Book Title: Shrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 SHRUTSAGAR October-2019 तेनी १४ गाथाओ छ । कृतिना अंते रचना वर्षनो उल्लेख नथी। आ कृतिमां श्री नमस्कार महामंत्रना अद्भुत प्रभावथी श्रीमती, शिवकुमार विगेरेने जे लाभ थयो एनुं रोचक वर्णन छ। कर्ताए कृतिनी शरूआतमां ज नवकारमंत्रने “सकलऋद्धिसुखदायकनायक महामंत्र” एवं श्रेष्ठ बिरुद आप्यु छ । एटले के नवकारमंत्र सकल ऋद्धि अने सुखने आपनार छे एवो भाव छ। आ रीते अहीं नवकारने ज मंगल स्वरूपे समर्यो छे । जो के नवकारना महिमा रूप होवाथी संपूर्ण कृति एक मंगलरूप छे। आ कृतिमां आ लोकमां अने परलोकमां नवकारमंत्रने कोने-कोने फळ्यो एनी वात छे। १४ ज गाथानी नानकडी कतिमां श्रीमति, शिवकुमार, जिणदास, चंड-पिंगल चोर, डंडि चोर, भीलडी, राजसिंग कुमार, शुक राजा, श्रीपाल राजा जेवा (९) दृष्टांतोनो समावेश करी दीधेल छ। गाथा क्र. २ थी गाथा क्र.१३ सुधीनी गाथाओमां नवकारमंत्र कोने कोने फळ्यो तेनुं वर्णन छे १४ मी गाथामां नवकारमंत्रने कामधेनु तेम ज चिंतामणिनी उपमा आपी छ। जे वांछित सुखने आपनार छे, आवो श्रेष्ठ नवकारमंत्र मोक्षनी इच्छावाळा दरेक व्यक्तिए गणवो जोईए, आराधवो जोईए कारण के आ नवकारमंत्र सर्व पापोनो नाश करनार छ । गाथा क्र. २ अने ४ मां १-१ ज पंक्ति छ । कर्ता परिचय आ कृतिना कर्ता पू. सत्यविजयजी म.सा.ना शिष्य पू. वृद्धिविजयजी म.सा. छ। जीवविचार स्तवन, त्रिषष्टिशलाका पुरुष विचार स्तवन, नवतत्त्व विचार स्तवन, पंचमीतिथि स्तुति, ६ कायआयुष्य सज्झाय, २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन विगेरे कर्तानी अन्य रचनाओ छ। कर्तानो समय अन्य कृतिओना आधारे वि. सं. १७१२नी आसपासनो छे । ते सिवाय कर्ता विषे अन्य विशेष कोई माहिती प्राप्त थवा पामी नथी। प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबानी हस्तप्रत क्रमांक-९४८६९ना आधारे कर्यु छ । अनुमाने आ प्रत १९मी सदीनी जणाय छे । प्रतना अक्षर सुवाच्य छ । प्रतमां कुल २ पत्रो छ । प्रथम पत्रमा ५ पंक्ति अने बीजा पत्रमा १० पंक्ति छ । दरेक पंक्तिमा ३८ थी मांडीने ४२ अक्षर छ । प्रत एकंदरे सारी छ। नवकार सज्झाय सकलऋद्धिसुखदायकनायक, महामंत्र श्रीनवकार। इहलोक परलोके कवणने फलिओ, ते सुणज्यो अधिकार रे ॥१॥ भवियां श्री नवकार आराधो.. For Private and Personal Use Only

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