Book Title: Shrutsagar 2019 03 Volume 05 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 SHRUTSAGAR March-2019 कर्ता परिचय आ कृतिना कर्ता तरीके खरतरगच्छीय उपाध्याय स्वरूपचंदजीनो उल्लेख प्राप्त थाय छ। स्व हस्ते लिखीत प्रतना लेखन वर्षना आधारे कर्तानो समय वि.सं. १९मी उत्तरार्ध थी वि.सं. २०मी पूर्वार्ध सुधीनो अनुमानित कही शकाय। आ विद्वान विषे विशेष कोई माहिती उपलब्ध थई शकी नथी। प्रत परिचय ____ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबा ना ज्ञानभंडारमा आ हस्तप्रत क्रमांक०१२२८५३ पर उपलब्ध छ । प्रतनुं लेखन वर्ष वि.सं. १९०७ छ । कर्ताना स्वहस्ते लखायेल आ एकमात्र आदर्श प्रतना आधारे संपादन करेल छे। तेमां कुल २ पत्रमा संपूर्ण कृति छ । प्रतनी लंबाई-पहोळाई २५४१० छ । प्रतना दरेक पत्रमा १५ पंक्तियो अने पर पंक्ति अक्षर ५०-५१ छे । अक्षरो सुवाच्य छ । प्रस्तुत प्रतिना अंते 'श्रीराणाजी नमो। एकलिंगजी नमो।' उल्लेख करेला वाक्योथी प्रत मेवाड क्षेत्रमा लखाइ होय ते, जणाय छे. आदिजिन स्तुतिलहरी श्रीमदर्ह जिनं नत्वा ध्यात्वा सद्गुरुपत्कजे। शत्रुजयगिरींद्रस्य लहरी वर्ण्यते मया त्वदीयं वंदेहं प्रथमजिनपादाब्जयुगलं स्वयं श्री सिद्धाद्रौ नवनवतिपूर्वागतमिदम् । वरे तुंगे शृंगे विमलगिरिराजस्य वितते त्रिलोके तीर्थानामधिपतितरस्याद्भुतनिधेः अहो नाभेः सूनो तव मुखकजाद्धर्ममशृणोत् स(श)ते पुत्रश्चक्री विमलगिरि यात्रां च कृतवान् । समाहूयादेशाद्भरतनृपतिस्संघ निकरान् चतुर्धा संम्मिल्य स्मित भुवि चरन् शैलमगमत् गिरेरासन्नेसौ मणिजलज पुंजान् विकिरयन् समारोहच्छ्राद्धैर्गणधरसुयोगैः परिवृतः। स्तुवन् नानासिद्धान् सुरगणवरान् सम्मतिकरान् यथाया॑न् संतुष्यन् कुसुमफलतोयैः स्थितवतः ॥१॥ ॥२॥ ||३|| ॥४॥ For Private and Personal Use Only

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