति, समृद्धि पण हटवा लाग्या. धरतीकंपथी थयेला फेरफारो अने उपराउपरी पडेल दुष्कालोना कारणे, तथा राज्यना परिवर्तनना लीधे आ समृद्धिशाली शहेर दिनप्रतिदिन पतन तरफ घसडावा लाग्यु.' पृ. ५४-५५.
पण, खरी रीते चौदमी शताब्दी सुधी तो आ नगरी पुर जाहोजलालीमा हती. बेशक विद्वान् लेखक कहे छे तेम, धरतीकंपो अने दुष्काल उपर दुष्काल पडवाना कारणे अने हमेशां बनतुं आव्युं छे तेम, चडती पडतीना नियमे चौदमी शताब्दीथी आ नगरीनुं पतन शरू थयु ए वात तो खरी छे.
जो के, आवी इतिहास प्रसिद्ध भद्रावती नगरी अत्यारे खंडेरो-तुट्या-फुट्या अवशेषोना आकारमा ज देखाय,
परंतु आ जुनी भद्रावतीना खंडेरोनी नजीक ज एक 'भद्रेश्वर' नामनुं गाम छे. कच्छना मुद्रा तालुका- आ गाम गणाय छे. आ गाममां त्रणथी साडात्रण हजार माणसनी वस्ती छे. ठकुरातनुं आ गाम छे. आ गाम नवं वसावेल छे. आ गामनी उत्पत्तिना संबंधमां रावसाहेब मगनलालभाई खख्खरनो मत छ के -
'जाम रावलनुं थाणुं जूना भद्रेश्वरमां हतुं. तेने गुंदीयालीवाला रायघणजीना भाई मेरामणजीए ए थाणुं उठाडीने सर कर्यु. तेना दीकरा डुंगरजीए तेने तोडीने नवू भद्रेश्वर बंधाव्यु. ए वातने आजे चारसो वर्ष थयां छे.'
आ भद्रेश्वरथी पूर्वमां लगभग अडधा माइल दूर अनेक शिखरोथी सुशोभित जैनमंदिर अनेक धर्मशालाओ वगेरे एक मोठं धाम छे. आने 'वसही' कहेवामां आवे छे. आ मंदिर ते ज छे, के जेनो उल्लेख उपर करवामां आव्यो छे. अने जे भगवान महावीर स्वामीना निर्वाण पछी २३ वर्षे एटले आजथी लगभग २४४४ वर्ष उपर आ ज भद्रावतीना देवचंद्र नामना गृहस्थे बंधाव्युं हतुं. प्रारंभमां, आ मंदिरमां पार्श्वनाथनी मूर्ति स्थापन करवामां आवी हती. ते पछीनो इतिहास कांइ जाणवामां आव्यो नथी. पण कुमारपाल राजाए, अने संवत् १३१५ मां जगडुशाहे आ मंदिरनो जीर्णोद्धार कराव्यानी वात पहेलां कहेवामां आवी छे. कहेवाय छे के ज्यारे भद्रावती भांगी
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श्रुतसागर - ३७
२५
पडी, त्यारे आ मंदिर एक बावाना हाथमां आव्युं बावाए प्रभुनी मूर्ति उपाडी भोंयरामा राखी दीधी. त्यारपछी जैनोए संवत् १६२२ मां महावीरस्वामीनी मूर्ति पधरावीने प्रतिष्ठा करी. ते पछी तो पेला बावाए पण पार्श्वनाथनी मूर्ति जैनोने पाछी सोंपी. आ पार्श्वनाथनी मूर्ति हाल मंदिरनी पाछळ एक देवकुलिकामा मोजूद छे,
कहेवाय छे के, बीजी वार पण एवो प्रसंग आवेलो, के मंदिरनो कबजो त्यांना ठाकोरना हाथमां गयेलो, पण पाछलथी ठाकोर पासेथी जैनोए लईने संवत् १९२० मां रावश्री देशलजीना पुत्र रावश्री प्रागमलजीना समयमां जीर्णोद्धार कर्यो. छेल्लामा छेल्लो जीर्णोद्धार संवत् १९३९ ना महासुद १० ने दिवसे मांडवी निवासी शेठ मोशी तेजशीनां पत्नी मीठीबाईए कराव्यो हतो.
भद्रेश्वरना आ मंदिरनी रचना खूब खुबी वाळी छे. समतल जमीनथी मंदिरनो गभारो घणो ऊंचो अने दूर होवा छतां लगभग सो के तेथी वधारे फूट दूरथी पण मुख्य मूर्तिना दर्शन थइ शके छे. ४५०x३०० फूटना चोगानमां आ मंदिर आवेलुं छे. मुख्य मंदिरनी चारे तरफ बावन नानी नानी देरीओ छे. चार मोटा घुम्मट अने बे नाना घुम्मटो छे. घणा मोटा एवा बसो अढार थाभला छे. मंदिरनी चारे तरफ अने कम्पाउंडथी बहार पण मांडवी, भूज अने बीजां गामो तरफथी बनेली अनेक धर्मशालाओ छे. एक मोटो उपाश्रय छे. वचमां विशाल सुंदर चोक छे.
दर वर्षे फागण सुद त्रीज, चोथ, पांचमनो मेळो भराय छे. पांचमे धूमधाम पूर्वक ध्वजा चडाववामां आवे छे. मेळामां समय प्रमाणे हजारो माणसो आवे छे.
आ मंदिरनो वहीवट 'वर्धमान कल्याणजी' ए नामनी पेढी द्वारा चाले छे. भूज, मांडवी अने कच्छना बीजां गामोना आगेवान गृहस्थो आ पेढीना वहीवटदारो छे. कमीटीना प्रमुख भूजना नगरशेठ साकरचंद पानाचंद छे.
पाटणना रहीश अने मुंबईना महान वेपारी धर्मप्रेमी शेठ नगीनदास करमचंद, संवत १९८३ मां कच्छनी यात्राए हजारो माणसोनी मेदनीवाळो संघ लावेला अने आ तीर्थनी यात्रा करेली, त्यारथी आ तीर्थनी प्रसिद्धि वधारे थई छे. खरेखर, तीर्थ भव्य अने दर्शनीय छे.
भद्रावती भांगी, पण भद्रावतीनां अवशेषो अने भद्रावतीनुं आ भव्य मंदिर भद्रावतीनी भव्यतानो हजु पण परिचय करावी रह्यां छे. कच्छराज्य आ स्थाननी शोधखोळ करावे तो घणी वस्तुओ मली शके.
(जै. स. प्र. वर्ष ७ अंक नं. १ ३मांथी साभार)
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श्री खंभात तीर्थ : एक परिचय
कनुभाई एल. शाह खंभातमां अनेक जिनालयो आवेलां छे. खंभात आजे पण जैन प्रवृत्तिओनुं महत्त्व, स्थान धरावे छे. खंभातना खारवाडामां श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुनूं मुख्य जिनालय छे. अदभुत कलाकारीगीरीवाळा परिकरमां श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा बिराजित छे अने आ प्रतिमा देरासरने प्रतिभा बक्षे छे. श्यामवर्णनी, पद्मासनस्थ, पांचफणाथी अलकुंत आ प्रतिमा दिव्यता अर्पे छे. आ प्रतिमाजीनी ऊंचाई ८' ईंच अने पहोळाई ६ ईंचनी छे स्तंभन प्रभु पार्श्वनाथनी प्रतिमा प्राचीन अने चमत्कारी छे.
श्री स्तंभ पार्श्वनाथ प्रभुनो ईतिहास भव्यता अने चमत्कारोथी भरेलो छे. गई चोवीसीना श्री नेमिनाथ प्रभुना शासनमां अषाढी नामना श्रावके अनागत चोवीसीना त्रेवीसमा तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी नीलम रत्ननी एक मनोहर मूर्ति प्रतिष्ठित करी अने वर्षो सुधी तेनी सेवापूजा करी. त्यारबाद वरूणदेवे आ प्रतिमाजीनी पूजा करी. समयांतरे आ प्रतिमाजी नागराजनी पासे आवी अने पाताळलोकमां लई जईने अन्य देवोनी साथे पूजन-अर्चन करवा लाग्यो.
वर्तमान चोवीसीना वीशमां तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामिना शासनमां रामचंद्रजी रावण पासेथी सीताजीने पाछा मेळववा विशाळ सेना साथे समुद्र किनारे पडाव नाखीने रह्या हता. श्री रामचंद्रजीने समुद्र ओळंगवानी चिंता हती ते समये रामलक्षमणे नजीकना विस्तारमा एक भव्य जिनालय जोयुं. जिनालयमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी अलौकिक प्रतिमा जोइने राम-लक्ष्मण आनंद पाम्या. बंन्नेए सेवा-पूजा अने प्रभुनी भक्ति करी. त्यां नागराज प्रत्यक्ष थया. नागराजे प्रभावकारी प्रतिमाजीनो भव्य इतिहास कह्यो. राम-लक्ष्मण बनेए पुनः श्री पार्श्वनाथप्रभुनी अनेरा भावथी वंदना करी जिनालयमांथी बहार नीकळ्या त्यां ज तेमने समाचार मळ्या के समुद्र स्थंभित थइ गयो छे. परमात्मानो आवो प्रभाव जोइने राम-लक्ष्मणने खूब हर्ष थयो. ए वखते रामचंद्रजीए आ परमात्माने 'श्री स्थंभन पार्श्वनाथ' नामाभिधान आप्यु.
समयना वहेणनी साथे नवमा वासुदेव श्री कृष्ण महाराजा समुद्र किनारे छावणी नाखीने केटलाक दिवसथी रह्या हता. त्यां तेमणे जिनालयमां नीलमरत्ननी एक जिनप्रतिमाजी जोइ. ए समये नागकुमारो प्रभु समक्ष भक्ति नृत्य करता हता. नागकुमारोए श्रीकृष्णने जोया अने तेमणे श्रीकृष्णने प्रतिमाजीनो भव्य इतिहास कही संभळाव्यो. श्रीकृष्ण भगवाननी आग्रहभरी विनंतीथी आ प्रतिमा द्वारका लइ
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श्रुतसागर - ३७
२७
जवानी नागकुमारोए मंजूरी आपी. द्वारिकामां आ प्रतिमाजीने सुवर्ण अने रत्नोथी जडित जिनालयमा प्रतिष्ठित करवामां आवी. वरसोना वीतवा साथे द्वारिका नगरी एक दिवस कुदरतना काळनो भोग बनी. त्यारे अधिष्ठायक देवनी सूचनाथी एक सुश्रावके आ प्रतिमाजीने समुद्रमां पधरावी. सागरनी अंदर तक्षक नामना नागेन्द्रदेवे आ प्रतिमाजीनी एंशी हजार वर्ष सुधी पूजा - भक्ति करी. त्यारबाद वरुणदेवे चार हजार वर्ष सुधी सेवा-पूज-भक्ति करी.
एक दिवस कांतिपुरना सार्थवाह धनश्रेष्टि वेपारार्थे वहाणो लइने परदेश गया हता. आगळ जतां मधदरिये तेमनां वहाणो थंभी गयां. धनश्रेष्ठिना अथाग प्रयत्नो छतां कोइ प्रयत्नो कारगत न नीवडतां छेवटे निराश थयेला धनश्रेष्ठिए आत्मविलोपन करवानो मार्ग विचार्यो. त्यारे आकाशवाणी द्वारा धनश्रेष्ठिने जाणवा मळ्युं के समुद्रना पेटाळमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी एक भव्य प्रतिमाजी छे तेना प्रभावथी तारी आ आपत्ति दूर थशे. आ प्रतिमानो भव्य इतिहास पण आकाशवाणी द्वारा धनश्रेष्ठि जाण्यो.
धनश्रेष्ठि आ दिव्यवाणीथी हर्षित थया अने दैवी सहायथी तेमणे समुद्रना पेटाळमांथी श्री पार्श्वप्रभुनी दिव्य प्रतिमाजी बहार लाव्या. प्रतिमाजी बहार आवी के वहाणो चालवा लाग्यां. धनश्रेष्ठिए अनेरा उत्सव साथै प्रतिमाजीनो भव्य नगरप्रवेश करावी एक जिनालयमा बिराजमान करावी. आ प्रतिमाजीनी साथे अन्य बे प्रतिमाजीओ प्राप्त थइ हती तेमांथी एक पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजी चारूप गाममां अने श्रीपत्तनमां श्री नेमिनाथ प्रभुनी प्रतिमा आजे पण बिराजमान छे.
कांतिपुरना लोको २००० वर्ष सुधी आ प्रतिमाजीने हृदयना खरा भावथी पूजा करी. विक्रमना पहेला सैकामां श्रीपादलिप्तसूरि महाराजाना शिष्य बनेला नागार्जुन नामना योगीए आ प्रतिमाजीनुं हरण करीने कोटिबंध नामना रसनी सिद्धि प्रतिमाजीना प्रभावथी प्राप्त करी. कार्यसिद्धि बाद आ प्रतिमाजी सेढी नदीना किनारे खाखरना वृक्ष नीचे भूमिमां भंडारी दीधी. त्यां पण देवो द्वारा आ प्रतिमाजीनी पूजा - भक्ति थती रही.
आचार्य भगवंतश्री जिनेश्वरसूरीश्वरजी महाराजाना शिष्यरत्न श्री अभयदेव मुनि मात्र १६ वर्षनी कुमारवये सूरीपदे प्रतिष्ठित थयेला कर्मना प्रभावे आ सूरिदेव कुष्ठरोगना भोग बन्या हता आ व्याधि धर्मनिंदानुं कारण बनतां सूरिदेव भारे दुःखी थया. त्यारे शासनदेवीए सूरिदेवने प्रत्यक्ष दर्शन आप्यां अने जणायुं के शेढ़ी नदीना किनारे खाखराना वृक्ष नीचेनी भूमिमां श्री पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजी छे. शासनदेवीए प्रतिमाजीनो इतिहास जणाव्यो अने नवअंगोनी टीका रचवा पण विनंती करी.
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२८
फरवरी - २०१४ शासनदेवीना कथन मुजब श्री अभयदेवसूरीश्वरजी संघ सहित सेढी नदीना किनारे आव्या. त्यां सूरीदेवे ३२ श्लोक प्रमाण जयतिहुण स्तोत्रनी रचना करी. आ स्तोत्रनी रचना थतांज श्री स्थंभन पार्श्वनाथनी दिव्य अने अलौकिक प्रतिमाजी प्रगट थयां. आ प्रतिमाजीना स्नात्रजळथी सूरीदेवनो कुष्ठरोग तुरतज नष्ट थयो. धरणेन्द्रदेवना सूचनथी सूरीदेवे स्तोत्रनी छेल्ली बे गाथा गोपवी दीधी.
श्री संघे सेढी नदीना किनारे स्थंभनपुरमां जिनालय बंधावीने श्री अभयदेवसूरि महाराजाना वरद हस्ते श्री स्थंभन पार्श्वनाथ प्रभुनी जिनालयमा प्रतिष्ठा करावी. आ स्थान महान तीर्थरूपे प्रसिद्ध थयुं त्यारबाद सूरिजीए नवे अंगोनी टीका रची. आ अंगो उपर पूर्वे श्री शीलंकाचार्ये पण टीका रची हती. आ घटना ११मा सैकामां बनी हती. अर्थात् आ तीर्थनी स्थापना अभयदेवसूरिजी म.साहेबना समयथी थइ छे.
विक्रमसंवत १३६८मां चमत्कारिक अने दिव्य एवी श्री स्थंभन पार्श्वप्रभुनी प्रतिमाजीने त्यांथी स्थंभन तीर्थमां लाववामां आवी. खंभातनो संघ आ प्रतिमाजीनी हैयाना भावथी सेवा-पूजा-भक्ति करवा लाग्यो. शासन सम्राट आचार्य भगवंत विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजाना वरद हस्ते वि.सं.१९५५मां आ प्रतिमाजीने पुनःप्रतिष्ठित करवामां आवी. आचार्य भगवंत श्री विजयनेमिसूरीश्वरजीना उपदेशथी आ जिनालयनो जिर्णोद्धार थयो. आजे पण खंभातना खारवाडमां आ भव्य तारकतीर्थ विद्यमान छे त्रण शिखरथी युक्त आ भव्य जिनप्रासाद देवविमान सदृश शोभी रह्यो
श्री जिनप्रभसूरिए आ प्रभुजीने भव्यभयहर पार्श्वनाथना नामथी ओळखाव्या छे. भव्य अने मनोहर अनेक जिनप्रसादो खंभातमां शोभी रह्या छे जैन परंपरा अने प्रणालिकाओनो परिचय करावतां अनेक जैन संस्थानो आज पण खंभातमां विद्यमान छे. अनेक खंभात सूरि-पुंगवोना पावन पगलांथी खंभात पुनित बनेलुं छे. जैन संस्कृतिना अपूर्व वैभवने खंभाते माण्यो छे अने जोयो छे. खंभात अनेक महान ग्रंथोनी सर्जनभूमि छे. अनेक उदार श्रेष्ठीओए आ नगरनुं गौरव वधार्यु छे. भोजनशाळा, आयंबिलशाळा, धर्मशाळा आदिनी सुंदर सगवड छे.
श्री पार्श्वनाथ कल्पमां श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुजीना प्रबळ प्रभावने जणाव्यु छ : अनेक तारक तीर्थोनी यात्रानो लाभ श्री स्तंभन पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमाना दर्शनथी थाय छे. आ परमात्माने प्रणाम करवा मात्रनी भावनाथी मासखमणचें फळ मळे छे. दरिद्र पुरुष अढळक संपत्तिनो मालिक बने छे. अने दुर्भाग्य पुण्यनुं भाग्य खीली उठे छे इत्यादि.
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श्रुतसेवानो सोनेरी अवसर जीवन निर्माण अने जीवन निर्वाह श्रुतसेवाना आलंबने ० शुं तमारे श्रुतसेवाना अने श्रुतरक्षाना यज्ञमां जोडावं छे.? ० जीवनना निर्वाहनी साथे साथे जिनशासननी बेजोड सेवामां तमारे तमारी
भागीदारी नोंधाववी छे.? ० शुं तमारे श्रुतसाहित्यनी व्यापकदृष्टिए अने विशिष्टफळदायी एवा श्रुतना कार्यो ___ करवा छे? ० आवता एकहजार वर्ष सुधी तमारा करेला कार्योनी गणना थाय एवा कार्यों
तमारे आजे करवा छे? __ कलिकालना विषमकाळमां भव्यजीवो माटे आलंबन गणी शकाय एवा तत्त्वो छे जिनबिंब अने जिनागम. अज्ञाननो अंधकार उलेचवो होय तो ज्ञान खूब ज आवश्यक अने जरूरी छे. एटले आवता बस्सो के पांचसो वर्षो सुधी जिनशासननी सारामां सारी रीते सेवा आजे आपणे करी शकता होईए तो ए माध्यम श्रुतनुं छे, ज्ञाननुं छे, जिनागमनुं छे. ए सिवाय कोई एवो प्रबळ आधार नथी के जिनशासननी महती सेवा करी शकाय.
___ आजे जैन प्राच्यविद्याना क्षेत्रोने फरीथी धमधमता करवानी जरूर छे. अने ए माटे अमारे तमारी आ सेवाकार्यमां जरूर छे. आ ज निष्ठा अने विचारना बळे राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. अथाग प्रयत्न करीने पू. आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. ना विचार अने स्वप्नने श्री महावीर जैन आराधना केंद्रनी भूमि उपर साकार कर्यु छे.
भारतभरमां विहारचर्या दरम्यान श्री संघमां अने अन्य ठेकाणे उपेक्षित अने असुरक्षित आपणी श्रुतधरोहर अने संस्कृतिना वैभवने पूज्य गुरुभगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा संकलित अने सुरक्षित कर्यो छे. पूज्य गुरुभगवंतश्रीना आशीर्वादथी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा २,00,000 जेटली हस्तप्रतो अने १,७५,००० जेटला मुद्रित पुस्तकोनो सुंदर रीते संग्रह करवामां आव्यो छे. आ संग्रहने साचववा माटे अने एने वधुने वधु श्रीसंघोपयोगी बनाववा माटे, जैन हितना अने जन हितना श्रेयार्थे अहीं विविध प्रकारना श्रुत संबंधी कार्यो करवामां आवी रह्या छे. एवं आ ज्ञानमंदिर श्रुतसेवानुं अतिपरिचित अने ख्यात क्षेत्र छे. अहींनी दरेक व्यवस्था अने निर्माणना श्री संघे पेट भरीने गुण गाया छे. आवा विशिष्ट कार्यामां आपश्रीनी आवडत, आपश्रीनुं
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फरवरी - २०१४
३०
ज्ञान,
आपश्रीना मूल्यवान समयनी अमारे जरूर छे अने आवा श्रुतक्षेत्रमां जोडावा माटे आपश्रीने अमारुं हार्दिक आमंत्रण छे.
ज्ञानमंदिरनुं ध्येय अने आगामी आयोजनो :
जैनविद्या अने जैनसिद्धांतो अने परंपरानुं अवगाहन अने अभ्यास करनारा पू. साधु-साध्वीजी भगवंतो, विद्वानो, संपादको, संशोधको विगेरेने एमना योग्य विषयनुं साहित्य पूरूं पाडवुं. अने एमने ज्यां पण अभ्यास संबंधी पुस्तको माहिती विगेरेनी आवश्यकता होय ए एमने बनती त्वराए पहोंचाडवा. प्राच्यविद्यानी साथे जेना ताणावाणा जोडायेला छे एवा धर्म-दर्शन अने सिद्धांत जेवा विशिष्ट विषयो अने एनी आगवी ओळख जेवी गणाती श्रुत समृद्धिने संकलित, सुरक्षित अने संपादित करवी. जेथी आवतीकालनी सवार क्यारेय झांखी न पडी शके. अने वधुने वधु लोको श्रुतनो स्वाद माणी शके.
ज्ञानमंदिर वर्तमान कार्य आयोजन :
ज्ञानमंदिरमां पुरातनकालीन २००००० ( बे लाख ) जेटली हस्तप्रतोनो संग्रह छे, तो साथे साथे मुद्रित पुस्तकोनो १५०००० (दोढ लाख ) जेटलो विशाळ संग्रह छे. आ संग्रहने साचववा माटे एक विशिष्ट कार्य पद्धति विकसावेली छे.
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हाल हस्तप्रत ग्रंथोनुं सूचीकरणनुं कार्य चाली रह्युं छे. तेवी ज रीते मुद्रित ग्रंथोमां प्राप्य थती केटलीक विशिष्ट माहितीना सूचिकरणनुं कार्य पण हालमां चाली रह्युं छे.
संस्थामां कार्य करवाथी थता लाभो :
• तमारा कार्यनी साथे तमारी योग्यतानुसार विशिष्ट आर्थिकलाभ
• तमारा कार्यो थकी उच्च कक्षाना विद्वानो साथे परिचय केळवी शकाय वी एक सुंदरतम व्यवस्था
• तमारा ज्ञानमां अभिवृद्धि
• प्रदुषण रहित प्रकृतिसभर शांत वातावरण
संस्था द्वारा प्राप्त थता लाभो :
० अन्य संस्थाओनी अपेक्षाए सारुं पगारधोरण
• मेडीक्लेईम सुविधा
० पीएसएस सुविधा
• रहेठाणनी सुंदर व्यवस्था
० सात्त्विक आहारादिनी व्यवस्था
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श्रुतसागर - ३७ कार्य अंगेनी तमारी पोतानी सक्षमता :
0 जैन पारिभाषिक अने जैन तत्त्वज्ञाननी आवश्यक जाणकारी ० संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिन्दी अने अंग्रजी भाषानी विशिष्ट जाणकारी ० जैनधर्मनी साथे जैनेतर दर्शन अने जैनेतर साहित्यनी पण जाणकारी ० प्राचीन लिपि अने हस्तप्रत संबंधी प्राथमिक के एथी वधु कक्षानी जाणकारी ० कॉम्प्युटर संचालननी जाणकारी
[ संपर्क श्री महावीर जैन आराधना केंद्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा - ३८२००७ (जि. गांधीनगर)
०७९ - २३२७६२५२, २३२७६२४९ Email : gyanmandir@kobatirth.in Website : www.kobatirth.org
(अनुसंधान पृष्ठ ७उपरनु) * आजे आपणी कमनसीबी छे के लोको असत्यमां जेटलो विश्वास राखे छे तेटलो सत्यमां राखता नथी. हकीकतमां संसार निरपेक्ष छे. अपेक्षाओ तो आपणे संसार पासेथी राखीए छीए अने ते फळती नथी त्यारे मिथ्या दुःखी थइए छीए. जेम के गुमावेलुं धन के आसक्ति राखेली इमारत, आपणा मृत्यु पाछळ एक पण दुःखनुं आंसु सारवानां नथी. * सत्य पर प्रतिष्ठित बनेल जीवन स्वयं दयाळु बनी जशे. सत्य अने प्रेम अलग नथी, बंने एक ज सिक्कानी बे बाजु छे. एकने घसवाथी बीजानी किंमत शून्यवत् छे. बंने साथै हशे तो तेनुं मूल्य अधिक थशे. सत्य हशे ने प्रेम नहीं होय तो जीवन भाररूप बनी जशे. * सत्यने कोई सांप्रदायिकता नडती नथी. हिंदु, मुस्लिम, बौद्ध, पारसी, क्रिश्चियन
सर्व धर्मोमां सत्यने प्रथम अने अनन्य स्थान आपेल छे. सत्य सर्वमान्य छे. सत्य
ए ज भगवान छे. बाईबलमां गहुं के सत्य परमशक्ति छे, सत्य परमात्मा छे. * स्वानुभव द्वारा सत्य लाधे छे अने एटले ज सत्य कोई एक स्वरूपे नहीं परंतु
भिन्न स्वरूप प्रगटे छे. * मानवीना मनमांथी ज्यां सुधी वासना नीकळे नहीं त्यां सुधी सत्य तेनामां स्थिर
थतुं नथी.
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आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा
संक्षिप्त कार्य अहेवाल जान्युआरी-१४ ज्ञानमंदिरना विविध विभागोना कार्योमाथी जान्युआरी-१४मां थयेला मुख्यमुख्य कार्योनी झलक नीचे प्रमाणे छे. १. हस्तप्रत केटलॉग प्रकाशन कार्य अंतर्गत केटलॉग नं. १७ माटे कुल ६६० प्रतो
साथे १२९४ कृतिलिंक थइ अने आ मासांत सुधीमां केटलॉग नं. १७ माटे ५५०९ लींकनुं कार्य करवामां आव्युं. २. हस्तप्रतोना ९२४२६ पृष्ठो अने प्रीन्टेड पुस्तकोना ९६९१ मळी कुल १०२११७
पृष्ठोनुं स्केनींग कार्य करवामां आव्युं. ३. सागर समुदाय तेमज विश्व कल्याण पुनः प्रकाशन प्रोजेक्ट हेठळ कुल ५७७
पेजनी डबल एन्ट्री करवामां आवी. ४. लायब्रेरी विभागमा प्रकाशन एन्ट्री अंतर्गत कुल २४३ प्रकाशनो, ११४२ पुस्तको तथ प्रकाशनो साथे १२६१ कृति लींक करवामां आवी. आ सिवाय डेटा शुद्धिकरण कार्य हेठळ जुदी-जुदी महितीओना रेकॉर्ड्समां सुधार कार्य करवामां
आव्यु. ५. २०० पीडीएफ फाईलोने लायब्रेरी प्रोग्राममा जोडवामां आवी. ६. मेगेझीन विभागमा ९९ मेगेझीनोना अंकोनी एन्ट्री करवामां आवी. ७. १३ वाचकोने ३१ ग्रंथोना २८५४ पृष्ठोनी झेरोक्ष नकल उपलब्ध कराववामां
आवी. आ सिवाय वाचकोने कुल ६१३ पुस्तको आपवामा आव्यां तथा ६६४ पुस्तको जमा लेवामां आव्यां. ८. ज्ञानमंदिरमा १०१८ पुस्तको भेट स्वरूप प्राप्त थयां तथा रू. ४२४५.०० रू.ना
पुस्तको खरीदवामां आव्यां. ९. वाचक सेवा अंतर्गत प. पू. साधु-साध्वीजी भगवंतो, स्कॉलरो, संस्थाओ विगेरेने
उपलब्ध माहितीओना आधारे जुदी-जुदी क्वेरीओ तैयार करी आपवामां आवी, जेमाथी तेओ द्वारा जरूरी पुस्तको तथा हस्तप्रतोना डेटानो तेओना कार्यमां
उपयोग करवामां आव्यो. १०. ८४८ यात्रालुओए सम्राट् संप्रति संग्रहालयनी मुलाकात लीधी. ११. श्रुतसागरनो जान्युआरी-२०१४नो अंक नं-३६ प्रसिद्ध करवामां आव्यो.
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प्रत वाचनमा उपयोगी अने प्रतनी सुरक्षा माटे वपरातु कलात्मक पुंटुं
LOCSC
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BOOK-POST/ PRINTED MATTER प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252. फेक्स (079) 23276249 Website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org To. BOOK-POST / PRINTED MATTER For Private and Personal Use Only