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RNI:GUJMUL/2014/66126
ISSN 2454-3705
श्रुतसागर |श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY)
June-2019, Volume : 06, Issue : 01, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/
EDITOR: Hiren Kishorbhai Dosht
BOOK-POST / PRINTED MATTER
योगनिष्ठ प.पू. आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. को ९४वीं
स्वर्गतिथि पर वर्ष ६ का यह प्रथम अंक सादर समर्पित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
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परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में
रेवतडा गाँव में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम की झलक
एस
रागुरुन्त जापान पवित
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SHRUTSAGAR
RNI : GUJMUL/2014/66126
June-2019 ISSN 2454-3705
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर મૃતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly)
वर्ष-६, अंक-१, कुल अंक-६१, जून-२०१९
Year-6, Issue-1, Total Issue-61, June-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/
आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी
एवं
ज्ञानमंदिर परिवार १५ जून, २०१९, वि. सं. २०७५, ज्येष्ठ शुक्ल-१३
न आराधन
पा केन्द्र
वीर जैन
त महाक
अमृतं तू
पधा
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
(जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org
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श्रुतसागर
जून-२०१९ अनुक्रम १. संपादकीय
रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी 3. Awakening
Acharya Padmasagarsuri ४. ज्ञानसागरना तीरे तीरे डॉ. कुमारपाल देसाई ५. प्रवचनपरीक्षा लिंशिका गणि सुयशचंद्रविजयजी ६. चारित्रमनोरथमाला
मिनाक्षी एच. शेडगे ७. गुजराती बोलीमा विवृत अने संवृत ए-ओ
चुनीलाल वर्धमान शाह ८. श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य
श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्तकुमार १०. समाचार सार
आतम अनुभव रस कथा प्याला पिया न जाय। मतवाला तो ढह पड़े निमता पड़े पचाय ॥
प्रत क्र. १५१८७ भावार्थ- आत्मानुभव रूपी रस की कथा का प्याला सभी व्यक्ति नहीं पी सकते हैं, इसे पीकर जिसके पास अहंकार आ जाए, उसका पतन हो जाता है और इसे
पीने के बाद भी जो नम्रता को धारण करता है, वही इसे पचा सकता है।
* प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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SHRUTSAGAR
June-2019
संपादकीय
रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नूतन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अपार प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
प्रस्तुत अंक में “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत “सद्गतिनो उपाय” लेख प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें सद्गति की प्राप्ति हेतु आध्यात्मिक उपायों का वर्णन किया गया है । द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ.कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित खरतरगच्छ के कवि श्रीसार के द्वारा रचित “प्रवचनपरीक्षा षलिंशिका" प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में मुख्य रूप से अहिंसा के सिद्धान्त का वर्णन किया गया है, साथ ही सम्यक्त्व, मिथ्यात्व तथा इसके अवान्तर भेदों को भी समझाने का प्रयत्न किया गया है । द्वितीय कृति के रूप में श्रीमती मीनाक्षी एच. शेडगे के द्वारा सम्पादित “चारित्रमनोरथमाला” प्रकाशित किया जा रहा है। इस कृति में चारित्र का अर्थ व स्वरूप स्पष्ट करते हुए उसके लिए की जानेवाली भावना का वर्णन किया गया है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक८१,अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ” नामक लेख का अन्तिम अंश प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में सत्रहवीं सदी तथा उसके पूर्व की गुजराती बोलियों में हुए परिवर्तनों का वर्णन किया है।
पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित "ज्ञानविमल साहित्य संग्रह” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस पुस्तक में पूज्य साध्वी श्री नम्रगिराश्रीजी म. सा. के द्वारा १०० वर्ष पूर्व सम्पादित श्री ज्ञानविमलसूरिजी के द्वारा गुजराती भाषा में रचित स्तुत्यात्मक कृतियों का पुनः प्रकाशन किया गया है ।
इस अंक में "श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक शीर्षक के अंतर्गत संशोधन,सम्पादन व श्रुतसेवा के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के उपयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है ।
हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे।
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श्रुतसागर
जून-२०१९ गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
सद्गतिनो उपाय जेठ वदि ३ना रोज प. पू. योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. नी ९४मी पुण्यतिथि छे. आ प्रसंगे तेओश्री द्वारा प्रस्तुत सद्गति प्राप्तिना सुंदर आध्यात्मिक उपायनी वात अने प्रस्तुत करी छे.
संवत् १९६८ वैशाख शुदि ११. शनिवार ता. २७-४-१२ उमेटा.
ज्ञानरूप दीपवडे आत्मारूप घरमा रहेली ऋद्धिने देखवी जोइए । जे योगी होय छे ते आन्तरिक लक्ष्मीने प्राप्त करवा प्रयत्न करे छे। आत्मा प्रसन्न होय छे, त्यारे सद्गति थाय छे, अने आत्मा प्रति आत्मा अप्रसन्न होय छे त्यारे दुर्गति थाय छे । माटे आत्मावडे आत्मानुं ध्यान धरवू जोइए।
सर्वतीर्थने पूजीने सर्वतीर्थरूप बननार आत्मा शरीरमा रहेलो छ । एवा आत्मारूप तीर्थनां दर्शन करवां जोइए। सत्व, रजो अने तमो गुणातीत आत्मानुं शुद्ध स्वरूप छ । आत्मारूप देव वस्तुतः सात धातुथी रहित छ। पोताना ज्ञानादि गुणमां रमण करनार आत्मा पोते देव बने छ । संतोषरूप अमृतमां मग्न रहेनार अने जेने शत्रु मित्र सम छे, एवा तथा शाता अने अशाताने समभावे वेदनार रागद्वेषथी पराङ्मख अने आत्मज्ञान वडे बाह्य सांसारिक क्लेशोने भूलनार एवा पूज्य महात्माओ मोक्ष प्राप्त करे छ। ___ शुद्धस्फटिकसमान सर्वज्ञगुण विभूषित अने परमात्मकलायुत एवा आत्माने मनुष्योए ध्याववो जोइए। आत्मतत्त्व- ज्ञान कर्या बाद होम वगेरे हिंसामय प्रवृत्तिने सुज्ञ मनुष्यो करता नथी। आत्मज्ञान ए परमतीर्थ छे, पण नदीनुं जल कंइ तीर्थ गणातुं नथी। नदीओना कांठे शुद्ध हवा होय छे तेथी एकान्त स्थानमा योगीओ त्यां आत्मध्यान धरे छे । अने परम स्थिरतानो अनुभव करे छे।। __व्यावहारिक धर्माचारोने आचरीने आत्माना गुणो प्रकटाववा माटे संतो प्रयत्न करे छ। आत्मज्ञान तेज परमशौच छे। ते विना अन्य पौद्गलिक वस्तुओ वस्तुतः शौचरूप गणाय नहि । कायामां रहेता आत्माने कायारहित ध्याववो अने आत्माना शुद्ध धर्ममां मनने स्थिर करी देवु। अहं निरञ्जनो देवः, सर्वलोकाग्रमाश्रितः। इति ध्यानं सदा ध्यायेदक्षयस्थानकारणं ॥ हुं निरंजन देव छु, सर्व लोकना अग्रभागे आश्रित छु एवं
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SHRUTSAGAR
___ June-2019 ध्यान सदा ध्यानीए ध्यावq जोइए। अक्षय स्थान- कारण ध्यान छे । पवन स्थिर थाय छे त्यारे मन स्थिर थाय छे । आवी हठयोगनी प्रक्रिया- रहस्य अनुप्रेक्षणीय छ । मननी स्थिरता माटे योगाभ्यासनी जरूर छे।
जेम जेम मननो बाह्य व्यापार टळे छे, तेम तेम मोहनां स्थानक विलय पामे छे, माटे मनोव्यापारनी बाह्य प्रवृत्ति टाळवा सदाकाल अभ्यास करवो। आत्मामां लागेलुं अने विषयथी उठी गयेला मनथी उन्मनीभाव प्राप्त थाय छे। ध्याता अने ध्येयऐक्य थतां आत्मा समरसी भावने प्राप्त करे छे। योगदीपमाला सोमसूर्यद्वयातीतं, वायुसंचारवर्जितम्। संकल्परहितं चित्तं(?) परं ब्रह्म निगद्यते॥ आत्मज्ञानवडे आत्मानुं शुद्ध ध्यावतां मननी चंचलता टळे छे।
धार्मिक गद्य संग्रह भा.१ पृ.२८३-२८४
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१५
प.पू. राष्ट्रसंत आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी संभवित विहार कार्यक्रम क्रम गाँव कि.मी. दिनांक क्रम गाँव कि.मी. दिनांक राजस्थान
१८. रेवदर ९ २१-०६-१९ १. नाकोड़ाजी तीर्थ १२ ३१-०५ से १९. भटाना १४ । २२-०६-१९ ०१-०६-१९
गुजरात बालोतरा १२ ०२-०६-१९ २०. इकबालगढ २१ २३-०६-१९ ३. आसोतरा २० ०३-०६-१९ २१. चित्रासणी १३ २४-०६-१९ सिषाणा
०४-०६-१९ २२. पालनपुर १३ २५-०६-१९ मोकलसर १५ ०५-०६-१९ २३. मगरवाड़ा १५ २६ से मांडवला ०६-०६-१९
२७-०६-१९ रेवतडा ०७ से
छापी
२७-०६-१९ ०९-०६-१९
(शाम) ८. बाकरा रोड़ १४ १०-०६-१९ २५. सिद्धपुर ११ २८-०६-१९ ९. मोद्रण १० । ११-०६-१९ २६. उंझा १२ २९-०६-१९ १०. बोरता १३ । १२-०६-१९
भांड
३०-०६-१९ ११. कोलपुरा १० । १३-०६-१९ २८. महेसाणा १४ ०१ से १२. भिनमाल १४ १४ से
०२-०७-१९ १५-०६-१९
| २९. सेफ्रोनी १३ ०३-०७-१९ १३. मंधार
१०
१५-०६-१९ ३०. नंदासण १४ ०४-०७-१९ १४. डीररा १४ १६-०६-१९ ३१. नवकारतीर्थ १० ०४-०७-१९ १५. जसवंतपुरा १३ ।। १७-०६-१९
(शाम) १६. दातराई (दंतौ) १६ । १८-०६-१९ | ३२. शेरथा १८ ०५-०७-१९ १७. जीरावलातीर्थ ६ १९ से ३३. कोबा १५ ०६-०७-१९
२०-०६-१९
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श्रुतसागर
जून-२०१९
Awakening
Acharya Padmasagarsuri (from past issue...)
The great poet, Shri Shantha Prakash, “Satya Das” has written:
“If I wish, I can melt a stone. If I wish I can show the existence of God and if I wish, I can give life to a dead body and teach it language.”
"If I wish,” that is if I propose to do so, I can do everything. In this world, there is nothing that is impossible.
In an excellent couplet, the great poet, Kabir has expressed the idea that when a child is born it cries and others smile and feel happy and when the child grows up into a man, he must perform such noble actions that when he dies he must smile not caring for death and others must weep thinking that they are losing a great man and that his death is a misfortune to them.
People remember only those great men who help others. You must also help others according to your ability and if some body gives you help you must be grateful to him.
The dog serves its master according to its ability. It never deceives its master. The man who deceives one who helps him is like one who makes a hole in the plate off which he eats his food. Such a man is ungrateful. The man in whose life, ingratitude takes the place of gratitude is worse than a dog.
One man who is grateful to his benefactors inspires ten men to be charitable and benevolent. But, on the contrary, one ungrateful man prevents the emergence of a hundred benefactors. Only a man who knows himself and the nature of his soul can show the quality of gratitude. God's mercy, the mentor's percepts and righteous conduct are essential for the realization of the self.
(continue...)
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SHRUTSAGAR
June-2019
ज्ञानसागरना तीरेतीरे (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज:२)
डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..)
रोजनीशीमां आलेखायेला सात कडीना आ काव्यनी एक खूबी ए छे के आखा काव्यनु आलेखन सहेज पण छेकछाक वगरनुं जोवा मळे छे। हृदयमां जागतो भाव सीधेसीधो ज रोजनीशीनां पानां पर अंकातो गयो होय तेम लागे छे। आमां तेओने शाब्दिक फेरफारो पण करवा पड्या नथी!
अहीं गुरुभावनानुं गौरव करतां तेओ कहे छ : “ऊंघ्यो देव जगावीयो रे - देह देरासरमाही - प्रगटे वह्नि वह्निथी रे - गुरुथी गुरुपणुं मांही।” - __ आ पछी आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी गुरुशिष्यना ऐक्यनी वात करीने वि. सं. १९७१ना नूतन वर्षना प्रारंभे भावपूर्वक गुरुने स्मरे छे । तेओए गायेलो आ गुरुमहिमा अनुभूतिना पाया पर रचायेलो होवाथी वधारे हृदयस्पर्शी बन्यो छे। विजापुरना एक निरक्षर कणबी कुटुंबना बाळकनुं गुरुकृपाए ज योगनिष्ठ आचार्य तरीके आध्यात्मिक रूपांतर थयु हतुं, ए अहीं पण जोई शकाय छे।
रोजनीशीना आरंभे 'स्व'मां परमात्मभाव अनुभववानी पोतानी झंखनाने प्रगट करतां तेओ कहे छे : ___ “सर्व जीवोनी रक्षार्थे प्रवृत्ति कराओ। सत्य वदवामां जीवन वह्या करो। अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग वगेरेनी आराधना परिपूर्ण द्रव्य अने भावथी थाओ। अप्रमत्तपणे आत्मसमाधिमां द्रव्य अने भावथी स्वजीवन वहो। जैन शासननी प्रभावना थाय एवा संयोगो प्राप्त थाओ। जैन दृष्टिए, शासनरक्षक दृष्टिए, सर्वजीवदया दृष्टिए, सर्व नामोनी अपेक्षाए मन, वचन अने कायामां क्रिया (कर्म), योगित्व अने ज्ञानयोगित्व प्रगटो। अध्यात्मज्ञाननां उच्च रहस्योना अनुभव वडे आत्मा सहजानंदमां मस्त रहो। अप्रमत्त भावनी जीवन्मुक्तिमां शुद्धोपयोग वडे स्थिरता थाओ। उत्तम ज्ञान, दर्शन अने चारित्र द्वारा 'स्व'मां परमात्मत्व अनुभवाओ।"
आ एक वर्ष दरमियान एमणे अनेक स्थळोए विहार को हतो। एमां माणसा, रिद्रोल, विजापुर, ईडर, खेडब्रह्मा, कुंभारियाजी, अंबाजी, आबु, अचलगढ, दांतीवाडा,
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श्रुतसागर
जून-२०१९ पालनपुर, सिद्धपुर, ऊंझा, महेसाणा, भोयणी, वीरमगाम, गोधावी, कलोल, पानसर अने पेथापुर जेवां जाणीतां गामो उपरांत अन्य गामोनो पण समावेश थतो हतो, परंतु एक वर्षमां करेला आटला विहार दरमियान एमनी वांचनप्रवृत्ति तो सतत अने तीव्र वेगे चालु रही हती। पोते वांचेलां पुस्तकोनी नोंध तेओ रोजनीशीमां करता जाय छे। ___आ एक ज वर्षमा एमणे ‘समयप्राभृत, शुभचंद्र आचार्यकृत 'ज्ञानार्णवसारोद्धार' (बीजी वखत), राजेन्द्राभिधानकोश' (भा। १), 'ज्ञानचक्र' (भा। ८), 'महाबलमलयासुंदरी, संस्कृत तिलकमंजरी, चंद्रप्रभु, 'विक्रमोर्वशीयम्' (भाषांतर), 'विह्यदूरत्नमाला' अने जैन दृष्टिए योग' जेवां पुस्तको वांच्यां; ज्यारे आचार्य आनंदशंकर ध्रुव, ‘धर्मवर्णन, मननपूर्वक वांच्यु एम कहे छे, तो माणसाना दरबार पासेथी लीधेलु 'रत्नमाल' पुस्तक वांचीने पाछु आप्यानी नोंध मळे छे। ए ज रीते साणंदनी सरकारी लाइब्रेरीमाथी लीधेलां पुस्तको वांचीने पाछां आप्यां, तेनी यादी पण मळे छ । आ ग्रंथो उपरांत 'गुजरातनो अर्वाचीन इतिहास, कणबी-क्षत्रिय इतिहास' अने ‘पद्ममहापुराण' जेवा ग्रंथो वांच्या हता, 'जीवनशक्तिनुं बंधारण, स्वामी रामतीर्थनो सदुपदेश' (भाग ७), 'गुजरात सर्वसंग्रह, 'स्वदेश, 'हिंदनी उद्योगस्थिति, 'भारत लोककथा, 'दरियापारना देशोनी वातो' जेवां पुस्तको पण वांच्या हतां, 'अध्यात्मोपनिषद'न चोथी वार मनन कयें, तो 'जोन ओफ आर्क, 'कुमुदिनी, 'आंख की कीरकीरी', 'शांतिकुटिर, 'सुभाषितमुक्तावलि' तेम ज नर्मकविता' जेवा ग्रंथो पण वांच्या हता। वळी, वि. सं. १९७१नी वैशाख सुद पांचमना रोज श्री मोतीचंद गिरधरलाल कापडियाए आनंदघननां पदो पर लखेली प्रस्तावना अने उपोद्धात वांच्यानी नोंध पण मळे छे। आ वर्ष दरमियान एमनी लेखनप्रवृत्ति चालती रही हती। 'कर्मयोग' नामनो एमनो ग्रंथ छपातो हतो ए पण नोंध्यु छ । विहार अने व्याख्यानो चालतां हतां, एनी साथोसाथ आटली बधी ज्ञानप्रवृत्ति चालु राखवी ते विरल ज कहेवाय । क्यारेक कोई जिज्ञासुनेय अभ्यासमां सहायभूत थता हता। संवत १९७१नी मागशर वद अमासे शा. मोहनलाल जेशिंगभाईने पांचमा कर्मग्रंथनी सित्तेर गाथा सुधी अभ्यास कराव्यानी नोंध पण मळे छ । सं. १९७१ना पोष सुदि छठनी नोंधमां तेओ लखे छे – ____ “सांजना समये कडी प्रांतना सुबासाहेब रा. गोविंदजीभाई हाथीभाई दर्शनार्थे आव्या। तेमने प्रजानी सेवा करवी, साधुओनो उपदेश श्रवण करवो, प्रजाजनोनां दुःखो तरफ लक्ष्य देवू, लाइब्रेरीओ, बोर्डिंगो विशेष प्रमाणमां व्यवस्थापूर्वक उघाडवा माटे उपदेश दीधो । गायकवाडी राज्यमां साधुओने माटे संस्कृत पाठशाळा उघाडवा उपदेश
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June-2019 दीधो।” आवी ज रीते फागण वद ८ना दिवसे “प्रो. राममूर्ति सेन्डोनी मुलाकात लई धार्मिक विचारोनो उपदेश आप्यो” एवी नोंध पण मळे छ।
एमनो साहित्यप्रेम सर्वत्र देखाय छ। तेओ गुजराती साहित्यना वर्तमान प्रवाहो अने साक्षरोथी परिचित हता। गुजराती साहित्यना संशोधक श्री के. ह. ध्रुव विशे एमणे लखेला अप्रगट स्तुतिकाव्यमां आ ज्ञानी अने ध्यानी योगीराजने साहित्यसंशोधक प्रत्ये केटलो आदर छे, ते प्रगट थाय छे। तेओ कहे छे :
“मिलनसार स्वभावे सारा, साक्षरवर्गमा प्यारा, उत्तम विद्याना आधारा, सद्गणना अवतारा। धन्य धन्य शुभ मात तात ने, धन्य गुर्जर अवतारी, मोटा मनना शुभ परमार्थी, तव जीवन बलिहारी। अमर कर्यु निज नाम जगतमां, गुणकारी शुभकारी, 'बुद्धिसागर' मंगल पामो, गुणगणना भंडारी।"
आवी ज रीते साणंदथी आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीए मुनिश्री जिनविजयजीने मैत्रीने बिरदावतुं अने ज्ञानवृद्धिनी अभिलाषा प्रगट करतुं आठ कडी- काव्य लख्यु छ।
आ रोजनीशीनो केटलोक भाग ‘कर्मयोग, ‘भजनसंग्रह, जैनगीता' अने 'सुखसागर गुरुगीता' नामे एमना ग्रंथोमां प्रगट थयो छे। आथी अहीं अप्रगट एवा गद्य अने पद्य भागने जोवानो उपक्रम राख्यो छे । आमां साची भक्तिने बतावता एमना एक अप्रगट काव्यमां तेओ हरिनो मारग शूरानो छे' एम कहेता जणाय छे । तेओ कहे छे के, मात्र मुखेथी भक्त कहेवडाववाथी काम पती जतुं नथी । एने माटे तो प्रयत्न अने निष्काम भावना जरूरी छ । तेओ आवा कृतक भक्तोने पूछे छे :
“कहे मुखथी तमारो छु, तमोने सौ समर्पण छ। विचारी आप उत्तरने, अमारी शी करी सेवा? त्हने लक्ष्मी घणी व्हाली, तने कीर्ति घणी व्हाली, कहे छे भक्तिनो भूख्यो, अमारी शी करी सेवा?"
आम कहीने विवेक विना वित्त खरचवानी, असत्य अने परिग्रहनी तेम ज संसारना प्रवाहमां गतानुगतिक रीते तणावानी सामान्य जनोनी मनोवृत्तिनी वात करीने भारपूर्वक कहे छे -
(क्रमशः)
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श्रुतसागर
जून-२०१९ कवि श्रीसार कृत प्रवचनपरीक्षा षट्त्रिंशिका
गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रवचन एटले सिद्धांत, तेनी परीक्षा एटले प्रवचन परीक्षा। विशेषे कहिये तो सिद्धांत केवो होय? तेनुं स्वरूप शुं होय? तेने सम्यक् कई रीते कहेवाय? तेनी वर्णना करतो ग्रंथ ते ज प्रवचन परीक्षा । प्रस्तुत कृतिमां कृतिकारश्रीए मुख्यतया अहिंसा धर्मना सिद्धांतने सूक्ष्मताथी वर्णव्यो छे। तो साथे-साथे सम्यक्त्व, मिथ्यात्व तथा तेना अवांतर भेदोने समजाववानो पण कविए अहीं सुंदर प्रयत्न कर्यो छे । काव्यना शब्दो एकंदरे सरळ छ । विशेषमां “छूटिस्यइ, लहिस्यइ” जेवा शब्द प्रयोगोमां कोई प्रांतिय बोलीनी छांट जोवा मळे छ । कवि श्रीसार खरतरगच्छना प्रसिद्ध विद्वान छे तेमणे आ सिवाय पण अन्य नानी मोटी घणी गुर्जर काव्य रचनाओ करी छ। प्रस्तुत कृति जेवी ज प्रवाहितता तेमना अन्य सर्जनोमां जोवा मळे छ।
प्रान्ते प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतनी फोटोकॉपी आपवा बदल खंभात-अमरशाळा ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकोनो तथा शेठश्री मणीलाल पीतांबरदास हस्तलिखित शास्त्रसंग्रहना ट्रस्टीगणनो खूब खूब आभार ।
॥ नमो वीतरागाय ॥ [राग]मालवी गउडउ जाति ॥ साचइ मनइं जिनधर्म सेवउ, इम कहइ अणगार रे, सिद्धंत सूत्र विचारि जोइज्यो, अछइ अरथ अपार रे
॥१॥ साचइ... धरमनी वातई मूढ प्राणी, कांइ करउ चुपचाप रे, धरम रउ ए मरम साचउ, जीवहिंसा पाप रे
॥२॥ साचइ... धरमनइं अरथइ जीवहिंसा, धरइ नव नव रंगरे, ते घणा जामण मरण लहिस्यइ, आखि' आचारंग रे ॥३॥ साचइ... हिंसा थकी किम धरम थायइ, जोइ उपदेस-माल रे, कपटनइ मारग सहू राचइ, साचनउ नहीं काल रे
॥४॥ साचइ... त्रस अनइ थावर तणी निश्रा, अछइ जीव अनेक रे, इक जीव हिंस्या(सा) सह हिंस्या(सा), धरउ चित्ति विवेक रे ॥५॥ साचइ...
१. जन्म. २. बोले,
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13 जउ जीवनी जयणा करंतां, कोइ जीव हणाय रे, तेहनइ लागइ पाप थोडउ, घणउ धर्म ज थाय रे
॥६॥ साचइ... केतला प्रकरण अनइ टीका, सूत्रथी विपरीत रे, सिद्धंत मिलता जेह साचा, धरउ तिणि (सुं)प्रीत रे ॥६(७)। साचइ... कारिम स्वारथ तणा वाह्या, एक भवनइ काज रे, जिन(वचन) मिथ्या करइ ते किम, छूटिस्यइ महाराज रे ॥७(८)। साचइ... आगम थकी विपरीत करणी, घणी दीसइं आज रे, आपणी जांघ उघाडगि हिव, आपनइ इज लाज रे ॥८(९)।। साचइ... जे साच कहतां रीस करिस्यइ, ते करउ सउ वार रे, घासिस्यई दांतनि वातथी जउ, तउ किसउ उपचार रे ॥९(१०)। साचइ... इक वक्र जडनइ च्यारि अक्षर, भण्या धइ पग छाडि रे, इक वानरउ नई डस्यउ वींछू', पछइ किणिरइ१२ पाडि३ रे ॥१०(११)
॥साचइ...
जिनवचन साचा केम विघटइ, नहीं पूरउ मांझरे, ए लोक साचउ कहइ म्हारी, मात तउ किम वांझ रे ॥११(१२)। साचइ... तप तपउ किरिया करउ दिन प्रति, घणां खरचउ वित(त्त)५ रे, समकित विना सहि फोक कहियइ, सार इक समकित(त्त) रे॥१२(१३)। साचइ... इक देव तउ६ अरिहंत सेवउ, सुगुरु तउ अणगार रे, वीतरागभाषित धर्म सेवउ, जिम तरउ संसार रे ॥१३(१४)।। साचइ... सूखमनइ बादर जीव हणतउ, मुगति न गयउ कोइ रे, जे जीवहिंसा थकी विरम्या, तेहना फल जोइ रे ॥१४(१५)। साचइ... केई एक तिणि भवि मुगति पहुता, पहुचिस्यइ केई एक रे, मुनिराय मेतारिज तणी परि, राखिज्यो निज टेक रे ॥१५(१६)। साचइ... वावडी कूप तलाव काजइं, हणइ पृथिवी जेह रे, वीतराग दसमई अंग भाखइ, मंदबुद्धी तेहरे
॥१६(१७)। साचइ... ३. छूटशे, ४. हवे, ५. इजत ?, ६. घसे, ७. वायुथी, ८.?, ९. वांदरो, १०. डस्यो, ११. वींछी, १२. बूमो, १३. पाडवी, १४. मध्ये, वचमां?, १५. पैसा, १६. तो,
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श्रुतसागर
जून-२०१९ कइ जीवहिंसा कइ हिंसा, धरम ए किण वात रे, जे हलू(लु)-करमा तेह जाणइ, स्यू(स्यु) कहां तस मात रे ॥१७(१८)।। साचइ... हिंसा थकी दुख लाख थास्यइ, दयाथी सुख-थाट रे, जिम भला जाणउ तेम विचरउ, कही बेऊ वाट रे ॥१८(१९)।। साचइ... पजूसणादिक परव आव्यां, कीजीयइ जिनधर्म रे, पालियइ जीवदया भली परि, धर्म रउ ए मर्म रे ॥१९(२०)।। साचइ... तिणि परव आव्यां दलइ पीसइ, हणइ मूढ छ काय रे, गाडरी परवाह पडियां, धरम इम किम थाय रे ॥२०(२१)।। साचइ... जिनधम(म)-आगममांहि निरमल, लहइ जिहां तिहां सोह रे, पिण आज धसमस धणी तिजतां", हुअउ भैसा-डोहरे ॥२१(२२)। साचइ... भगवंत पहुता मुगति नगरी, नीरंजन निराकार रे, चिदानंद ज्योती(ति)रूप सोहइ, सकल-जन-सुखकार रे ॥२२(२३)।। साचइ... तेहनइ जिमिवा भणी अविधइं, भला भरि भरि थाल रे, घृत सालिनइ पकवान मेल्हइ, ए किसउं जंजाल रे ॥२३(२४)। साचइ... लोकीक लोकोत्तर क्रियायइं, मेर(रू) सरिसव फेर [रे], पिण आज किहां किहां एक दीसइ, ए वडउ अंधेर रे ॥२४(२५)।। साचइ... लोकीकथी पिण अछइ विरूअउ, लोकोत्तर-मिथ्यात रे, वछनागथी पिण विस कहीजइ, सहत घृत सम मात रे ॥२५(२६)। साचइ... समकित तणी जे सार न लहइ, न जाणइ नवतत्त्वरे, श्रावक नहीं पिण तेह सावज, जाणिज्यो इकचित्त रे ॥२६(२७)।। साचइ... इक जीवरक्षा सुद्ध पालइ, प्रथम समकित सुद्ध रे, तउ जाणि सोभइ अनइ सुरहउ२२, मिल्या मिश्री दुद्ध रे ॥२७(२८)।। साचइ... धन तेह जे संसार तजि(जी)नइ, आदरइ मुनिवेस रे, त्रस अनइ थावर जीव न हणइ, तिम न द्यइ उपदेस रे ॥२८(२९)।। साचइ...
१७. प्रवाह, १८. त्यजता, १९. ?, २०. जमवा, २१. जंगली प्राणी, २२. ?,
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जे साधु हुइ प्राणी हणावइ, वचन बोलइ कूड रे, तप तप्पउ भणियउ अनइ गुणियउ, सर्व तिणि रउ धूड२३ ॥२९(३०)। साचइ... इम विधई संयम विधई पूजा, मुगतिनउ छइ खंध रे, अविधिनउ कीधउ दान तप जप, जाणिज्यो सहि धंध५ रे ॥३०(३१)।। साचइ... घरनी अवस्था......जिनवर, नमइ तेह अलीक रे२६, न्याननइ निरवान दीक्षा, तीन ए वंदनीक रे ॥३१(३२)।।* साचइ... वीतराग आगलि पुत्र ईछइ२७, वधारइ२८ नालेर२९ रे, जउ लाभ हुइ तउ आवि खरचइ, सूखडी दस सेर रे ॥३२(३४)।। साचइ... सीयलनइ सीतलनाथ पूजइ, नमइ ईछइ जात रे, जिनमत तणा ते जाण कहियइ, पिण न जाणइ वात रे ॥३३(३५)। साचइ... जे कहइ सावद्य वदइ जिनवर, ते न जाणइ भेद रे, सावद्य जिनवर कदे न वदइ, वात ए द्रु"वेद रे । ॥३४(३६)।। साचइ...
आगम तणी रह रीति चलतां, कहइ कोइ अजाण रे, तेहनइ दीजइ एह उत्तर, पूछिज्यो वधमान रे
॥३५(३७)।। साचइ... कलहंस जिम करिज्यो परीक्षा, स्यू(स्यु) कहां वार वार रे, वीतराग वदियउरेतेह साचउ, इम कहइ श्रीसार रे ॥३६(३८)। साचइ मनइ... ॥ इति श्रीप्रवचनपरीक्षाषट्त्रिंशिका समाप्ता। लिखता कृता चेयं श्रीजेसलमेरौ ।
वाच्यमाना चिरं नन्दतु ॥ श्री: स्यात् जिनमतरतानाम् ॥ दंसण वय सामाइय पोसह पडिमा अबंभ सच्चित्ते । आरंभ पेस उद्दिट्ठ वज्जए समणभूए य । (प्रवचनसारोद्धार गाथा.९८०)
२३. धूळ ?, २४. स्कंध, २५. मिथ्या प्रवृत्ति, २६. खोटो, २७. ईच्छे २८. वधेरे. २९. नाळीयेर, ३०. क्यारेय पण, ३१. ध्रुवना तारा जेवी, ३२. रथ-रीत (?), ३३. का. *चउ...नीच...गाथा... इ... एक... र ....रे। ......... वजो......समी.......भलउ विचार रे साचइ...॥३२(३३)।। आ उद्धरण गाथा प्रतमां प्रक्षेपायेली छे.
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श्रुतसागर
जून-२०१९ श्री खेमराजमुनि कृत चारित्रमनोरथमाला
मिनाक्षी एच. शेडगे प्रस्तावना :
जेनुं एक दिवसनुं पालन पण मोक्ष आपवा समर्थ छे, जे- पालन श्री तीर्थंकर भगवंतोए स्वयं करेल छे, केवलज्ञान-केवदर्शन थया पछी जिनेश्वरोनी देशनामां सर्व प्रथम जेनी प्ररूपण कराय छे; जेनुं पालन खांडानी धार समान मनाय छे; एवा चारित्रनुं पालन करी आज सुधी अनंत-अनंत आत्माओ मुक्तिवधुने वर्या अने पुरुषार्थमां सफळ थया । ए पुरुषार्थनुं सत्त्व हजी जेओमां प्रगट्यु नथी, तेओए अंतरना उमंग अने उछरंगथी जे महान मनोरथो कर्या एने कंडारती महान कृति एटले चारित्रमनोरथमाला। वारंवार वांचन-मनन-चिंतनथी सिंह जेवू सत्त्व प्रगटाववानी क्षमता धरावती आ एक विरल कृतिनुं संपादन करवानो अहीं प्रयास कर्यों छे । चारित्रग्रहणमां अशक्त जीवो आवा मनोरथो द्वारा पोताना चारित्रमोहनीयने खपावी आगामी समयमां जरूर तेने ग्रहण करवानी क्षमतावाळा बनी शके छे। कृति परिचय :
प्रस्तुत कृति खेमराज मुनि (क्षेमराज मुनि) द्वारा मारुगुर्जर भाषामां पद्यबद्ध ५३ गाथाओमां रचायेली छे। आ कृतिमां आत्माने हितकारक एवा मनोरथोर्नु वर्णन करवामां आव्यु छ। चारित्र एटले आत्मरमणता, आत्मगुणोमां स्थिरता अने आत्ममंदिरमां भेगा थयेला कर्म-कचराने खाली करवानी प्रक्रिया । चारित्र एटले वेषनुं परिवर्तन, नामर्नु परिवर्तन, आत्मानुं परिवर्तन, पापोनो प्रतिज्ञापूर्वक त्याग, घर, माल, मिल्कत माता-पिता, स्वजन कुटुंबरूप बाह्य संसारनो त्याग, राग-द्वेष, कामक्रोधादि
आंतरिक संसारनो त्याग । मनोरथ एटले मननी भावना । चारित्र माटे करायेल भावना एटले चारित्रमनोरथमाला।
प्रस्तुत कृतिमां कर्ता द्वारा प्रथम गाथामां आदिनाथ भगवाननी स्तुति कराई छे अने त्यार बाद विविध मनोरथोनुं वर्णन करायेल छ। आ कृतिमां आवता मनोरथ (भावना) ना विषय निम्न प्रकार छे
१. विधियुक्त जिनधर्माराधना २. जिनवाणीश्रवण
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SHRUTSAGAR ३. गुरुसेवा
४. जीवदया ५. बारव्रतनो स्वीकार
६. समकितनुं पालन ७. शेढुंजयगिरिनी यात्रा ८. शीयलव्रत पालन ९. शुद्ध भावे तप
१०. प्रभुपूजा ११. संयमग्रहण
१२. पंचमहाव्रत पालन १३. समिति पालन आदि १४. जिनाज्ञा पालन १५. पडिलेहण
१६. आवश्यक विधि १७. उपसर्ग
१८. काऊसग्ग १९. विकथा निंदा परिहार २०. स्वाध्याय २१. इंद्रियदमन
२२. आगम अध्ययन २३. कषायजय
२४. वैराग्य २५. आहारशुद्धि
२६. अढार पापस्थान त्याग २७. गुरुपासेथी अभिग्रह-नियम ग्रहण २८. मन-वचन-कायाना अकुशल व्यापारोने सारी रीते रोकी गुप्ति पालन
२९. चारित्रनो स्वीकार कर्या बाद हितमा प्रवर्तन स्वरूप सारणा-वारणादि (कर्तव्यने याद कराववा स्वरूप सारणा, अहितकारी प्रवृतिमाथी अटकाववा स्वरूप वारणा, संयमयोगमां स्खलना पामेलाने 'तमारा जेवाने आq करवू शोभतुं नथी' वगेरे वचनो कहेवा स्वरूप चोयणा अने दरेक स्खलन वखते आ ज वस्तु वारंवार कहेवा स्वरूप पडिचोयणा अथवा दंड-शिक्षा ते रूप पडिचोयणा आ बधाने सारी रीते, खेद के दुख लाग्या विना आनंदपूर्वक हुं क्यारे सहीश ते)
उपरोक्त मनोरथो प्रस्तुत कृतिमां वर्णवेल छे।
अंते चारित्रभावना पुष्टि माटे धन्नाशालिभद्र, कयवन्ना, अर्जुनमाली जेवा दृष्टांतोनो उल्लेख को छे। कर्ता परिचय :
कृतिना अंते कर्तानाममा 'श्रीखेम कवि मुनीवर भणइ' एटलं ज उपलब्ध थाय छे। जैनगुर्जर कविओ भाग-१ (पृ.१९०-१९१) तथा गुजराती साहित्यकोश
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श्रुतसागर
जून-२०१९ मध्यकाल भाग-१ (पेज नं-७५) मां प्राप्त थता विवरण प्रमाणे खरतरगच्छना जैन साधु जिनकुशलसूरिनी परंपरामां सोमध्वज गणि थया। सोमध्वज गणिना शिष्य
खेमराज मुनि । छाजहड गोत्रना शाह लीलाना अने माता लीलादेवीना पुत्ररत्न खेमराज मुनि । आ कविए ई.१४६० मां जिनचंद्रसूरि पासे दीक्षा लीधानो अने ई.१५१३मां कोइ श्रावके एमनी पासे व्रत ग्रहण कर्यानो उल्लेख मळे छ। आ उपरथी कवि. ई.१५मी सदी उत्तरार्ध अने ई.१६मी सदी पूर्वार्ध दरम्यान होवानुं मानी शकाय छे।
आ कविए ८१ कडीनी श्रावकाचार चौपाई' (रचना वि. १५४६), 'उपदेशसप्ततिका' (रचना ई.१४९१), २५ कडीनो '(फलवीं)पार्श्वनाथ रास, २३ कडीनी फागुबंधनी मंडपाचल (मांडवगढ)' चैत्य-परिपाटी, एकसोआठ पार्श्व स्तोत्र' तथा अन्य केटलांक स्तवनो अने सज्झायोनी रचना करी छ। प्रत परिचय :
प्रस्तुत कृति संबंधी प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबामां उपलब्ध छ। हस्तप्रत क्रमांक-२९४६१ने आदर्श पाठ मानीने आ कृतिनुं संपादन करवामां आव्यु छे । आ प्रतनुं प्रतिलेखन वर्ष विक्रम सं.१८२२ मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, ८ तिथि, स्थळ मेडता, प्रतिलेखक सरूपचंद मथेन छ । प्रतमां कुल ३ पत्रो छे। प्रत्येक पत्रमा १२ पंक्तिओ अने प्रत्येक पंक्तिमा ३० थी ३१ अक्षरो छे। प्रतनी अवस्था पाणीथी विवर्ण थयेली छे, जेथी अक्षरो वांचवामां मुश्केली पडे छ । पाठांतर माटे अन्य प्रत क्रमांक-८७१२१नो आधार लीधो छ । संपादन कार्यमां प्रत क्रमांक२९४६१ ने 'क' प्रति अने अन्य प्रत क्रमांक-८७१२१ने 'ख' प्रतिनो संकेत आप्यो छ । बन्ने प्रतोमांथी मळता शुद्ध पाठने संपादनमां अने अन्य प्रतना पाठने पाठांतर (टिप्पण)मां स्थान आपी संपादन करेल छे।
चारित्रमनोरथमाला श्रीआदिसर पाय' नमी, परिमल गुण विशाल। चरण मनोरथ फूलडां, गुंथिसु माल विशाल ...
॥१॥ ते दिन मुझनइ कदि हुस्यइ, पखि वरसनइ मास। श्रीजिनधर्म विधि करु, जेहथी पूरइ आस
॥२॥ ते०...
१. पाय (ख), २. गुणि (क), ३. पयि (ख),
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॥३।। ते०...
॥४॥ ते०...
॥५॥ ते०...
॥६॥ ते०...
॥७॥ ते०...
SHRUTSAGAR गीतारथ गुरु सेवीइ, सुणीइ आगम वाणि। प्राणी दया नित पालीइ ए परमारथ जाणि बारे व्रत अंगी करी निश्चल समकित मूल । पालसुं निज सगति करी टालिस भव भय सुल अष्टापद आबू तणी श्रीशेत्रुजो गिरिनारि । जिन कल्याणक भूमिका जात्र करि सुजग सार देसु दान दया करी सील धरिसुं निकलंक। सगति सहित तप आदरु सुध भाव निस्सकं परमेश्वर पाय पुजता चंदन कुसम कपूर। पूरिस आगलि साथियो नित नित ऊलटपूर धरमइ धन वेची करी छांडीस गृहाचार । सुधो गुरु जाणि करी लेस्युं संयम भार भाव ते संयम आदरु पंचमहाव्रत भार। धारिस निज काया करी पामीस भवजल पार मन वचन काया करी छविह जीवनिकाय । सवि आरंभ निवारसुलहीस्युं सिद्धि उपाय पंच सुमति त्रिहुं गुपतिसुदूधर चारित धार धारिसु धीर पणो धरी जाणि अथिर संसार पुंजी पडिलेही करी थंडिल भूमि पएस। धम्मोवगरण आपणा मूकिस जोइ लेस गुरुकुलवास वसस्युं सदा जीविय मरणा सीम। सहवउ गुरुनी चोअणा लेई अभिग्रह नीम भीम भयंकर अति घणा उपसर्ग माहिम सार। कहीइ२ काऊसग करि रहु नित नित सझ विहार
॥८॥ ते०...
॥९॥ ते०...
॥१०॥ ते०...
॥११॥ ते०...
॥१२॥ ते....
॥१३।। ते०...
॥१४॥ ते०...
४. सकति (ख), ५. आणंदपूर (ख), ६. सघर व्यापार (ख), ७. न (क), ८. नवा करिसु (ख), ९. गुप्तिसुं (ख), १०. धारस्युं (क), ११. भीम (ख), १२. कईयइ (क),
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जून-२०१९
॥१५॥ ते०...
॥१६॥ ते०...
॥१७॥ ते०...
॥१८।। ते०...
॥१९॥ ते०...
॥२०॥ ते०...
श्रुतसागर कटक महारिपु कामनो सील सबल सन्नाह । पहिरी जीपसुं हुं जदा जय सिरि वरिसुं३ अगाह विकथा निद्रा परिहरी मधुरिस्वरि सज्झाय । एकांति बइसी करी करिस्युं गोपवि काय ज्ञान अंकुश५ मन थिर६ करी कुशल मनह व्यापार । वचन अनइ काया करी सबर धरिस्य अपार जदि बावीस परिसहा आहियासी कुं मन भावि । घरि घरि मधुकरि जिम भमुं निरधन सघन सभाव अवसर ते कईइ हुस्यइ वरस अनै दीन मास । ममता मूकिस मन थकी" समता उपरि भाव द्रव्यति(थी) चारित्र मइ लीया भवि भवि वार अनंत । काज न कोई तिहां सयुं दीठा दूख अनंत दशविध साधु तणी भणी सामाचारी मांहि। रहिस्युं कदा निश्चल करी राचिस्युं नवेए२२ प्रवाह इंद्रीय पांचे वसि करी विषय तणो रस छांडि। चारित्रनी धुरि निरवहुं लागिस न हुं पाखंडी सारण वारण चोयणा पडिचोअण सवि दीस। धरिसुं मन सोहामणो मूकिस माया रीस झूसर सीम भूइ सोहुतो इर्यासुमति विहार । विकथा हासुं टालतो जदि हुं करिसुं विहार२७ सूत्र तणा सवि तप करी अंग उपांग पइन्न। गुरु मुख आगम वाचस्युं तेहुं मानिस धन्न च्यार कषाय विकथा तणी जाणी कडू विवाग। मूल थकी उनमूलिस्युं आणि मन वइराग
॥२१।। ते०..
॥२२॥ ते०...
॥२३।। ते०...
॥२४।। ते०...
॥२५॥ ते०...
॥२६॥ ते०...
१३. लहिसु (ख), १४. महुरसरि (ख), १५. अकुसल (ख), १६.रुंधी (ख), १७. समउ (ख), १८. तणी, (ख) १९. सहुँ (क), २०. यदा (ख), २१. पणइ (ख), २२. चैत्य (ख), २३. सवि (ख), २४. मारण (ख), २५. सोधतो (ख), २६. यदि (ख), २७. अपार (ख), २८. विषय (ख), २९. कटुक (ख),
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॥२७॥ ते०...
॥२८॥ ते०...
॥२९॥ ते०...
॥३०॥ ते०...
॥३१॥ ते०...
SHRUTSAGAR
21 हेजे भार संयम धरु धारे जिम जगधीर । चरण करण बे सत्तरी निर्वाहस्युं गंभीर अरस विरस वली सूझतो जदि फासु आहार। आहार सुधि करुं रंगस्युं टालु दोष अढार जे रूसे तुसइ नही निंद पसंसो जाणि। समता भावि नित नित हुं ते मुनिवर वखाण जिर्ण मयला२ कपडा पहिरसि निरहंकार४ । काया मल अण टालतो तेमा निसि दिन सार आवी बइसइ हरिणला जहीइ२५ मुझ उछरंग२६ । ते पदमासन पूरीयइ निरभय पणइ सरंग चिहुं भेदे आहारना बइतालीस दोस। वरजि जिमतिम संयोगना ना करुं माया मोस छ आवस्यक विधि करी यदि हु करिस पसंत । छंडी अपर मन रंजना आंणी मन एकांत कलह निकंदु देहथी मछर वयर विरोध । टालुं जिन वचने करी ते नवि भणीय स क्रोध तृणमणि सम करी गणइ वइरी मित्र समान । मान अनइं अपमाननइं ते जाणो जगि जाण प्रतिमा बारह पडिवजी चउदह पूरब सार । अंग ईग्यार भणुं सदा साधुं शिवसुख सार संयम धर' मुनिवर भला हुआ हुसइ जे २ भूरि । जेह अछइ ते प्रणमीइ नितु ऊगमतइ सुर गारव तीनइ परिहरी न करु पंच प्रमाद । संवेगइ मनवासिऊ न भणुं परअपवाद
॥३२॥ ते०...
॥३३॥ ते०...
॥३४॥ ते०..
॥३५॥ ते०...
॥३६।। ते०...
॥३७॥ ते०...
॥३८॥ ते०...
३०. संयम भार हवइउ (ख), ३१. नितु (ख), ३०. सदाइ (क), ३१. कलपडा (क), ३४. निरअहंकार (क), ३५. हीइ (क), ३६. उच्छंगि (ख), ३७. चरम जिसी संसर्गणा (क), ३८. समता (ख), ३९. तणो (ख), ४०. यदा (ख), ४१. धरि (ख), ४२. वली (ख), ४३. काय (ख),
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॥३९।। ते०...
॥४०॥ ते०...
॥४१॥ ते०...
॥४२॥ ते०...
॥४३॥ ते०...
श्रुतसागर धन्नउ कयवन्नऊ भलो अर्जुनमालागार। शालिभद्र थुलिभद्र मुनि पणमी जइ सुविचार सहस अढार सीलांगनां दश भेदइ यति धर्म । बालपणइ तरुणा पणइ जे मे कीधा कर्म सूधई मन आलोइसुं जेहनो छइ बहु पाप । सवि आरंभ निवारस्युं जेहथी थाइ संताप कचरो जिम परहो करी परिग्रह पापह मूल । पुण्य पंथ उडाइस्यइ जिन परि आकह तूल उपसम जलरस सीचसूक्रोध दावानल पूर जेहथी ततखिण परजलई तप जप धर्म अंकूर आठइ मद मरडी करी चित्त करुं सुकमाल। सरल पणइ माया हणी संतोषई लोभ जाल पररमणी रिध५ रूअडी पेखी कीधी राग। निंदउ गरहुं ते यदा चित्त करीअ निराग सामाइक विध वंदना पोसह नइ पछक्खांण६। जऊं काउसग्ग थिर करुं चउवीस छइ जांण वंदन तणी परी सियलु सायर जिम गंभीर । रवि जिम तेजइ दीपतो निजर निग्रह धीर सरणा च्यारे जद करुं अरिहंत सिध सुसाध । श्रीजिन धर्मह सिरि तिलऊ पूरब पुण्यह लाध आपण छइ परमादीया निसि दिन बहु आरंभ। धर्म मनोरथ मन धरई मूंकी दूरह दंभ तेहने सिवपद ढूकडो जांणी जइ सुभ भावइ। जिणवर गणहर इम कहइ भवियण सयल सहाव
॥४४।। ते०...
॥४५।। ते....
॥४६।। ते०...
॥४७॥ ते०...
॥४८॥ ते०...
॥४९॥ ते०...
॥५०॥ ते०...
४४. सीलना (क), ४५. रिद्धि (ख), ४६. पचखाण (ख), ४७. नियम (ख), ४८. अभिग्रह (ख),
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June-2019 जे पातिक कीधा घणां छांना प्रगट अनेक। ते गुरु मुख आलोईइ आणी विनय विवेक
॥५१॥ ते०... चरण मनोरथ मालिका श्रावक मुनि सुविचार । कंठिही राखइ आपणइ सदा ते पांमइ भवपार
॥५२।। ते०... निज मति भावइ भावना अवर करइ जि सार श्रीखेम कवि मुनीवर भणइ ते सुख लहइ अपार
॥५३॥ ते०...
___ ते दिन मुझ नई कदि हुस्यइं० इति श्री मनोरथमाला आत्महित कारक सज्झाय समाप्त ।
४९. विवेके (क), ५०. सुविकार (क), ५१. कंठही थई राई (ख).
___*वचन महिमा
टांक तराजू लायकै सव रस देखो तोल। जिह्वा सरखो रस नही जो मुख जाणे बोल॥
प्रत क्र. १२७२०० भावार्थ :- तराज लेकर सारे रसों का तोल कर लिया जाए, लेकिन यदि । मुख से जो शब्द बोलना जानता है, उसके जिह्वारस के समान कोई रस नहीं है।
श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे.
निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर)
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जून-२०१९ गुजराती बोलीमा विवृत अने संवृत ए-ओ
चुनीलाल वर्धमान शाह (गतांक से आगे)
तात्पर्य ए छे के अइ अने अउनां उच्चारणोने ओळखावनारां जे लिपिगत स्वरूपो जूनी गुजरातीमां मळे छे ते बहुविध छे अने ते तत्समयनां उच्चारणोनां वास्तविक प्रतिक हतां एम स्थापी शकातुं नथी। वळी जूदा जूदा प्रांतोमा एक ज शब्द जूदा जूदा प्रयत्नपूर्वक उच्चाराता होवा जोइए, तेथी ते शब्दो विविध स्वरूपमा लिपिबद्ध थया होय एम पण बनवा संभव छ । आ उच्चारणभेद तथा प्रयत्नभेदने परिणामे एक ज शब्दना ए-ओ संवृत अने विवृत स्वरूपे आजे पण उच्चाराता आपणे सांभळीए छीए। फारसी-ऊर्दू अय् कार-अव् कारने शुद्ध उच्चारमा स्थान होवा छतां लोकोनी गुजराती बोलीमां ते अइ कार-अउ कारने ज पामे छे अने प्राकृत-अपभ्रंशना अइ-अउनी पेठे तेनो पण व्यवहार थाय छे।
प्राकृत-अपभ्रंशना अइ-अउ सोळमी सदीना अंत सुधी-१७०० नी साल सुधी अने केटलाक प्रांतोमा त्यारपछी पण लखवामां ह्रस्व इ तथा उकारने पाम्या छे, एटले त्यां सुधी ते संवृत हता । त्यारपछी ते विवृतत्वने पामतां तेनी उपर बे प्रकारनी असर थइ। जेमणे अइ अने अउ मां अ उपरनो प्रयत्न उच्चारमा जाळवी राख्यो तेओना अनुगामीओ बइसइ अने बइठा (बॅसें अने बॅठा) उच्चारता होवा जोईए। कोइ लखाणमां भले बयसइ के बयठा मळी आवे, परन्तु तेओनो उच्चार तो एकज हतो; जेओए अ उपरनो प्रयत्न गुमावी इ पर स्थाप्यो तेओए बइसइनु बिसि (उच्चारमां बेसे) अने बइठानुं बिठा (उच्चारमां बेठा), नउसारीनु नुसारी (उच्चारमां नोसारी) कयें । आजे पण ए उच्चारणभेद प्रांतभेदे अस्तित्वमां छे। राजस्थानी-हिंदीमां ए विवत उच्चार ऐकार-औकारथी दर्शावाय छे, मारवाडीमां अवळी मात्राथी दर्शाववानी पद्धति जूनां पुस्तकोमांथी मळी आवे छे अने गुजराती लेखनमां ए भेद रह्यो नथी, पण हवे कोइ कोइ ते अर्धचंद्राकार चिह्न के उलटावेली मात्राथी दर्शावे छे । राजस्थानी-हिंदीमां Macdonaldy उच्चारण मैकडोनल्ड लखाय छे, ते उपरथी आपणे जोइ शकीए छीए के तेमनी बे मात्रा विशिष्ट प्रसंगे विवृत उच्चारना साधनरूप बने छ।
प्राकृत-अपभ्रंश भाषाना जे नियमो वैयाकरणीओए दर्शाव्या छे, ते नियमोने आधाररूपे स्वीकारीने आ विवृत-संवृत उच्चारणनी गुंचवणने सर्वथा उकेली शकाय
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June-2019 तेम नथी। गुजराती उच्चारणो उपर विधविध असरो थइ छे अने हजी पण थती जाय छे । मळी आवता हस्तलिखित साहित्यमांनी जोडणीने शुद्ध उच्चारना प्रतिकरूपे स्वीकारी लेवी ए शक्य नथी, एटले शब्दोना संस्कृत-प्राकृत तथा वर्तमान गुजराती स्वरूपोनी वच्चेनां उच्चारणोना लिपिगत अंकोडा कोइ कोइ वार जूनी गुजरातीमांथी मली आवे, अने कोइ वार न पण मळी आवे; परन्तु बहुविध शब्दो उपर थएली देखाती असर उपरथी ए अंकोडा अने तेनो सामान्य नियम निश्चित करी शकाय छे।
(५) ए अने ओ गुजराती शब्दमां छूटा होय के व्यंजननी साथे मळेला होय पण तेनी साथे जो कोमळ अनुस्वार जोडायलो होय तो ते ए अने ओ विवृत बने छ।'
अ अने ओ उपर, तेनी पाछळ आवता अनुनासिक व्यंजननुं वजन (वास्तविक रीते के उच्चारणना दोषथी पण) जो पडतुं होय तो ते विवृत उच्चाराय छे।
उदाहरणोः
एंधाण, पहाँच-पाँच, वंगण, ढाँग, साँग, गँडी, फँट, साँप, पाँक, वेंग, (व्यंग), रहेंट-रेंट, गोंध, भेंस, इत्यादि।
वॅण, रॅणी, पॉणी, चॅन, मॉम, सॅन (सैन्य), जैन (जैन), नॅन, व्हॅन, जॅम, इत्यादि।
नयर-नइर-नेर, परन्तु नयन-नइन-नेन न उच्चारातां नॅन उच्चाराय छे, ते पाछळना अनुनासिकना वजननो प्रभाव छ । आनी विशेष स्पष्टता नीचेनां उदाहरणोथी थशे।
वगोवq-वगोवणी पण वगॉणु रो-रोदणुं पण रॉj जोवं-जॉर्म्यु दोहवू-दोहनी-दहॉणी-दॉ’णी ते-तेथी पण तेमनुं इत्यादि।
आ अनुगामी अनुनासिकनुं वजन पूर्वना ए-ओ उपर पडे छे तेथी, जे लेखको उच्चारणने वस्तुतः पारखी शकता नथी तेओ ज्यारे एवा शब्दो लखे छे त्यारे तेमना लेखनमांथी पण ए वजन परखाइ आवे छे। तेओ वेंण, रेणी, सेन, वगोंणु, नेन एम लखे छे: ए जोडणी खोटी छे, परन्तु अनुगामी अनुनासिक- जे वजन तेमनी उच्चारपरीक्षक इंद्रियने समजाय छे, तेज वजन ए रीते तेओ लिपिमां उतारे छे। आज * दी. बा. केशवलाल ध्रुवना ‘विवृतविधान’मां आ नियमनो समावेश करवामां आव्यो छे.
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जून-२०१९ कारणथी चरोतरना ग्राम्य समुदायोमां ज्यारे आं (स्वर)नो उच्चार आँ करवामां आवे छे, त्यारे त्यां पण ए विवृत उच्चार आपोआप हाजर थाय छ । गांधी-गोंधी, सांधवंसाँध, सांढणी-साँढणी, रांड-राँड, मांचो-माँचो; एज रीते पाणी-पाणी, गाम-गाँम, गाणुं-गाँणु, चाणोद-चाँणोद इत्यादि। ___काठियावाडमां-मुख्यत्वे सोरठ अने हालारमा केटलाक वर्गोमां जइए छीए नो उच्चार उत्तरोत्तर चाल्या आवता विलक्षण उच्चारणना वारसाने कारणे जइएँ छीएँ एम थाय छे; तेथी जुदी रीते गोहीलवाड-झालावाडमां जइइं छीइं एम प्राकृत जनता बोले छे । आ उच्चारणमांज्यारे एनो उच्चार ऐं करवामां आवे छे त्यारे मूळ संवृत होवा छतां उच्चारमां विवृत बोलाय छे। सोरठ हालारना केटलाक लेखकोना लेखोमां पण जइएं, प्रमाणे, जातें, एवा अनुस्वारयुक्त ऐं कार छूटथी वपरायला जोवामां आवे छे अने तेओ तेनो विवृत उच्चार करे छ।
पिंड शब्द उपर पेंडक-पँडाँ शब्दो साधित थयो छ । मावाना पेंडानी साथे ए शब्द विशे, प्रचलित थयो छ । झालावाडमां तेने दूधपींडा कहे छे; केटलेक स्थळे तेने पँडा कहेवामां आवे छे; परंतु हवे तो घणे स्थळे एनो कोमळ अनुस्वार उच्चारमाथी उडी गयो छे तेने परिणामे पॅडा अने पेडा पण छूटथी प्रचलित थइ गया छे; अनुस्वारनी साथे तेनुं विवृतत्व उडी गयु छ । तेथी उलटुं प्रेम जेवा तत्सम शब्दने अनुगामी अनुनासिकवजन केटलाको पासे प्रेम अने पेन्सील ने पॅन्सील बोलावे छे !
विवृत अने अर्धविवृत ए-ओ गुजराती बोलीमां प्रचलित होवा छतां अने तेनी विशिष्टता सर्वविदित होवा छतां वर्तमान काळे बोलीमा जे धीरो पलटो थतो देखाय छे, तेमां तेनो प्रचार केटलो रहेशे ते अत्यारे कहेवू मुश्केल छ । पहेलां बोली लोकोना उच्चारणना वारसारूपे जनताने मळती अने तेमां केळवणीथी भाषाशुद्धि आवती। शिक्षण मोटे भागे मुखद्वारा अपातुं, अने उच्चारणनो वारसो उछरती प्रजाने मळ्या करतो। हवे मोटे भागे पुस्तकोना वाचनद्वारा शिक्षण अपाय छे अने परीक्षाओ लेखनद्वारा लेवाय छे, तेथी उच्चारणनो सीधो वारसो ओछो थतां विवृत उच्चारो संवृतता तरफ ढळता जाय छ। लेखनमा विवृत उच्चार माटे अवळी के उलटावेली मात्रा कोइ कोइ लखे छे, परन्तु हालनी झडपी छापकळा कदाच ए पद्धतिने आगळ वधवा नहि दे एम लागे छे।
(बुद्धिप्रकाश पुस्तक ८२मुं एप्रिल थी जुन १९३४ अंक २ मांथी साभार)
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June-2019 श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्रीकैलाससागरसरि
ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से आगे) संगणक विभाग
ज्ञानमंदिर में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों तथा मुद्रित पुस्तकों की सूक्ष्मतम सूचनाओं को तर्कबद्ध व बहूपयोगी तरीके से सूचीबद्ध करना एक बहुत ही जटिल कार्य है, लेकिन ग्रंथ सरलता से उपलब्ध हो सके इसके लिए बहुद्देशीय कम्प्युटर विभाग कार्यरत है। वर्तमान समय में ग्रंथालय सेवा में कम्प्यूटर प्रोग्राम का महत्त्व अति आवश्यक एवं उपयोगी सिद्ध हो रहा है।
हस्तलिखित, मुद्रित ग्रंथ, पत्र-पत्रिकाओं तथा उनमें समाविष्ट कृतियों की विस्तृत सूची एवं विस्तृत सूचनाएँ कम्प्यूटराइज्ड की जा रही हैं। इस अवधारणा के साथ परम पूज्य आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म.सा. के मार्गदर्शन में एक विशिष्ट लाईब्रेरी प्रोग्राम बनाया गया है, जिसके माध्यम से हस्तप्रतों, मुद्रित पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं में रही हुई छोटी-बड़ी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संग्रह किया जा रहा है। ___ प्रायः सभी ग्रंथालयों में पुस्तकों के ऊपर छपे हुए नाम से पुस्तकें ढूँढकर वाचक को दी जाती है। परन्तु इस ज्ञानमंदिर में किसी भी पुस्तक, हस्तप्रत अथवा मैगजीन अंकों की प्रविष्टि की ऐसी अनूठी पद्धति अपनाई गई है, जिसके फलस्वरूप वाचकों तथा संशोधकों को उनके पास रही सीमित जानकारियों के आधार पर उनकी अपेक्षित अध्ययन सामग्री मिनटों या सेकेन्डों में प्राप्त हो जाती है।
आज इस ज्ञानमंदिर में निम्नलिखित परियोजनाओं का कार्य प्रगति पर है
१) समग्र उपलब्ध जैन साहित्य की विस्तृत सूचनाओं की बहूपयोगी व सुसंकलित कम्प्युटराइज्ड सूची तैयार करना। जिसमें तीन स्तंभो के आधार से सूचनाएँ संकलित की जाती है, उसमें क) प्रकाशन- प्रकाशन से सम्बन्धित सूचनाएँ जैसे आवृत्ति, जिल्द, पृष्ठ, पूर्णता आदि एवं उससे जुड़े प्रकाशक, ग्रंथमाला, संपादक आदि विद्वान, पेटांक, कृति, व कृतियों की रचना प्रशस्ति में उपलब्ध विद्वान आदि भरे जाते हैं। ख) हस्तप्रतहस्तप्रत से जुड़ी प्रतिलेखन पुष्पिका (विद्वान्,संवत्-मास-पक्ष-तिथि, शहर, पुष्पिका
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जून-२०१९ श्लोक आदि), हस्तप्रत की दशा-लाक्षणिकता, माप-पंक्ति-अक्षर एवं कृति विषयवस्तु के आधार पर पेटांक व कृतियों की सूचनाएँ संकलित की जाती हैं। ग) मैगजीनमैगजीन के अंक प्रकाशित वर्ष मास-पक्ष-तिथि, अंक संपादक, कृति संपादक, कृति विषयवस्तु आदि के आधार पर पेटांक व कृतियों की सूचनाएँ संकलित की जाती हैं।
२) श्रमण एवं गृहस्थ जैनों की कृतित्व को दर्शानेवाली बहूपयोगी वंशावलियाँ तैयार करनी- ये सूचनाएँ कृति की रचना प्रशस्ति, हस्तप्रतों की प्रतिलेखन पुष्पिका, प्रकाशनों के सम्पादक आदि की सूचनाओं में से, गच्छों की पट्टावलियों में से, विस्तृत वंशावलियों में से तथा प्रतिमा व शिलालेखों में से संकलित की जा रही हैं। इनमें एक ही स्थल से उस साधु/गृहस्थ की वंश-परंपरा, उनके द्वारा की गई रचनाएँ, लिखी-लिखवाई गई हस्तप्रतें, की-करवाई गई प्रतिष्ठा-अंजनशलाका, बनवाए गए जिनमन्दिर, निकाले/निकलवाए गए संघ आदि की सूचनाएँ, उनका हुआ नगरों/ गाँवों में विचरण-निवास, उनका परस्पर सम्बन्ध, तत्कालीन राजा-मन्त्री की सूचनाएँ इत्यादि का समावेश होता है ।
३) प्रोग्राम में संकलित सूचनाओं के आधार पर अद्यावधि अप्रकाशित जैन साहित्य का सूचीपत्र बनाकर संशोधकों तथा संपादकों के कार्य में सहयोगी बनना ।
४) अप्रकाशित व अशुद्ध प्रकाशित जैन साहित्य को संशुद्धकर प्रकाशित करना।
५) अन्यत्र विचरण कर रहे पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों व गीतार्थ गुरुभगवन्तों के स्व-पर कल्याणकारी अध्ययन-संशोधन हेतु संगृहीत सूचनाओं सन्दर्भो एवं पुस्तकों की मूल अथवा प्रतिलिपि, फोटोस्टेट कॉपी, ई-मेल तथा व्हॉट्सएप के माध्यम से उपलब्ध कराना।
६) संस्था द्वारा भारत भर में कहीं पर भी हस्तप्रत आदि के पुराने ज्ञानभंडार, जो वर्षों से खोले ही न गये हों, वैसी जगहों के ट्रस्टीश्रीओं के साथ आवश्यक औपचारिकताएँ एवं व्यवहार द्वारा इस दुर्लभ निधि का मूल्य समझाकर वहाँ संगृहीत पाण्डुलिपियों को स्केन करने का प्रोजेक्ट किया जाता है।
इस कार्य का संपूर्ण खर्च संस्था द्वारा उठाया जाता है। संस्था अपनी टीम उस ज्ञानभंडार में भेजती है जो स्केनर एवं कैमरा आदि से सज्ज होती है। वह टीम दिन में ५ से १० हजार पृष्ठों का स्केनींग, एडीटींग, क्रॉस चेकिंग आदि कार्य पूर्ण करती है एवं फाईनल हुए डेटा के आधार से पीडीएफ तैयार करती है। जिस भंडार द्वारा यह कार्य सौंपा
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June-2019 गया हो उसको पूरे डेटा की एक कॉपी हार्डडिस्क में एवं १००० वर्ष तक सेफ रहे वैसी एमडिस्क (जिसकी संग्रहण शक्ति २५ जी.बी. एवं उससे भी ज्यादा होती है) दी जाती है। साथ ही संस्था द्वारा उन हस्तप्रतों की सूचनाओं का विस्तृत सूचीकरण भी किया जाता है । जिससे स्कॉलर जब भी संस्था में किसी ग्रंथ आदि के लिये पूछते है तब कोबा एवं अन्य स्केन किये गए भंडारों में से भी डेटा उपलब्ध करवाया जाता हैं। जिससे उनका आवश्यक कार्य सहजता से पूर्ण हो जाता है।
इस प्रकार समाज सेवा के क्षेत्र में कम्प्यूटर विभाग के द्वारा अनेकविध प्रवृत्तियाँ हो रही हैं और होती रहेंगी। इस विभाग के द्वारा श्रुतसेवा में बनाए गए बहूपयोगी विविध प्रोग्राम१. डबल एन्ट्री प्रोग्राम -
पुस्तक प्रकाशन कार्यों में प्रुफ रीडींग प्रक्रिया में प. पू. साधु-साध्वीजी भगवंतों का बहुत समय लग जाता है, जिससे महत्त्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित करने में समय मर्यादा का पालन नहीं हो पाता था। इस समस्या को ध्यान रखते हुए संस्था ने यह प्रोग्राम तैयार करवाया है, जिसके माध्यम से प्रकाशित होने जा रहे प्रकाशन का डेटा दो बार अलग-अलग ऑपरेटरों द्वारा टाइप करवाया जाता है। जिससे अशुद्धियों का प्रमाण नहिवत् हो जाता है। इस प्रोग्राम में पहली बार की गई एन्ट्री एवं दूसरी बार की जानेवाली एन्ट्री को टेक्नीकली कम्पेयर करवाया जाता है एवं जहाँ भी फर्क नजर आए वहाँ प्रोग्राम संकेत देकर रुक जाता है, तब ऑपरेटर टेक्स्ट को देखकर सही शब्द का चयन करके डेटा को शत-प्रतिशत शुद्ध करते हुए आगे बढता है। २. इमेज क्लिनर एन्ड एलाईनर - __प्रवर्तमान समय में डेटा डिजीटाईजेशन की उपयोगिता बहुत बढ़ गई है। जिसमें हस्तप्रत, प्रिन्टेड पुस्तक एवं मैगजिन के अंकों को स्केन किया जाता है। इस प्रक्रिया में स्केन किए हुए हस्तप्रतों, पुस्तकों आदि के इमेज को आवश्यकतानुसार एडिट किजा जाता है, जिससे स्वच्छ और अच्छी से अच्छी पीडीएफ बनाई जा सकती है। संस्था के इस प्रोग्राम से वह प्रक्रिया सरलता एवं शीघ्रतापूर्वक पूर्ण हो जाती है। उस स्केनिंग के पीडीएफ फाईल ऑनलाईन तथा लाइब्रेरी प्रोग्राम में संबंधित हस्तप्रत, पुस्तकादि से जोड़ दी जाती है। जिससे स्कॉलर को जब भी उस डेटा की आवश्यकता हो तब सर्च करके इन्टरनेट के द्वारा अथवा लाइब्रेरी प्रोग्राम से जुड़े डेटा के आधार पर सहजता पूर्वक उपलब्ध करवाई जाती है।
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जून-२०१९ ३. डेटा कन्वर्जन प्रोजेक्ट - __इस प्रोग्राम के तहत थर्ड पार्टी के द्वारा सीडेक, श्रीलिपी, भाषा भारती आदि के पुराने फॉन्ट्स में से तैयार किये गये ग्रंथों को युनिकोड फॉन्ट्स में तुरन्त ही कन्वर्ट कर दिया जाता है। जिससे वह डेटा युनिवर्स के किसी भी कम्प्यूटर पर उन फॉन्ट्स को इन्स्टॉल किये बिना भी आसानी से देखा एवं पढा जा सकता है। विन्डोस द्वारा युनिकोड फॉन्ट्स बाय डिफॉल्ट हर कम्प्यूटर में दिये जाते हैं, उसका उपयोग करने के लिये कम्प्यूटर के कॉन्फिगरेशन में जरूरी फेरफार करना होता है। जिससे सरलतापूर्वक कोई भी व्यक्ति अपने कम्प्यूटर पर गुजराती-हिन्दी-संस्कृत आदि भाषा में टाईप कर सकता है। इस प्रोग्राम के द्वारा कन्वर्ट किया हुआ डेटा आगे चलकर हस्तप्रत संपादन संशोधन करनेवाली टीम को उनके पास रही अपूर्ण हस्तप्रतों को पहचानने में बहत ही उपयोगी साबित होती है। इसके लिए हस्तप्रत में रहे डेटा में से कुछेक अक्षरों को विशिष्ट प्रोग्राम की सहायता से इन कन्वर्टेड डेटा में सरलता से ढूँढकर अपूर्ण हस्तप्रतों का संपादन कार्य सहजता से पूर्ण किया जाता है। ४. ताडपत्र फोलिओ स्प्लिटर प्रोग्राम - ___ संस्था में अन्य ज्ञानभंडारों के ताडपत्रों आदि के माईक्रोफिल्म के रोल्स को स्केन किया गया है। या सीधे ही स्केन किये गये लंबे ताडपत्र आदि ग्रंथों को विद्वानों के द्वारा सुगमता से पढ़ा जा सके, वैसा प्रिन्ट दिया जाता है। इस प्रोग्राम की सहायता से स्कॉलरों को ग्रंथ को पढ़ने में सरलता रहे उस साइज में कट करके खास फोर्मेट में प्रिन्ट उपलब्ध करवाई जाती है। जब स्केन की गई फाईल के अक्षर स्पष्ट नहीं होते हैं तब खास प्रक्रियाओं के द्वारा उन अक्षरों को अधिक स्पष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु एक एप्लिकेशन भी तैयार की गई है, जिसके माध्यम से लंबे ताडपत्रों के एक से अधिक पन्नों में प्रिन्ट किया जा सके या फिर एक पत्र के तीन टुकड़ों में एक ही पृष्ठ पर प्रिन्ट दिया जा सके। जिससे इन ग्रंथों में रही महत्त्वपूर्ण कृतियों का संपादन कार्य सहजतापूर्वक हो सके। ५. डेटा इम्पोर्टर प्रोग्राम - ___ संस्था की शहरशाखा में नियुक्त कर्मचारियों के द्वारा एक्सेल फाईल में अन्य ज्ञानभंडारों के हस्तप्रतों के पीडीएफ के आधार पर सूचिकरण किया जा रहा है। उस सूचिकरण डेटा को लायब्रेरी प्रोग्राम में सेमी ऑटो पद्धति से प्रविष्टि करवाई जाती है। जिसमें कर्मचारी के द्वारा अलग-अलग एक्सेल फाईल में किया गया सूचिकरण
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June-2019 कार्य सीधा ही मुख्य प्रोग्राम में दिखाया जा सकता है। लाइब्रेरी प्रोग्राम में इस डेटा की प्रविष्टि हो जाने के बाद साधु-साध्वी भगवंतो एवं स्कॉलरों को अपेक्षित ग्रंथ संपादन/ संशोधन हेतु दिया जाता है। ___ संगणक विभाग के द्वारा समय-समय पर लाईब्रेरी प्रोग्राम में नई-नई सुविधाएँ दी जाती हैं, जिससे सूचीकरण के कार्य में गति व शुद्धता लाई जा सके। विशेष रूप से विविध शब्दकोष, सन्दर्भग्रन्थों तथा आगमादि के पाठों को एक विशिष्ट प्रोग्राम के द्वारा ढूँढकर अपूर्ण हस्तप्रतों तथा लुटित हस्तप्रतों के बीच के पत्रों का पाठ निर्धारण किया जाता है। इस तरह अन्य भी छोटे-बड़े सोफ्टवेअर द्वारा श्रुतसेवा के क्षेत्र में बहूपयोगी कार्य को सिद्ध किया गया है।
यहाँ प्रस्तुत मुख्य प्रोग्रामों का उल्लेख कर कम्प्यूटर विभाग की विशेषता बताने का प्रयास किया गया है। यह तकनीकी कार्य समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो रहा है, यहाँ स्वविकसित कम्प्यूटर लाइब्रेरी प्रोग्राम के माध्यम से संकलित सूचनाओं से विद्वान व संशोधकवर्ग लाभान्वित हो रहे हैं।
(क्रमशः) (अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ३४ से)
धर्मसभा में पूज्यश्री को बाकरा रोड जैन संघ, मोदरा जैन संघ आदि स्थलों के श्रीसंघों के द्वारा उनके यहाँ भी पधारने की विनती की गई जिसे पूज्यश्रीजी ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। आगामी १३ जून से १५ जून तक पूज्य आचार्यश्री भीनमाल के कीर्तिस्तम्भ में प्रवास करेंगे।
श्री महावीरालय में प्रभु श्री महावीरस्वामी का भव्य सूर्यतिलक
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी २२ मई को दोपहर २ बजकर ०७ मिनट पर भगवान महावीरस्वामी के ललाट पर सूर्यकिरणों ने तिलक किया। हजारों भक्तों ने इस आह्लाक दृश्य का अवलोकन कर स्वयं को कृतार्थ किया। दर्शनार्थियों की भीड़ को कम करने हेतु परिसर में जगह-जगह क्लोज सर्किट टी.वी. भी लगाए गए थे, जिसके माध्यम से लोगों ने इस भव्य दृश्य को निहारा । प्रभु श्री महावीरस्वामी की जय-जयकार से समस्त वातावरण गूंज उठा। प्रभु के दर्शन-वन्दन के पश्चात् दर्शनार्थियों हेतु शेठ श्री महेशकुमारजी रामप्रकाशजी जैन, दिल्ली की तरफ से भाता का भी आयोजन किया गया था।
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श्रुतसागर
जून-२०१९ पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम - ज्ञानविमल साहित्य संग्रह पूर्व संपादिका - साध्वी श्री नम्रगिराश्रीजी पुनःसंपादक - पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी प्रकाशक - स्मृतिमंदिर प्रकाशन, पालडी, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष - विक्रम २०७५ मूल्य - २३५/भाषा - मारुगुर्जर
विक्रम संवत की १८वीं सदी के महान जैनाचार्य श्री ज्ञानविमलसूरिजी म. सा. ने अनेक आध्यात्मिक कृतियों की रचना करके भव्यजीवों का कल्याण किया है। सुप्रसिद्ध तपागच्छ के जैनाचार्यों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने लोकभोग्य मारुगुर्जर भाषा में अनेक प्रकार की रचनाएँ की हैं, जो आज चतुर्विध संघ के लिए वरदान स्वरूप सिद्ध हो रहा है। घरों और जिनालयों में चारों ओर उनकी कृतियों की गूंज सुनाई देती है।
आज से लगभग १०० वर्ष पूर्व पूज्य साध्वीश्री नम्रगिराश्रीजी ने ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियों का संकलन करके ज्ञानविमल साहित्य संग्रह नामक प्रकाशन का संपादन किया था, इस प्रकाशन में ज्ञानविमलसूरिजी द्वारा रचित लगभग सभी स्तुत्यात्मक गुजराती कृतियों को समाहित कर लिया गया है। पूज्य साध्वीश्रीजी ने इन सभी कृतियों को एक प्रकाशन में संकलित कर समाज का बहुत बड़ा उपकार किया था। जिस किसी श्रद्धालु-भाविक को ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियों के स्वाध्याय, मनन, वांचन की भावना होती, उन्हें जैन जगत के विशाल सागर में गोता लगाकर एक-एक मोती को ढूँढ़ने हेतु मेहनत करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि पूज्य साध्वीश्रीजी ने ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियाँ रूपी सभी मोतीयों को एक ही माला में गूंथकर सागर को गागर में समाहित कर दिया था। ___ मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य गगन में श्री ज्ञानविमलसूरिजी का नाम एक देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति आलोकित है। इनकी कृतियाँ कथात्मक, तत्त्वविचारात्मक, बोधात्मक, स्तुत्यात्मक आदि वैविध विषयों से परिपूर्ण है। संस्कृत एवं गुजराती
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SHRUTSAGAR
June-2019 भाषाबद्ध गद्य तथा पद्य स्वरूप में उपलब्ध इनकी कृतियों में छंद, अलंकार आदि का अध्ययन करने से इनके काव्यकौशल एवं पांडित्य का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इन्होंने स्तुति, स्तवन, चैत्यवंदन, सज्झाय आदि अनेक प्रकार की कृतियों की रचना विपुल मात्रा में की है। ऐसा कहा जाता है कि महातीर्थ शत्रुजय की ३६०० जितनी स्तवनों की रचना की है। इसके अतिरिक्त आबु, तारंगा, राणकपुर आदि तीर्थों के स्तवनों की भी रचनाओं में तत्कालीन ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन किया है। इन्होंने चौबीसी, बीसी, सभी तीर्थंकरों, साधारणजिन आदि के अनेक स्तवनों की रचना की है, जिसमें ज्ञान, भक्ति के साथ अनेक उपमाओं एवं अलंकारों का प्रयोग किया है। साथ ही सभी तिथियों की स्तुति करते हुए उनकी महत्ता को प्रकाशित किया है। कहने का तात्पर्य है कि इन्होंने अपनी सभी कृतियों में भक्ति के साथ-साथ ज्ञान को भी समृद्ध किया है। ऐसा कहा जा सकता है कि इनकी कृतियाँ न केवल संख्या में अधिक हैं बल्कि उन कृतियों की गुणवत्ता भी अपार है।
लगभग १०० वर्ष पूर्व प्रकाशित एवं आज भी समाज के लिए अति उपयोगी यह प्रकाशन अप्राप्य हो गया था, जिसके कारण पूज्य पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी ने इस ग्रन्थ का पुनः संपादन किया है। भक्तगण इन कृतियों का गायन-वांचन कर भक्तिरस में डुबकी लगाएंगे, ऐसी आशा है, पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। ग्रंथ का अवलोकन करते ही मन में एक अलौकिक भाव उत्पन्न होने लगता है। ग्रंथ में विशिष्ट विस्तृत विषयानुक्रमणिका देने से प्रकाशन बहुपयोगी हो गया है। ___ अनेक महान ग्रंथों की प्रस्तुति के पश्चात् पूज्यश्रीजी की यह एक और सीमाचिह्न रूप में प्रस्तुति है। संघ, विद्वद्वर्ग, जिज्ञासू इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी शुभेच्छा है।
पूज्य पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी ने इस अप्राप्य ग्रन्थ का पुनः सम्पादन कर लोकोपयोगी बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं प्रभुभक्तिमार्ग में उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ।
पूज्य पंन्यासश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन।
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श्रुतसागर
जून-२०१९
34 समाचारसार
परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में
रेवतडा गाँव में त्रिदिवसीय कार्यक्रम का भव्य आयोजन जालोर शहर के पास रेवतडा गाँव में दिनांक ७/६/२०१९ को प्रातः पूज्य राष्ट्रसन्त का उनके शिष्य-प्रशिष्य परिवार के साथ भव्य शोभायात्रा के साथ नगर प्रवेश करवाया गया। शोभायात्रा में हाथी, घोड़ा, ऊँट, बैन्डबाजा, ध्वजा-पताका आदि के साथ स्वागत किया गया। हेलिकॉप्टर से पुष्पवृष्टि की गई। जिनमंदिर के दर्शन के पश्चात् शोभायात्रा धर्मसभा में परिवर्तित हो गई।
वेदमूथा परिवार ने दीप प्रज्वलित कर धर्मसभा का प्रारम्भ किया। श्रीसंघ के प्रमुख पदाधिकारियों ने उपस्थित जनसमुदाय का हार्दिक स्वागत करते हुए कहा कि आज हमारे पुण्योदय से परम पूज्य राष्ट्रसन्त पद्मसागरसूरीश्वरीजी महाराज हमारे बीच पधारे हैं।
स्थानीय श्रेष्ठीवों ने पूज्य राष्ट्रसन्त, पूज्य आचार्य श्री हेमचंद्रसागरसूरीश्वरजी, पूज्य श्री प्रशान्तसागरजी गणिवर्य एवं संघस्थ समस्त साधु-साध्वीजी भगवन्तों को कामली वोराकर अपना सौभाग्य माना। संघवी मदनजी ओटमलजी जेठाजी वेदमुथा परिवार एवं विशेषकर श्राविकाओं के द्वारा पूज्यश्रीजी की वन्दना की गई।
पूज्य राष्ट्रसन्तश्रीजी के आत्मीय एवं रेवतडा श्रीसंघ के महान उपकारी पूज्य आचार्य श्री जयन्तसेनसूरीश्वरजी महाराज को स्मरणकर पूज्यश्रीजी ने अपना प्रवचन प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा कि आपके प्रेम और भावना को देखकर यहाँ आया हूँ। आप सभी श्रावकजीवन का पूर्णरूप से पालन करें, यही हमारा मंगल आशीर्वाद एवं हमारी शुभकामना है।
७ जून से ९ जून तक प्रतिदिन प्रातःकाल भक्तामर पाठ, पूज्यश्री का प्रवचन, दोपहर में प्रभुपूजा तथा रात्रि में भक्तिसंगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। महोत्सव में बेंगलोर, चेन्नई, मुम्बई, हैदराबाद, अहमदाबाद, मैसूर, मदुरै, पूना, विजयवाडा तथा सूरत सहित राजस्थान के कई स्थानों से गुरुभक्त पधारे थे ।
(अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ३१ पर)
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परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में
रेवतडा गाँव में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम की झलक
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गुरपाल बाम MORE A मैडस होररी टोली
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गुरुदेव
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City So, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. चारित्रमनोरथमाला कृति प्रतीक चित्र BOOK-POST/PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि.गांधीनगर 382007 फोन नं.(०७१)२३२७६२०४,२०५,२५२ फेक्स (071)23276249 Website : www.kobatirth.org omall: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007. Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate. Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI O For Private and Personal Use Only