Book Title: Shrutsagar 2019 06 Volume 06 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
26
श्रुतसागर
जून-२०१९ कारणथी चरोतरना ग्राम्य समुदायोमां ज्यारे आं (स्वर)नो उच्चार आँ करवामां आवे छे, त्यारे त्यां पण ए विवृत उच्चार आपोआप हाजर थाय छ । गांधी-गोंधी, सांधवंसाँध, सांढणी-साँढणी, रांड-राँड, मांचो-माँचो; एज रीते पाणी-पाणी, गाम-गाँम, गाणुं-गाँणु, चाणोद-चाँणोद इत्यादि। ___काठियावाडमां-मुख्यत्वे सोरठ अने हालारमा केटलाक वर्गोमां जइए छीए नो उच्चार उत्तरोत्तर चाल्या आवता विलक्षण उच्चारणना वारसाने कारणे जइएँ छीएँ एम थाय छे; तेथी जुदी रीते गोहीलवाड-झालावाडमां जइइं छीइं एम प्राकृत जनता बोले छे । आ उच्चारणमांज्यारे एनो उच्चार ऐं करवामां आवे छे त्यारे मूळ संवृत होवा छतां उच्चारमां विवृत बोलाय छे। सोरठ हालारना केटलाक लेखकोना लेखोमां पण जइएं, प्रमाणे, जातें, एवा अनुस्वारयुक्त ऐं कार छूटथी वपरायला जोवामां आवे छे अने तेओ तेनो विवृत उच्चार करे छ।
पिंड शब्द उपर पेंडक-पँडाँ शब्दो साधित थयो छ । मावाना पेंडानी साथे ए शब्द विशे, प्रचलित थयो छ । झालावाडमां तेने दूधपींडा कहे छे; केटलेक स्थळे तेने पँडा कहेवामां आवे छे; परंतु हवे तो घणे स्थळे एनो कोमळ अनुस्वार उच्चारमाथी उडी गयो छे तेने परिणामे पॅडा अने पेडा पण छूटथी प्रचलित थइ गया छे; अनुस्वारनी साथे तेनुं विवृतत्व उडी गयु छ । तेथी उलटुं प्रेम जेवा तत्सम शब्दने अनुगामी अनुनासिकवजन केटलाको पासे प्रेम अने पेन्सील ने पॅन्सील बोलावे छे !
विवृत अने अर्धविवृत ए-ओ गुजराती बोलीमां प्रचलित होवा छतां अने तेनी विशिष्टता सर्वविदित होवा छतां वर्तमान काळे बोलीमा जे धीरो पलटो थतो देखाय छे, तेमां तेनो प्रचार केटलो रहेशे ते अत्यारे कहेवू मुश्केल छ । पहेलां बोली लोकोना उच्चारणना वारसारूपे जनताने मळती अने तेमां केळवणीथी भाषाशुद्धि आवती। शिक्षण मोटे भागे मुखद्वारा अपातुं, अने उच्चारणनो वारसो उछरती प्रजाने मळ्या करतो। हवे मोटे भागे पुस्तकोना वाचनद्वारा शिक्षण अपाय छे अने परीक्षाओ लेखनद्वारा लेवाय छे, तेथी उच्चारणनो सीधो वारसो ओछो थतां विवृत उच्चारो संवृतता तरफ ढळता जाय छ। लेखनमा विवृत उच्चार माटे अवळी के उलटावेली मात्रा कोइ कोइ लखे छे, परन्तु हालनी झडपी छापकळा कदाच ए पद्धतिने आगळ वधवा नहि दे एम लागे छे।
(बुद्धिप्रकाश पुस्तक ८२मुं एप्रिल थी जुन १९३४ अंक २ मांथी साभार)
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36