Book Title: Shrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05 Author(s): Hiren K Doshi Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR October-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा भगवान महावीर के निर्वाण कल्याण के उपलक्ष में मनाये जानेवाले प्रकाशपर्व के शुभ अवसर पर अपने पाठकों के करकमलों में श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक प्रस्तुत करते हुए हमें असीम प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। प्रस्तत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षकके अन्तर्गत आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के पत्राचारों में से एक पत्र प्रस्तुत किया है, जो दीपावलीपर्व के बारे में वाचक को भाव दीपावली क्या होती है ? उसका परिचय कराती है। द्वितीय लेख राष्टसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक Awakening' से संकलित किया गया है, इस अंक में अनेकांतवाद और स्यादवाद पर प्रकाश डाला गया है। अप्रकाशित कति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पज्य गणिवर्य श्री सयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “केटलाक तपागच्छीय आचार्योना लघु काव्यो” के अन्तर्गत तपागच्छीय आचार्यों के गुणवैभव को प्रकाशित करनेवाले ६ लघु काव्यों का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर पालडी शहरशाखा की कार्यकर्ती श्रीमती हिरेनाबेन अजमेरा के द्वारा सम्पादित कृति “शालिभद्र गीत” में जैन इतिहास में प्रसिद्ध शेठ शालिभद्र के द्वारा पूर्वभव में किए गए सुपात्रदान का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। तृतीय लेख पूज्य साध्वी दर्शननिधि म. सा. द्वारा सम्पादित “नवकार सज्झाय" में नमस्कारमन्त्र के प्रभाव का वर्णन किया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पूज्य साध्वी चन्दनबालाश्री जी म. सा. के द्वारा सम्पादित "दीपालिकाकल्प संग्रह" पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस पुस्तक में विदुषी साध्वीजी के द्वारा दीपावलीकल्प से सम्बन्धित आठ महत्त्वपूर्ण कृतियों का शुद्धि सह संकलन किया गया है। प्रस्तुत अंक से “पाण्डुलिपि संरक्षण विधि” शीर्षक के अन्तर्गत प्राचीन हस्तप्रतों की सुरक्षा और रख-रखाव से सम्बन्धित अद्यतन विधि से सम्बन्धित लेख श्रृंखला की प्रथम कड़ी प्रकाशित की जा रही है। जो प्रत्येक ज्ञानभंडार एवं हस्तप्रत संबंधी कार्य करनेवालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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