Book Title: Shrutsagar 2019 06 Volume 06 Issue 01
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 23 June-2019 जे पातिक कीधा घणां छांना प्रगट अनेक। ते गुरु मुख आलोईइ आणी विनय विवेक ॥५१॥ ते०... चरण मनोरथ मालिका श्रावक मुनि सुविचार । कंठिही राखइ आपणइ सदा ते पांमइ भवपार ॥५२।। ते०... निज मति भावइ भावना अवर करइ जि सार श्रीखेम कवि मुनीवर भणइ ते सुख लहइ अपार ॥५३॥ ते०... ___ ते दिन मुझ नई कदि हुस्यइं० इति श्री मनोरथमाला आत्महित कारक सज्झाय समाप्त । ४९. विवेके (क), ५०. सुविकार (क), ५१. कंठही थई राई (ख). ___*वचन महिमा टांक तराजू लायकै सव रस देखो तोल। जिह्वा सरखो रस नही जो मुख जाणे बोल॥ प्रत क्र. १२७२०० भावार्थ :- तराज लेकर सारे रसों का तोल कर लिया जाए, लेकिन यदि । मुख से जो शब्द बोलना जानता है, उसके जिह्वारस के समान कोई रस नहीं है। श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे. निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) For Private and Personal Use Only

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