Book Title: Shrutsagar Ank 2014 03 037
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० ___ फरवरी - २०१४ अने शरीरने एकमेक माने, द्रव्यना गुण अने पर्यायोने समग्रभावे न जाणे के एना स्वरूपने पण न समजे तेमज ए बाबतमां श्रद्धानो पण अभाव होय. आत्मा सिवायना पदार्थो प्रत्ये उदासीनभाव ए ज सम्यक्ज्ञान छे, ए सिवायनुं अन्य अज्ञान छे. मिथ्यात्वना कारणे पदार्थनी संपूर्ण सत्यतानो निर्णय न थई शके. अवधिज्ञान द्वारा प्रगट थयेला ए ज्ञानने अखंड (पूर्ण) मान, विभंगज्ञान छे. आ ज्ञान संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवोमां ज उत्पन्न थाय छे. आम जीवविशेषमां विविध कर्मना क्षये उपरोक्त पांचेय ज्ञान प्रगट थवानी योग्यता छे. अने एना आधारे जीवना विकासनी पण महत्ता जैन परंपरामां खूब सारी रीते दर्शाववामां आवी छे. विस्तृत ज्ञाननी समजणा आपता जैन ग्रंथो अने जैनागमो पण आजे सारा एवा प्रमाणमां उपलब्ध छे. कर्मग्रंथ, ज्ञानबिंदु, नंदीसूत्र, विशेषावश्यकभाष्य जेवा केटलाय विशिष्ट कोटिना ग्रंथो जैन दर्शनना पांचेय ज्ञान उपर सारो एवो प्रकाश पाथरे छे. श्रुतसेवानो एक अभिप्राय ज्ञानमंदिर व्यवस्थापकश्री, कोबा संस्थान धर्मलाभ अमारा जणाव्या मुजब प्राचीन हस्तप्रतो, झेरोक्ष करावीने जे पत्रो तमारी संस्था द्वारा मोकलवामां आव्या ते बराबर मळी गया छे. अमारा काम माटे आ बधुं उपयोगी बने तेवू छे. खरेखर आ काळमां आवा प्रकारचें काम करवू, आटला मोटा प्रमाणमां प्राचीन प्रतो भेगी करवी, 'सर्वजनहिताय' ए आखो ज्ञानसंग्रह खुल्लो मूकवो, ए खरेखर केटलुं बधुं उमदा काम कहेवाय? आना प्रेरक उदारहृदयी पू. आ. श्री पद्मसागरसूरिजी महाराजे आ विराट कार्य कर्यु छे, ए निःशंक कही शकाय संशोधक विद्वानो माटे अहीं अखूट खजानो पड्यो छे. लि. मुक्तिमुनिचन्द्रवि. ना धर्मलाभ (पू. कलापूर्णसूरिजी समुदाय) For Private and Personal Use Only

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