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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर जून-२०१९ कइ जीवहिंसा कइ हिंसा, धरम ए किण वात रे, जे हलू(लु)-करमा तेह जाणइ, स्यू(स्यु) कहां तस मात रे ॥१७(१८)।। साचइ... हिंसा थकी दुख लाख थास्यइ, दयाथी सुख-थाट रे, जिम भला जाणउ तेम विचरउ, कही बेऊ वाट रे ॥१८(१९)।। साचइ... पजूसणादिक परव आव्यां, कीजीयइ जिनधर्म रे, पालियइ जीवदया भली परि, धर्म रउ ए मर्म रे ॥१९(२०)।। साचइ... तिणि परव आव्यां दलइ पीसइ, हणइ मूढ छ काय रे, गाडरी परवाह पडियां, धरम इम किम थाय रे ॥२०(२१)।। साचइ... जिनधम(म)-आगममांहि निरमल, लहइ जिहां तिहां सोह रे, पिण आज धसमस धणी तिजतां", हुअउ भैसा-डोहरे ॥२१(२२)। साचइ... भगवंत पहुता मुगति नगरी, नीरंजन निराकार रे, चिदानंद ज्योती(ति)रूप सोहइ, सकल-जन-सुखकार रे ॥२२(२३)।। साचइ... तेहनइ जिमिवा भणी अविधइं, भला भरि भरि थाल रे, घृत सालिनइ पकवान मेल्हइ, ए किसउं जंजाल रे ॥२३(२४)। साचइ... लोकीक लोकोत्तर क्रियायइं, मेर(रू) सरिसव फेर [रे], पिण आज किहां किहां एक दीसइ, ए वडउ अंधेर रे ॥२४(२५)।। साचइ... लोकीकथी पिण अछइ विरूअउ, लोकोत्तर-मिथ्यात रे, वछनागथी पिण विस कहीजइ, सहत घृत सम मात रे ॥२५(२६)। साचइ... समकित तणी जे सार न लहइ, न जाणइ नवतत्त्वरे, श्रावक नहीं पिण तेह सावज, जाणिज्यो इकचित्त रे ॥२६(२७)।। साचइ... इक जीवरक्षा सुद्ध पालइ, प्रथम समकित सुद्ध रे, तउ जाणि सोभइ अनइ सुरहउ२२, मिल्या मिश्री दुद्ध रे ॥२७(२८)।। साचइ... धन तेह जे संसार तजि(जी)नइ, आदरइ मुनिवेस रे, त्रस अनइ थावर जीव न हणइ, तिम न द्यइ उपदेस रे ॥२८(२९)।। साचइ... १७. प्रवाह, १८. त्यजता, १९. ?, २०. जमवा, २१. जंगली प्राणी, २२. ?, For Private and Personal Use Only
SR No.525347
Book TitleShrutsagar 2019 06 Volume 06 Issue 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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