Book Title: Shrutsagar 2019 10 Volume 06 Issue 05
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
अक्टूबर-२०१९ इम थुणिउ मई तपगछराय, तप संयम जस निरमल काय। नमइ निरंतर नरवर-विं(वृ)द, वंदउ हीरविजयसूरिंद
॥इति श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः॥ मुनि हस्तिविजय पठनार्थं ॥छ॥
॥७॥
श्री सत्यसागर उपाध्याय कृत
विजयसेनसूरि गीत o आवउ रे सखी गुरु वंदियइ रे, श्रीविजयसेनसूरि राय रे। तपगछभूषण चिरं जयउ रे, जेहना सुर नर सेवइं पाय रे॥१॥आवउ रे....(आंकणी) बालपणि बुद्धि आगलउ रे, गुरु सकल-विद्याभंडार रे। श्रीय हीरविजयसूरि जाणीउ रे, जिणसासण(न)नु आधार रे ॥२॥आवउ रे... जिहां जिहां गछपति संचरइरे, तिहां उच्छव मंगलमाल रे। गौतम गणधर अभिनवउ रे, इम बोलइ बाल-गोपाल रे ॥३॥आवउ रे... गुणग्राहक गुणपारखी रे, श्रीपूज्य विधाता आज रे।
अतीत अनागत श्रुतबलइ रे, ए तउ जाणइ सघला काज रे ॥४॥आवउ रे... सासन-सुरइ गुरु सीखव्यउ रे, ए तउ तपगछसंघ-गोवाल रे। ध्यान सफल हवइ कीजयइ रे, जिम सोहम गछप्रतिपाल रे ॥५॥आवउ रे... रजत सोवन मणि मोतीए रे, हीरा माणिक रचना कोडि रे। अहिव सूहव पूरिं साथिया रे, गुण गाइं बे कर जोडिरे ॥६॥आवउ रे... धन नारदपुरीय वखाणीयइ रे, धन मात पिता गुरु सार रे।। रतनपुरुष जिहां अवतरिउ रे, इम लोकवाणी अवतार रे ॥७॥आवउ रे... संवत सोलअट्ठावीसमइ (१६२८) रे, तिहां गणधरपद विस्तार रे। अकिमपुरि साहइं खरचीउं रे, मूलइ धन सोवन नहीं पार रे ॥८॥आवउ रे... अट्ठाई महोछव वली करइ रे, पारिख वछराज निज घरि रंगिरे। अवर संघ धन वावरइ रे, जिणसासण उच्छव चंगिरे ॥९॥आवउ रे... सत्यसागर पंडित कहइ रे, बहु प्रतपउ ए गणधार रे। श्रीय हीरविजय पट्टोधरु रे, जगि अविचल महिमाकार रे ॥१०॥आवउ रे...
श्री मुनिसागर कृत राजसागरसूरि गुरु सज्झाय भास O॥ ॥ श्री विमलाचल देव, देखत पाप गयो री - ए ढाल ॥
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