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श्रुतसागर
जून-२०१९ श्री खेमराजमुनि कृत चारित्रमनोरथमाला
मिनाक्षी एच. शेडगे प्रस्तावना :
जेनुं एक दिवसनुं पालन पण मोक्ष आपवा समर्थ छे, जे- पालन श्री तीर्थंकर भगवंतोए स्वयं करेल छे, केवलज्ञान-केवदर्शन थया पछी जिनेश्वरोनी देशनामां सर्व प्रथम जेनी प्ररूपण कराय छे; जेनुं पालन खांडानी धार समान मनाय छे; एवा चारित्रनुं पालन करी आज सुधी अनंत-अनंत आत्माओ मुक्तिवधुने वर्या अने पुरुषार्थमां सफळ थया । ए पुरुषार्थनुं सत्त्व हजी जेओमां प्रगट्यु नथी, तेओए अंतरना उमंग अने उछरंगथी जे महान मनोरथो कर्या एने कंडारती महान कृति एटले चारित्रमनोरथमाला। वारंवार वांचन-मनन-चिंतनथी सिंह जेवू सत्त्व प्रगटाववानी क्षमता धरावती आ एक विरल कृतिनुं संपादन करवानो अहीं प्रयास कर्यों छे । चारित्रग्रहणमां अशक्त जीवो आवा मनोरथो द्वारा पोताना चारित्रमोहनीयने खपावी आगामी समयमां जरूर तेने ग्रहण करवानी क्षमतावाळा बनी शके छे। कृति परिचय :
प्रस्तुत कृति खेमराज मुनि (क्षेमराज मुनि) द्वारा मारुगुर्जर भाषामां पद्यबद्ध ५३ गाथाओमां रचायेली छे। आ कृतिमां आत्माने हितकारक एवा मनोरथोर्नु वर्णन करवामां आव्यु छ। चारित्र एटले आत्मरमणता, आत्मगुणोमां स्थिरता अने आत्ममंदिरमां भेगा थयेला कर्म-कचराने खाली करवानी प्रक्रिया । चारित्र एटले वेषनुं परिवर्तन, नामर्नु परिवर्तन, आत्मानुं परिवर्तन, पापोनो प्रतिज्ञापूर्वक त्याग, घर, माल, मिल्कत माता-पिता, स्वजन कुटुंबरूप बाह्य संसारनो त्याग, राग-द्वेष, कामक्रोधादि
आंतरिक संसारनो त्याग । मनोरथ एटले मननी भावना । चारित्र माटे करायेल भावना एटले चारित्रमनोरथमाला।
प्रस्तुत कृतिमां कर्ता द्वारा प्रथम गाथामां आदिनाथ भगवाननी स्तुति कराई छे अने त्यार बाद विविध मनोरथोनुं वर्णन करायेल छ। आ कृतिमां आवता मनोरथ (भावना) ना विषय निम्न प्रकार छे
१. विधियुक्त जिनधर्माराधना २. जिनवाणीश्रवण
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