Book Title: Shrutsagar 2019 06 Volume 06 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
22
जून-२०१९
॥३९।। ते०...
॥४०॥ ते०...
॥४१॥ ते०...
॥४२॥ ते०...
॥४३॥ ते०...
श्रुतसागर धन्नउ कयवन्नऊ भलो अर्जुनमालागार। शालिभद्र थुलिभद्र मुनि पणमी जइ सुविचार सहस अढार सीलांगनां दश भेदइ यति धर्म । बालपणइ तरुणा पणइ जे मे कीधा कर्म सूधई मन आलोइसुं जेहनो छइ बहु पाप । सवि आरंभ निवारस्युं जेहथी थाइ संताप कचरो जिम परहो करी परिग्रह पापह मूल । पुण्य पंथ उडाइस्यइ जिन परि आकह तूल उपसम जलरस सीचसूक्रोध दावानल पूर जेहथी ततखिण परजलई तप जप धर्म अंकूर आठइ मद मरडी करी चित्त करुं सुकमाल। सरल पणइ माया हणी संतोषई लोभ जाल पररमणी रिध५ रूअडी पेखी कीधी राग। निंदउ गरहुं ते यदा चित्त करीअ निराग सामाइक विध वंदना पोसह नइ पछक्खांण६। जऊं काउसग्ग थिर करुं चउवीस छइ जांण वंदन तणी परी सियलु सायर जिम गंभीर । रवि जिम तेजइ दीपतो निजर निग्रह धीर सरणा च्यारे जद करुं अरिहंत सिध सुसाध । श्रीजिन धर्मह सिरि तिलऊ पूरब पुण्यह लाध आपण छइ परमादीया निसि दिन बहु आरंभ। धर्म मनोरथ मन धरई मूंकी दूरह दंभ तेहने सिवपद ढूकडो जांणी जइ सुभ भावइ। जिणवर गणहर इम कहइ भवियण सयल सहाव
॥४४।। ते०...
॥४५।। ते....
॥४६।। ते०...
॥४७॥ ते०...
॥४८॥ ते०...
॥४९॥ ते०...
॥५०॥ ते०...
४४. सीलना (क), ४५. रिद्धि (ख), ४६. पचखाण (ख), ४७. नियम (ख), ४८. अभिग्रह (ख),
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36