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June-2019
ज्ञानसागरना तीरेतीरे (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज:२)
डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..)
रोजनीशीमां आलेखायेला सात कडीना आ काव्यनी एक खूबी ए छे के आखा काव्यनु आलेखन सहेज पण छेकछाक वगरनुं जोवा मळे छे। हृदयमां जागतो भाव सीधेसीधो ज रोजनीशीनां पानां पर अंकातो गयो होय तेम लागे छे। आमां तेओने शाब्दिक फेरफारो पण करवा पड्या नथी!
अहीं गुरुभावनानुं गौरव करतां तेओ कहे छ : “ऊंघ्यो देव जगावीयो रे - देह देरासरमाही - प्रगटे वह्नि वह्निथी रे - गुरुथी गुरुपणुं मांही।” - __ आ पछी आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी गुरुशिष्यना ऐक्यनी वात करीने वि. सं. १९७१ना नूतन वर्षना प्रारंभे भावपूर्वक गुरुने स्मरे छे । तेओए गायेलो आ गुरुमहिमा अनुभूतिना पाया पर रचायेलो होवाथी वधारे हृदयस्पर्शी बन्यो छे। विजापुरना एक निरक्षर कणबी कुटुंबना बाळकनुं गुरुकृपाए ज योगनिष्ठ आचार्य तरीके आध्यात्मिक रूपांतर थयु हतुं, ए अहीं पण जोई शकाय छे।
रोजनीशीना आरंभे 'स्व'मां परमात्मभाव अनुभववानी पोतानी झंखनाने प्रगट करतां तेओ कहे छे : ___ “सर्व जीवोनी रक्षार्थे प्रवृत्ति कराओ। सत्य वदवामां जीवन वह्या करो। अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग वगेरेनी आराधना परिपूर्ण द्रव्य अने भावथी थाओ। अप्रमत्तपणे आत्मसमाधिमां द्रव्य अने भावथी स्वजीवन वहो। जैन शासननी प्रभावना थाय एवा संयोगो प्राप्त थाओ। जैन दृष्टिए, शासनरक्षक दृष्टिए, सर्वजीवदया दृष्टिए, सर्व नामोनी अपेक्षाए मन, वचन अने कायामां क्रिया (कर्म), योगित्व अने ज्ञानयोगित्व प्रगटो। अध्यात्मज्ञाननां उच्च रहस्योना अनुभव वडे आत्मा सहजानंदमां मस्त रहो। अप्रमत्त भावनी जीवन्मुक्तिमां शुद्धोपयोग वडे स्थिरता थाओ। उत्तम ज्ञान, दर्शन अने चारित्र द्वारा 'स्व'मां परमात्मत्व अनुभवाओ।"
आ एक वर्ष दरमियान एमणे अनेक स्थळोए विहार को हतो। एमां माणसा, रिद्रोल, विजापुर, ईडर, खेडब्रह्मा, कुंभारियाजी, अंबाजी, आबु, अचलगढ, दांतीवाडा,
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