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उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय
डॉ. रतनबेन खीमजी छाडवा सज्झाय एटले स्वाध्याय सज्झाय एटले उत्कृष्ट प्रकारनो तप राज्झाय एटले पोतानुं पोताने मळवू.
साहित्यना एक प्रकार तरीके गणाती सज्झाय परिणामे जीवने विकासना पंथे वधुने वधु आगळ धपावे छे.
खास करीने सज्झाय साहित्यमां महापुरुषोनी जीवनकथाने अने आगमिक सिद्धांतोने वणी लेवामां आवता होय छे. कवि द्वारा एनी रजुआत पद्यमां सुंदर रीते थाय छे. आq ज एक पद्य एटले उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय
आ कृतिमां प्रभु महावीरगी अंतिम देशनाना साररूपे गुंथायेला उत्तराध्ययनसूत्रना छत्रीस अध्ययनोनी वात आ कृतिमां संक्षेपमां रजु करी छे. श्री उत्तराध्ययनसूत्र साधना मार्गने सिद्ध करवानी अद्भुत कळा शीखवतुं एक आगम शास्त्र छे. वैदिक (शास्त्रोमां) परंपरामां जे स्थान भगवद्गीतानुं, बुद्ध परंपरामां धम्मपदनु, पारसीमां अवेस्तानुं, इसाइमां बाइबलनु, मुसलमानोमां कुराननुं छे. एथी अधिक महत्त्व जैन परंपरामां आगमोनी श्रेणिमां उत्तराध्ययनसूत्रनुं छे.
भारत सरकारे पण उत्तराध्ययनसूत्रने नेशनल ट्रेझर (राष्ट्रीय धरोहर) तरीके जाहेर करेल छे. आ मूलागम उपर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी तथा बालावबोध, टबार्थ, स्तवनो जेवी संस्कृत प्राकृत अने देशी भाषामां अनेक कृतिओ रचाई छे. जे प्रस्तुत आगमनी लोकप्रियतानुं ज्वलंत उदाहरण छे. आ मूलागमने अढी हजार वर्ष थइ गया छतां पण वर्तमानकाळमां एटलुं ज प्रचलित छे. आ आगम चार अनुयोगमां विभक्त छे. जेमां आध्यात्मिक तेम ज नैतिक जीवन, विभिन्न दृष्टिकोणथी ऊंडाणभर्यु चिंतन छे.
आ आगम एक नोखी अनोखी भात पाडतुं आगम छे. तत्त्वनी अनुपम वातो जाणवा मळे छे. राजाथी लइ रैयत सुधीनाने उपयोगी वातोने आबेहूब रीते वर्णवी छे. तेमां सर्व शास्त्रोनो सार आवी जाय छे. प्राकृत तेमज अर्धमागधी भाषाना सुंदर दृष्टांतो आपी आगमकारे कुशळताथी छत्रीस अध्ययनोनी गूंथणी करी छे. आवा आगमसूत्र उपरथी 'उत्तराध्ययन सज्झाय' मां खूब ज सुंदर रीते कवि सोममूर्तिए छत्रीस अध्ययनोनो सार संक्षिप्तमां रजु को छे.
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