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SHRUTSAGAR
June-2019 भाषाबद्ध गद्य तथा पद्य स्वरूप में उपलब्ध इनकी कृतियों में छंद, अलंकार आदि का अध्ययन करने से इनके काव्यकौशल एवं पांडित्य का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इन्होंने स्तुति, स्तवन, चैत्यवंदन, सज्झाय आदि अनेक प्रकार की कृतियों की रचना विपुल मात्रा में की है। ऐसा कहा जाता है कि महातीर्थ शत्रुजय की ३६०० जितनी स्तवनों की रचना की है। इसके अतिरिक्त आबु, तारंगा, राणकपुर आदि तीर्थों के स्तवनों की भी रचनाओं में तत्कालीन ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन किया है। इन्होंने चौबीसी, बीसी, सभी तीर्थंकरों, साधारणजिन आदि के अनेक स्तवनों की रचना की है, जिसमें ज्ञान, भक्ति के साथ अनेक उपमाओं एवं अलंकारों का प्रयोग किया है। साथ ही सभी तिथियों की स्तुति करते हुए उनकी महत्ता को प्रकाशित किया है। कहने का तात्पर्य है कि इन्होंने अपनी सभी कृतियों में भक्ति के साथ-साथ ज्ञान को भी समृद्ध किया है। ऐसा कहा जा सकता है कि इनकी कृतियाँ न केवल संख्या में अधिक हैं बल्कि उन कृतियों की गुणवत्ता भी अपार है।
लगभग १०० वर्ष पूर्व प्रकाशित एवं आज भी समाज के लिए अति उपयोगी यह प्रकाशन अप्राप्य हो गया था, जिसके कारण पूज्य पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी ने इस ग्रन्थ का पुनः संपादन किया है। भक्तगण इन कृतियों का गायन-वांचन कर भक्तिरस में डुबकी लगाएंगे, ऐसी आशा है, पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। ग्रंथ का अवलोकन करते ही मन में एक अलौकिक भाव उत्पन्न होने लगता है। ग्रंथ में विशिष्ट विस्तृत विषयानुक्रमणिका देने से प्रकाशन बहुपयोगी हो गया है। ___ अनेक महान ग्रंथों की प्रस्तुति के पश्चात् पूज्यश्रीजी की यह एक और सीमाचिह्न रूप में प्रस्तुति है। संघ, विद्वद्वर्ग, जिज्ञासू इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी शुभेच्छा है।
पूज्य पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी ने इस अप्राप्य ग्रन्थ का पुनः सम्पादन कर लोकोपयोगी बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं प्रभुभक्तिमार्ग में उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ।
पूज्य पंन्यासश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन।
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