________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
11
October-2019
SHRUTSAGAR विचारी शकाय।
कृतिकारनी अन्य कृतिओमां फक्त वच्छराज रास नामनी एक कृति मळे छ । कृतिकारना परिचय माटे तेमां अने तत्कालिन अन्य ग्रंथोमांथी तेमनुचरित्र तपासबुंजोईए।
राजसागरसूरि गुरु सज्झाय भास तथा गुरु [परंपरा] स्वाध्याय तेओ सागरगच्छना आद्य भट्टारक हता। तेमनी एक पाटपरंपरा जैन परंपराना इतिहासमां नीचे मुजब मळे छ। ___पू. लक्ष्मीसागरसूरि→महो. विद्यासागरजी-पं.जीवर्षि गणि-उपा. धर्मसागरजी-पं.लब्धिसागरजी → मुनि मुक्तिसागरजी। अहीं परंपरामा उल्लेखित मुनि मुक्तिसागरजीने उपाध्याय पद प्राप्त थता तेओ उपाध्याय राजसागरजीना नामे प्रसिद्ध थया। मूळे तेओ शिरपुर नगरना साह देवदास- कोडियदेवी (प्रस्तुत कृतिनी नोंध मुजब कोडिमदे) ना पुत्र हता। तेमणे पोताना भाई तथा मातानी साथे पू. धर्मसागरजीना वरद हस्ते चारित्र ग्रहण कर्यु । तेओ पोते समर्थवादी-विद्वान तो हता ज साथे विशिष्ट मंत्रसाधनानो पण तेमनामां समन्वय हतो। ते वखते अमदावादना नगरशेठ तरीके पंकायेला शेठ श्रीशांतिदास झवेरीना उत्कर्षमां तेमनी मंत्रसाधनानो मोटो फाळो हतो। अने तेथी ज शेठ शांतिदासे ऋणमुक्त थवा माटे ज पू. देवसूरिजी पासेथी पदस्थापना माटेनो वासक्षेप मंगावी मुक्तिसागरजीने उपाध्याय पद अपाव्यु हतुं। त्यार पछी काळांतरे आचार्यपद प्राप्त थता तेओ राजसागरसूरिजीना नामे प्रसिद्ध थया। ___ प्रस्तुत कृतिमां कविए उपरोक्त पू. राजसागरसूरिजीना गुणवैभव वर्णव्यो छे । विशेषमां सूरिजीना माता-पिताना नामोल्लेखनी तथा कविनी गुरु परंपरा वर्णना सिवायनी ऐतिहासिक कशी माहिती काव्यमां नथी। वळी कृतिकारनो परिचय पण अन्यत्र क्यांय मळतो नथी तेथी कृतिकार अंगे पण कशु लखाय तेम नथी। पाछळनी बीजी कृति “गुरुपरंपरा स्वाध्याय' ते उपरोक्त सूरिजीनी पाटपरंपरा वर्णवती कृति छे। विशेषमां अहीं काव्यमां २ नामो जोवा मळे छे । जेमांनं एक नाम नेमिसागरजीनं छे। जेओ राजसागरसरिजीना संसारी पक्षे भाई छे। ज्यारे बीजु नाम श्रुतसागरजीन छे। जेओ प्रस्तुत कृतिना रचयिता तो छ ज साथे साथे धर्मसागरजीना शिष्य, समर्थ विद्वान तथा राजसागरसूरिजी द्वारा स्थापित सागरपक्षना समर्थक होवाना प्रमाणो मळे छे। जो के आ बीजी कृतिमां पण कविए सूरिजीना विशेष गुणोनी संकलना सिवाय कशुं प्रयोज्यु नथी।
For Private and Personal Use Only