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श्रुतसागर
जून-२०१९ पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम - ज्ञानविमल साहित्य संग्रह पूर्व संपादिका - साध्वी श्री नम्रगिराश्रीजी पुनःसंपादक - पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी प्रकाशक - स्मृतिमंदिर प्रकाशन, पालडी, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष - विक्रम २०७५ मूल्य - २३५/भाषा - मारुगुर्जर
विक्रम संवत की १८वीं सदी के महान जैनाचार्य श्री ज्ञानविमलसूरिजी म. सा. ने अनेक आध्यात्मिक कृतियों की रचना करके भव्यजीवों का कल्याण किया है। सुप्रसिद्ध तपागच्छ के जैनाचार्यों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने लोकभोग्य मारुगुर्जर भाषा में अनेक प्रकार की रचनाएँ की हैं, जो आज चतुर्विध संघ के लिए वरदान स्वरूप सिद्ध हो रहा है। घरों और जिनालयों में चारों ओर उनकी कृतियों की गूंज सुनाई देती है।
आज से लगभग १०० वर्ष पूर्व पूज्य साध्वीश्री नम्रगिराश्रीजी ने ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियों का संकलन करके ज्ञानविमल साहित्य संग्रह नामक प्रकाशन का संपादन किया था, इस प्रकाशन में ज्ञानविमलसूरिजी द्वारा रचित लगभग सभी स्तुत्यात्मक गुजराती कृतियों को समाहित कर लिया गया है। पूज्य साध्वीश्रीजी ने इन सभी कृतियों को एक प्रकाशन में संकलित कर समाज का बहुत बड़ा उपकार किया था। जिस किसी श्रद्धालु-भाविक को ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियों के स्वाध्याय, मनन, वांचन की भावना होती, उन्हें जैन जगत के विशाल सागर में गोता लगाकर एक-एक मोती को ढूँढ़ने हेतु मेहनत करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि पूज्य साध्वीश्रीजी ने ज्ञानविमलसूरिजी की कृतियाँ रूपी सभी मोतीयों को एक ही माला में गूंथकर सागर को गागर में समाहित कर दिया था। ___ मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य गगन में श्री ज्ञानविमलसूरिजी का नाम एक देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति आलोकित है। इनकी कृतियाँ कथात्मक, तत्त्वविचारात्मक, बोधात्मक, स्तुत्यात्मक आदि वैविध विषयों से परिपूर्ण है। संस्कृत एवं गुजराती
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