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श्रुतसागर - ३७
सत्य
* सत्य ए ज धर्म छे. सत्यथी जीवनमां धर्म प्रगटे छे. जीवनमां सत्यनी कसोटी
अग्नि-परीक्षा छे, तेमांथी पसार थनार क्यांय निष्फळ जतो नथी. * वर्तमानकाळमां सत्य जेटलुं कठोर लागे छे तेटलुं ज सत्याचरणथी भावि मृदु लागे छे. अनेक कुरबानीओ अने सर्वसमर्पण विना सत्य लाव, मुश्केल छे.
आथी ज तो सत्यनो उपासक मरीने अमर बनी जाय छे. * मशीनना भागोने छूटा पाडीए तो जुदा पडेला भागने मशीननो भाग कहेवाय, ए गागोने गंगा करीए तो गशीन बने छे. एगां प्रचंड शक्ति पेदा थाय छे. तेवी रीते जगतमा जेटला जुदां जुदां दर्शनो छे, ए सत्य छे, परंतु खंडित सत्य छे. जगतनां दरेक दर्शनोमां मानवताना संस्कार भरेला छे. ए बधां खंडित सत्योने भेगा करीए तो पूर्ण सत्य बने. एमां प्रचंड शक्ति पेदा थाय छे. ए सत्यना प्रकाशमां आत्मा, परमात्माने जोवाय छे. * सत्य सहज छे ज्यारे असत्य शीखवू पडे छे. * सत्यवादीनी जगतमां घणी प्रसिद्धि होय छे. ते कदाच भूलथी असत्य बोली
जाय तो पण जगत तो तेने सत्य ज माने. पण असत्यवादी कोईवार महान
सत्य बोली जाय तो पण लोको तेने असत्य ज माने छे. * जे जीवन सत्यथी दूर छे ते जीवनमां कोई सुगंध नथी. * सत्यनी उपासना माटे जीवनमात्रमा आत्मश्रद्धानी माफक आत्म साहसनी
जरुरियात रहे छे. * Mીવનમાં સત્ય અને સ્વરૂપે પ્રગટ થતું હોય છે. માથી છો ! ન હર્શનને सत्य मानी लेवानी वात क्यारेक भ्रममां परिणमे छे. सत्यना मार्गी माटे आत्मश्रद्धा अने स्वयं नियंत्रण बंने अनिवार्य छे. जो के आम छतां सत्यनुं दर्शन हमेशां स्वानुभव द्वारा प्रगटे छे. एटले ज्यां सुधी सत्य मेळववानी साहसवृत्ति
जागे नहि त्यां सुधी केवळ माहिती पूरती नथी. * सत्यनी उपासनाथी व्यक्ति परमात्मा सुधी पहोंची शके छे. सत्यनी उपासनाथी विकारी वासनानो नाश थाय छे. सत्यनी उपासनाथी जीवनमां सदाचार आवे छे, जीवनमा संयमनी सुवास आवे छे. एक वखत सत्यने स्वीकार्या पछी तेनी पाछळ जीवन समर्पण कर जोइए, जेथी जीवनमां पूर्णता प्राप्त थाय.
(अनुसंधान पृष्ठ ३१ पर)
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