Book Title: Shrutsagar 2019 03 Volume 05 Issue 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RNI:GUJMUL/2014/66126 ISSN 2454-3705 श्रुतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) March-2019, Volume : 05, Issue : 10, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/ EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi BOOK-POST / PRINTED MATTER नकी च्यवन और जन नाय परमात्मा की नारी प्रतिष्ठा मह परम ब्रह्मचारी श्री श्रीशारापुरती आचार्य रजी नवार्यदेव श्री श्री प्रर दि गुरु आचार्यद महारा शौरीपुरतीर्थ में प्रतिष्ठा के प्रसंग पर कोबा ज्ञानमन्दिर में संगृहीत हस्तप्रतों की ग्रन्थसूची, भाग-२७ का विमोचन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर O For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शौरीपुरतीर्थ प्रतिष्ठा समारोह की झलकियाँ शौरीपुरतीर्थ में बिराजमान प्रभु श्री नेमिनाथ भगवान की प्राचीन प्रतिमा शौरीपुरतीर्थ में प्रतिष्ठित प्रभु श्री नेमिनाथ भगवान की नूतन प्रतिमा For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 SHRUTSAGAR RNI : GUJMUL/2014/66126 March-2019 ISSN 2454-3705 आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर મૃતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-५, अंक-१०, कुल अंक-५८, मार्च-२०१९ Year-5, Issue-10, Total Issue-58, March-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. 150/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. 15/- * Price per copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी एवं ज्ञानमंदिर परिवार 15 मार्च, 2019, वि. सं. 2075, फाल्गुन शुक्ल-९ आराधक तकेन्द्र. हावीर म श्री अमृतं तक विद्या ভূহ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१९ अनुक्रम रामप्रकाश झा ६ १. संपादकीय २. गुरुवाणी 3. Awakening ४. ऋषभजिन स्तुतिलहरी ५. हीरानंदसूरि यशवेलि ६. सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन ७. गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ ८. पुस्तक समीक्षा ९. समाचार आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Padmasagarsuri भरत टी. जोशी गणि सुयशचंद्रविजयजी राहुल आर. त्रिवेदी चुनीलाल वर्धमान शाह रामप्रकाश झा देव धर्म गुरु ग्रन्थमत, रतन जगत मै च्यार। साचे लीजै परख करी, खोटे दीजै डार ॥ हस्तप्रत ८४५३१ भावार्थ - देव, धर्म, गुरु और ग्रन्थों के सिद्धान्त । इस प्रकार इस संसार में चार प्रकार के रत्न हैं, इनकी परीक्षा करके जो सत्य हों, उनका स्वीकार - करना चाहिए और जो मिथ्या हों, उन्हें छोड़ देना चाहिए। * प्राप्तिस्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनीक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर का यह नवीनतम अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है। प्रस्तुत अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा लिखित समसामयिक लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि रजोगुण और तमोगुण से प्रेरित जीव सत्त्वगुण से प्रेरित जीव का दमन कर अन्त में स्वयं युद्धादि के द्वारा नष्ट हो जाते हैं और यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम ज्ञानमन्दिर के पंडित श्री भरत टी. जोषी के द्वारा सम्पादित कृति “ऋषभजिन स्तुतिलहरी” प्रकाशित की जा रही है। उपाध्याय श्री स्वरूपचन्दजी ने इस कृति में भरत चक्रवर्ती के द्वारा की गई यात्राओं का वर्णन तथा तीर्थों के उद्धार की चर्चा करते हुए स्तुतिलहरी की फलश्रुति तथा भक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित कृति “हीरानंदसूरि यशवेली" प्रकाशित की जा रही है। कवि शुभंकर ने इस कृति के माध्यम से श्री हीरानंदसूरि के साथ-साथ उनकी परम्परा में हुए यशोदेवसूरि, अभयदेवसूरि आदि अन्य आचार्य भगवन्तों का संक्षिप्त परिचय तथा अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाक्रम प्रस्तुत किया है। तृतीय कृति के रूप में पंडित श्री राहुल आर. त्रिवेदी के द्वारा सम्पादित कृति “सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन" प्रकाशित की जा रही है। उपाध्याय श्री मेघविजयजी ने कुल १४ गाथाओं की इस लघु कृति में सम्मेतशिखरतीर्थ में केवलज्ञान एवं निर्वाण को प्राप्त हुए तीर्थंकर भगवंतों की वंदना तथा तीर्थ का प्राकृतिक वर्णन किया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८१,अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां वित्त अने संवृत ए-ओ” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इस लेख में सत्रहवीं सदी तथा उसके पूर्व की गुजराती बोलियों में हए परिवर्तनों तथा प्राकृति-अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी तथा मारवाड़ी भाषाओं से साम्यता - वैषम्य आदि का वर्णन किया गया है। ___पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत डॉ. सीमा रोभिया के द्वारा रचित “कवि मोहनविजयजी लटकाला” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है, जिसमें कवि लटकाला के द्वारा रचित साहित्यों की विशिष्टता के ऊपर प्रकाश डाला गया है। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 6 गुरुवाणी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०१९ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी रजो अने तमोगुणी लोको अंते युद्धादि वडे स्वयमेव विनाश पामे छे सर्वत्र देशमां चारे प्रकारना गुण कर्मवाळा मनुष्योमां अध्यात्मज्ञान द्वारा आध्यात्मिक गुणो खीले छे अने तद्देशीय मनुष्यो सात्विक गुणोनी उन्नति प्राप्त करे छे. रजोगुण अने तमोगुणनी उन्नति सदा टकी शकती नथी. रजोगुणी अने तमोगुणीनी उन्नतिथी अभ्युदय पामेला मनुष्यो बाह्य व्यावहारिक स्थूल वस्तुओपर सत्ता भोगवी शके छे अने तेओ सत्व गुणनी दैविक गुणोनी शक्तियोने दबावी शके छे परन्तु अन्ते तो तेओ परस्पर क्लेश युद्धादिवडे यादवास्थळी रचीने स्वयमेव विनाश पामे छे. रजोगुण अने तमोगुणनी शक्तिने आसुरी शक्ति कथवामां आवे छे अने रजो गुण अने तमोगुणमांज राची माची रहेला मनुष्योने सत्वगुणनी अपेक्षाए असुरो-दैत्यो कथवामां आवे छे. सत्वगुणने सेवनाराओ दैवी शक्तिवाळाओ अवबोधवा. विश्वमां दैवी शक्तिवाळा अने आसुरी शक्तिवाळाओनुं पारस्परिक युद्ध सदा प्रवर्त्या करे छे. विश्वमां कोइ समये आसुरी शक्तिना उपासकोनुं प्राबल्य वधे छे तो कोइ समये दैवी शक्तिवाळानुं जोर वधे छे. दैवी शक्ति विश्वनुं संरक्षण करे छे अने आसुरी शक्ति खीलीने अन्ते विश्वना प्राणीओने संहारे छे. आवी बे प्रकारनी शक्तियोनुं पूर्ण रहस्य अवबोध्या विना विश्व मनुष्यो सत्य धर्म अने व्यवहारनुं संरक्षण करवा शक्तिमान् थता नथी. विश्वमां सर्वत्र सर्वथा सर्वदा सत्वगुणनी दैवी शक्तियोनुं साम्राज्य प्रवर्तशे एवं थवानुं नथी तेमज विश्वमां सर्वत्र सर्वथा आसुरी शक्तियोनुं सर्वदा साम्राज्य प्रवर्तशे अने सत्वगुणनी शक्तियोनो सर्वथा तिरोभाव थशे एम पण बनवानुं नथी. विश्वमां कोइ देशमां कोइ कालमां केचिद् जीव द्रव्योमां आसुरी भावनुं मुख्यपणे अने सत्वगुणनुं गौणपणे साम्राज्य प्रवर्त्यं, प्रवर्ते छे अने प्रवर्तशे. विश्वमां कोइ देशमां कोइ कालमां केचिद् आर्य जीवोमां सात्विकगुण शक्तियोनुं मुख्यपणे अने रजोगुण तमोगुणनी आसुरी शक्तियोनुं गौणभावे साम्राज्य प्रवर्त्यं, प्रवर्ते छे अने प्रवर्तशे. For Private and Personal Use Only आत्मज्ञानी महात्माओनुं मुख्य साध्य लक्ष ए होय छे के विश्ववर्त्ति सर्व जीवोने आत्मानुं ज्ञान अर्पने रजोगुण अने तमोगुणथी पराङ्गख करी सत्वगुणाभिमुख करीने तेओने परमात्मपद भोक्ता करवा परन्तु आ तेओनी नेम सर्वथा सर्वदा जीवोने Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2019 उपयोगी थइ शकती नथी, एy कारण ए छे के सर्व जीवोने भिन्न भिन्न कर्म लागेलां होवाथी तेओनी एक सरखी विचार श्रेणि अने मोक्ष मार्ग प्रवृत्ति पण एक सरखी होती नथी. आवी स्थिति खरेखर विश्वनी छतां गृहस्थ चातुर्वर्णिक धर्म कर्मनी विचाराचाराव्यवस्थानुं बंधारण करी तेओ सर्व जीवोने सत्वगुणी बनाववा प्रयत्न करे छे अने आत्मानी परमात्मता प्रकट कराववा सर्वोपायोने दर्शावे छे. सत्वगुणी मनुष्यो दैवी संपत्तिवाळा छे अने तेओनुं मुख्यताए आर्य क्षेत्रना भूतोना उपग्रहे अवतरवु थाय छे. अन्य देशोमां सात्विकगुणी मनुष्यो गौणताए उपजे छे एम छतां आर्यक्षेत्रना आर्य मनुष्योनी सात्विकता तो जुदा प्रकारनी होय छे. अनन्त साधुओए अने तीर्थंकरोए आर्यक्षेत्रनी मृत्तिकामांथी पोताना देहने पोष्यो छे अने तेओए अनन्त देहोने आर्यक्षेत्रनी मृत्तिकामांथी विलयभूत कर्या छे. तेओना शरीरना पंचभूतना भाग पंचभूतमां आर्यक्षेत्रमा उपजे छे. तेओ सर्व सामग्रीद्वारा द्रव्य-क्षेत्रकाल-भावयोगे परमात्मपद प्राप्त करवा अधिकारी बने छे. आर्यक्षेत्रमा उत्पन्न थएल मनुष्योने आर्य गुणोनी संप्राप्ति खरेखर अनार्य क्षेत्रो करतां वहेली थाय ए सर्वथा सर्वदा सर्व रीते संभाव्यमान छे. (धार्मिक गद्य संग्रह भाग-१ पत्र नं.१४६) क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं ? आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में आगम, प्रकीर्णक, औपदेशिक, आध्यात्मिक, प्रवचन, कथा, स्तवन-स्तुति संग्रह आदि विविध प्रकार के साहित्य प्राकृत, संस्कृत, मारुगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी, पुरानी हिन्दी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं में लिखित विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित अतिविशाल बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह है, जो हमें किसी भी ज्ञानभंडार को भेंट में देना है. यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं तो यथाशीघ्र संपर्क करें. पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी. For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१९ Awakening (from past issue...) Acharya Padmasagarsuri There is a difference between the nature of the soul and the nature of the senses. Human life is caught between these two. The senses are attracted by worldly pleasures and sensual delights. Their way is inferior and harmful. Children are attracted by biscuits, toffees, chocolates and ice-creams. But their mother knows that these things affect their health. Hence she tries to save the children from the harmful effects of these things. Like mother, Gurudev (the preceptor) tries to draw people away from sensual pleasures and guides them on the way to spiritual prosperity. From this, they get not transitory but everlasting bliss. People should love themselves; not their bodies only. Those who love themselves (their souls) can love others also. He who loves his soul becomes a Samyami (A saintlyman who has self-restraint). Those who come in contact with him also acquire his qualities of nobility and self-restraint, just as, one lamp is lighted by another. Love is the basis for unity among human beings. Hatred causes divisions and dissensions. The place of love in human life is supreme because it unites separated hearts and brings them felicity. Someone asked a tailor, “Why is it that you keep such a small thing as your needle pinned on your turban and why is it that you keep such a large thing as your scissors at your feet?”. The tailor replied, “Brother, the tailor does not do so after his desire. Those articles occupy a high ora low position according to their own quality. The needle is certainly small but it does the work of uniting pieces of cloth, that is why it is placed on the turban. On the contrary the scissors are used to cut the cloth into pieces and to separate them. Hence, it is kept at the feet.” Love brings unity and unity brings strength. Ashoka could achieve victory over the Kalingas with great difficulty. Amazed For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2019 by the strength of the Kalinga army, he asked the king of Kalinga for the reason for such strength among his soldiers. He replied, “Oh king, I love every soldier heartily. They also love one another; so we are united. This unity is the cause for our strength.” While paying tributes to Mahatma Gandhi, a poet has sung: तुमने अपना प्राण दिया और मौत की शान बढाई। तुमने अपना खून दिया और प्रेम की ज्योति जलाई॥ Thumne apna pran diya aur maut ki shan badhayi! Thumne apna khoon diya our premki jyoti jalayi!! (You gave your life and increased the greatness of death. You gave your blood and made the light of love burn). We cannot wash a mark of blood with blood. To wash it we require the water of love. The love of a certain sage transformed the dacoit, Ratnakar into a sage. Mercy is a form of love. It has such tenderness that under its effect even the hardest heart becomes tender. If from the mountain of the human heart always pity, love, affection and kindness flow down as cataracts, sorrows can never exist. The Lord said, FATIT À Holha ati Huşi a dus ll” Mitti me savvabhuyesu veram majjham na kenayi (I have amity for all creatures and I do not hate any creature). The earth produces food for all; water satisfies thirst; air keeps all beings alive; the sun gives light to all; the tree gives fruits and cool shadow to all; the flower gives fragrance to all; when that is so, why should man be selfish and self-centered? Why is it that like nature man cannot be generous, selfless, broadminded and beneficent? To make out lives flower forth and develop we should discard vices and cultivate virtues. The flower gives out fragrance not a foul smell. Is not life also like a flower? (Continue...) For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर मार्च-२०१९ उपाध्याय स्वरूपचंदकृत ऋषभजिन स्तुतिलहरी भरत टी. जोशी प्रस्तावना मोक्षप्राप्तिना विविध मार्गोमां भक्तिमार्ग सरळ अने सर्वोपयोगी छे। भक्तिने मुक्तिनी दूती कहेली छे । प्रभुभक्ति प्रगट करवामां प्राचीन तीर्थो सबल आलंबनरूप छे। तेमा पण शत्रुजयतीर्थ सर्वतीर्थोमां शिरोमणि अने शाश्वत छ। तेमा बिराजमान आ अवसर्पिणी काळना शिल्प, कला अने संस्कृतिना आद्य स्थापक, प्रथम राजा, प्रथम तीर्थंकर श्रीआदिनाथ भगवान बिराजमान छ । जेमनी भक्ति युगोथी, असंख्य वर्षोथी थती आवी छ। फागण सुद तेरस, कार्तिक पूर्णिमा जेवा दिवसोए विशेष भक्तोनी ज्यां भीड रहेती होय छे। तेवा आदिनाथ दादानी भक्ति प्रस्तुत कृतिमां कर्ताए करी छे । मात्र भक्ति ज नहीं पण रीतसर तेनी लहेर चलावी छ । कृतिना शब्दो, वाक्यो, रचना अने रचनागत विषय वाचकने तेनी लहेरमां ताण्या विना नथी रहेता. आम आ कृतिना नाममा रहेल लहरी' शब्द सार्थक सिद्ध थाय छे । काव्य प्रकारोमां 'लहरी' प्रकारबद्ध मळी आवती कृतिओमां देशी करतां संस्कृतभाषाबद्ध अने तेमां पण पद्यमय अने शिखरिणी जेवा छंदोमां वधु जोवा मळे छ । एवी ज एक कृति ‘आदिजिन स्तुतिलहरी' प्रस्तुत करवामां आवी रही छे । कृति परिचय ____ श्री शत्रुजयतीर्थनुं माहात्म्य दर्शावती श्रीऋषभदेव भगवाननी आ पद्यमय स्तुति छ । आ रचना संस्कृत भाषामां ४४ श्लोकोमां अनुष्टुप अने शिखरिणी जेवा छंदोथी सुशोभित छ । प्रारंभमां कर्ताए श्रीअरिहंत, सद्गुरु तथा शलुंजयाधिपति श्रीआदिनाथ भगवाननु स्मरण करेल छे. तत्पश्चात् भरतचक्री द्वारा करेल यात्रादिनुं वर्णन, तीर्थना १७ उद्धारोनी वात अने अंते आ स्तुतिलहरीनी फलश्रुति तथा भक्तिनो महिमा वर्णवेल छ । फलश्रुतिमां कर्ता कहे छे के आ स्तुतिलहरीनो जे कोई सवारमां नित्य पाठ करशे तेने भवे-भवे ज्ञान-लक्ष्मी अने मंगलनी प्राप्ती थशे । भक्ति माटे जणाव्यु के भक्ति ज्ञानप्रदा, मोक्षनी दाता अने सर्वसिद्धिकरि छ । आवी भक्ति मंगलने करनारी थाओ। प्रस्तुत कृतिनुं लेखन वि.सं. १९०७ मां कर्ताए स्वयं पोताना हाथे कर्यानो उल्लेख मळतो होवाथी तेनी रचना पण ते समये थई होय तेम कही शकाय। For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 SHRUTSAGAR March-2019 कर्ता परिचय आ कृतिना कर्ता तरीके खरतरगच्छीय उपाध्याय स्वरूपचंदजीनो उल्लेख प्राप्त थाय छ। स्व हस्ते लिखीत प्रतना लेखन वर्षना आधारे कर्तानो समय वि.सं. १९मी उत्तरार्ध थी वि.सं. २०मी पूर्वार्ध सुधीनो अनुमानित कही शकाय। आ विद्वान विषे विशेष कोई माहिती उपलब्ध थई शकी नथी। प्रत परिचय ____ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबा ना ज्ञानभंडारमा आ हस्तप्रत क्रमांक०१२२८५३ पर उपलब्ध छ । प्रतनुं लेखन वर्ष वि.सं. १९०७ छ । कर्ताना स्वहस्ते लखायेल आ एकमात्र आदर्श प्रतना आधारे संपादन करेल छे। तेमां कुल २ पत्रमा संपूर्ण कृति छ । प्रतनी लंबाई-पहोळाई २५४१० छ । प्रतना दरेक पत्रमा १५ पंक्तियो अने पर पंक्ति अक्षर ५०-५१ छे । अक्षरो सुवाच्य छ । प्रस्तुत प्रतिना अंते 'श्रीराणाजी नमो। एकलिंगजी नमो।' उल्लेख करेला वाक्योथी प्रत मेवाड क्षेत्रमा लखाइ होय ते, जणाय छे. आदिजिन स्तुतिलहरी श्रीमदर्ह जिनं नत्वा ध्यात्वा सद्गुरुपत्कजे। शत्रुजयगिरींद्रस्य लहरी वर्ण्यते मया त्वदीयं वंदेहं प्रथमजिनपादाब्जयुगलं स्वयं श्री सिद्धाद्रौ नवनवतिपूर्वागतमिदम् । वरे तुंगे शृंगे विमलगिरिराजस्य वितते त्रिलोके तीर्थानामधिपतितरस्याद्भुतनिधेः अहो नाभेः सूनो तव मुखकजाद्धर्ममशृणोत् स(श)ते पुत्रश्चक्री विमलगिरि यात्रां च कृतवान् । समाहूयादेशाद्भरतनृपतिस्संघ निकरान् चतुर्धा संम्मिल्य स्मित भुवि चरन् शैलमगमत् गिरेरासन्नेसौ मणिजलज पुंजान् विकिरयन् समारोहच्छ्राद्धैर्गणधरसुयोगैः परिवृतः। स्तुवन् नानासिद्धान् सुरगणवरान् सम्मतिकरान् यथाया॑न् संतुष्यन् कुसुमफलतोयैः स्थितवतः ॥१॥ ॥२॥ ||३|| ॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 12 मार्च-२०१९ ॥६॥ ॥७॥ श्रुतसागर तथा स्थाने स्थाने जल भृतवतः कुंड निवहान् तरुन् शाखावृंदान् वरनवगृहाण्यध्वनिरचन् । महातीर्थे स्वामिन् तव चरण चित्तस्सुमतिमान् सुमार्गान् सिद्धाद्रौ द्रवणनिकरैः सो हि कृतवान् सुपर्वादें(?) शृंगे गत जिनवरांद्र्यब्जयुगलं प्रणम्यार्थी भक्तेर्नतविबुध क्षीरण्यधितले । सुगंधैः स्वर्णाब्जैः कुसुमफलदीपादि विधिभिः समयॊचे स्नात्रं सकल भवभाजां हितकरम् तदा श्रीसिद्धाद्रौ जिनभुवनमप्यस्ति न वरं विगम्य स्वामिन् हे भरतनृपतिश्चैत्यमतनोत् । महादीर्घ स्थंभं मणिखचितमष्टापदभवं त्वदीयाऽस्मिन् मूर्तिर्वरमणि भृ(कृ)ता तेन निदधे सुरत्नैः प्राकाम्यौ भुवनखिखरे दंडकलशौ यथा योग्ये स्थाने त्रिदशनिचया नाटकधरा। सुघोषाघंटास्मिन् रविशशिरुचो रत्नकलशाः सुदीप्ताः शोभंते वरमणि भवास्तोरणगणाः दिशासु व्याप्ताभं परिमलगुणाप्तालिनिवहै: सशब्दं वादितैर्जिनगुणयुतालापविहितैः अपूर्वं तं दृष्ट्वा विपुलमतयः संदिदिहिरे घने विद्युत्तुल्यं रुचिररुचि पुंजोऽथ किमयम् विधूम्राग्निः किं वा त्रिदशभुवनं किं रविरयं सुधीलोकाः शंकाकुलमनस आदीश्वरज(जि)न । न चाग्निः शीतत्वान्ननरविहितान्निर्जरगृहं न भानुभूमिस्थादृषभजिनचैत्यं स्म विविदुः अहो श्रीनाभेय प्रथम इह चक्री तव सुतः स धन्योऽस्मिल्लोके भवि शरण शजय गिरौ । ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ १. राजादनतरौ (प्रतदर्शित पाठांतर) For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2019 ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ SHRUTSAGAR 13 नवीनोद्वा(द्धा)रं यं सफलमिह नृत्वं च कृतवान् स संघेशः ख्यातः प्रणमतिजिनोऽयं सुकृतिनम् इमं धन्या रम्या भरतनृपतिं वीक्ष्यभविकाः तथा कर्तुं तैस्तैर्मनसि विहितेच्छा बहुतरा। यथा शक्त्याप्येके गिरि शिरसि चैत्यानि निकटे विरेचुः शृंगेषु प्रमुदितहृदस्त्यक्तविषयाः जिनांद्र्यप्येकेद्रौ वरजिनपमूर्तिं निदिधिरे वरां भक्तिं चक्रुः कलुषदलिनी केऽपि सुतराम्। तथाप्येकेभेजुः परमपदमालामणिभवां जगुर्गानं केचिज्जिनगुणयुतं रागरमणम् वितेरुः पात्रेभ्यो द्रवणनिकर केऽपि मनुजाः ददुः केचिद्दक्षाउचितमनसा वस्त्रनिचयान् । मनोज्ञैर्मिष्टान्नैः प्रवरभविकान् केऽपि पुपुषुः सधर्मिभ्यो नृभ्यः प्रगुणरचितं भोजनमदुः शुभैर्द्रव्यैः केऽर्चामहनि विदधुः सप्तदशधा प्रभोर्मूर्त्यग्रेन्ये बभणुरनिशं स्तोत्रमनघं । सघोषैवादित्रैः नृनृतुरनघाः केऽपि मनुजा स्तथान्ये मत्तुल्यां जय जय इति प्रोचुरधियः विमुच्य क्रोधादीन् सरलहृदयास्तस्थुर्ऋषयो महारागद्वेषान् मुमुचुरपवर्गाय कृतिनः। पदैः श्लाघ्यैर्काव्यैर्ग्रथितगुणवृंदैश्च नुनुचुः स्थिरस्वांतादधुर्हदिजिनवराकारमखिलम् भवोद्विग्नामा अनशनमिदं केऽपि विदधु विगम्योत्कृष्टोव्वीं(?)दृषदि निजगाचा(?)णिविजहुः । अनंतं ज्ञानार्थं भवजलधिपाराय यतयो मतिं स्वस्थां कृत्वा विजितकरणाध्यानमलगन् अनंताः सिद्धिं वै दृषदि दृषदितामुनिवराः अतः सिद्धक्षेत्रोऽयमिह कथितोऽर्हद्भिरवनौ। ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०१९ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ श्रुतसागर विदेहादि क्षेत्रे विमलगिरि माहात्म्यमतुलं निजानंदैराप्तै विजनसभायां प्र बभणे सुमेरुं जेतायं विमलशिखरीतीर्थतिलको महातुंगैः शृंगैर्नभसि मिलितो घोज्झितकरः। विजेतुं न प्रौढाः विमलगिरिमन्ये हि गिरयः किमेते भूभारा विततपतिस्तीर्थ विरहाः अहोऽन्ये किं तीर्था विमलगिरिराजे सति तथा वरै रुच्यै शृंगैर्लसतिगिरिरष्टोत्तरशतै। विमुच्यैनं तीर्थं भ्रमति वसुधायामधिषणः सवाच्यः शास्त्रज्ञैः प्रहतकलुषः शाश्वतगिरिः वरालक्षाझारी' सुरनरगणैरीडितवती गिरावंभः पूर्णाचलनतटिका सिद्धशिलका। कदंबाख्यो हस्ताभिध इति गिरि डवगिरि गुहागुप्तद्वारामणिगणभृता पश्चिमदिशि वरापूर्णो तोयैर्भविजनगणान् पावनकरी गिरे रासन्नासौ विमलगिरिनद्युल्लसितिका। हिमाद्रेः सामीप्यात्रिदशवहनीवांबुनिचया समा शोभंते सा जिनचरणसेवार्थमनिशम् रसानां कूप्योऽस्मिन् वरनवरसाहेमकृतयो महौ बध्यो मूल्यो विविध विष हंत्र्योगदहराः। किमेतस्योग्रत्वं प्रबलमतयो वक्तुमलसा बभूवुः प्राचुर्यात्रिजगतिसमोप्यस्य न हि कः सुधूपैयूंनाभः सितपटबकाल्याछविकरः तडिद्रत्नैर्कोतिर्भूतकलशधारो दिशि दिशि । सुघोषो गर्जोस्मिन् सुरनरकृतैढुंदुभिरवैरसौ किं सिद्धाद्रिः किमुत जलदोशं भुवि दिशः १. च (प्रतदर्शित पाठांतर) २. वरो भूषाझोल्यस्मिन् (प्रतदर्शित पाठांतर) ॥२१॥ ॥२२॥ ॥२३॥ ॥२४॥ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 March-2019 ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२७॥ SHRUTSAGAR अयं धन्यो रम्यो गिरिरवति पापाद्भविजनानिमं दृष्टारस्ते दलितकलुषा मोदनिवहाः। न सो दृष्टो यैस्ते जिनपमनुजामातुरुदरे लुठंत्यद्याप्येते ह्यघतररसायां खरसमाः अहो श्री आदीश स्वगृहनिवसंतोऽपि भविकाः नभिं ये कुर्वंति सुरगिरि दिशां वीक्ष्य शिरसा। नरेन्द्रर्नागेन्द्रैस्त्रिदशपतिभिर्वंदितुमलं सदास्तेि संतः सदसि रमणा बुद्धिनिधयः गिराचारोहेच्छां भवजलधिभाजां समुदितां कषायैर्भक्तुं यामभिलिखति चालस्यमतुलं । तदालस्यं त्यक्त्वा विहरति गिरिं दृष्टुममलं नरः प्राप्नोत्येतां विषयदलिनीं श्रीप्रभुकृपां फलानंत्यंभक्तेर्विमलगिरियात्रां विहितवान् नरः को विस्मृत्याभिलखति सुरेन्द्रादि पदवीं। सुलभ्यास्याद्या सा विशरणतयात्यंतविकला सुखानां सप्तत्वं तदपि हि भवेत्कात्र गणना यथारीत्योद्धारान् भविजन कृतानाहुरनया बहून् ज्ञातारो वै प्रथमजिन हे षोडशवराः । इमांस्तान् वक्ष्येऽहं वरसुरगिराशुद्धकलया प्रसिद्धैभव्यैस्तैस्सुजननतरैर्वा कृतवतः अथोद्धारान् प्रवक्षामि पुंडरीकाभिधे गिरौ। द्विषट् परिषत् संयुक्तं संघसम्मील्यचाद्भुतम् कृतश्चाडंबरेमाद्यं उद्वार आदि चक्रिणा दंडवीर्य कृतोद्धारो द्वितीयस्संप्रकीर्तितः भुवनानां यतीन्द्रेण उद्धारः षष्ठ एव च सप्तम श्रीसिद्धाद्रौ कृतः सगरचक्रिणा। अभिनंदनोपदेशाद् व्यंतरेणेद्रेणचाष्टमः ॥२८॥ ॥२९॥ ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०१९ ॥३३॥ ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ श्रुतसागर ___16 श्रीचंद्रप्रभपौत्रश्च चंद्रशेखरनंदनः। श्रीचंद्रजसराजासौ नवमं कृतवान् गुणी दशमं शांतिनाथस्या देशाच्चक्रधरोव्यधात् । एकादशं वरोद्धारं मुनिसुव्रतशासने रामचंद्रोजगत्ख्यातोऽकरोत् दशरथात्मजः । चतुर्धा संघमाकर्ण्य यात्रां कृत्वा च पांडवाः उद्धारं द्वादशं चैत्यबिंबानामकरोद्गिरौ । प्राग्वाटो जावडाख्यश्च सिद्धशैले त्रयोदशम् कुमारपालसचिवः श्रीमालीवाग्भटो महान् । जैनी श्रीगुरुभक्तश्चाऽकरोद्विद्वान् चतुर्दशम् पंचदशं तु श्राद्वोसावकरोत्समराभिधः। कर्माभिधकृतोद्धारः सम्मतः सर्वसूरिभिः षोडशो वर्तते काले संप्रति पंचमारके। शत्रुजय गिरींद्रस्य महात्म्ये गणना कृता महांतः षोडशख्याताः क्षद्रोद्धारा अनेकशः। सप्तदशो महोद्धारो भविष्यति पुनर्गिरौ प्रातरुत्थाय येनेयं पठ्यते लहरी मुदा । भवे भवे भवे तेषां ज्ञानलक्ष्मीश्च मंगलम् इयं रम्या लोके विमलगिरितीर्थस्य लहरी वरा भक्त्युल्लासात् भव भयहरी पापदलिनी। महोपाध्यायश्री वरहितमुदामंहिरसकः सरूपेंदंर्विद्वान खरतरगणे तेन विहिता भक्तिर्ज्ञानप्रदा नित्यं भक्तिर्मोक्षं प्रयच्छति। सर्वसिद्धिकरि भक्तिः कुर्यात् भक्तिः सुमंलम् प्रीतोस्तु श्रीपरमात्मा आदीशः प्रणवान्वितः । मायावाक्कामराजाढ्यो नमस्ते सर्वसिद्धये ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ ॥४४॥ इति श्री परमपद प्राप्त श्रीऋषभजिन स्तुतिलहरि संपूर्ण सं. १९०७ लि: सरूपचंद स्वहस्ते. श्रीपार्श्वपरमातमने नमो । श्रीराणाजी नमो । एकलिंगजी नमो ।। For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR March-2019 हीरानंदसूरियशवेलि गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रभु वीरनी निग्रंथ परंपरामां श्वेतांबर संप्रदायना चंद्रकुळमां समयांतरे अनेक गच्छो अस्तित्वमां आव्या । तेमांनो एक गच्छ एटले पल्लीवाल गच्छ मूळे पाली नामना गामथी ते गच्छनी शरूआत थई होई ते पल्लीवाल गच्छ कहेवायो। पालीवाल गच्छ, पल्लकीय गच्छ, पाडिवाल गच्छ विगेरे नामो पण आ ज गच्छना अन्य प्रचलित नामो छे। आ गच्छनी भिन्न भिन्न २-३ पट्टावलीओ जैन परंपराना इतिहास, 'जैन श्वेतांबर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास' विगेरे ग्रंथोमां जोवा मळे छे। जो के हजु पण तेना संबंधमां विशेष संशोधननी जरूर छ। कृति परचिय___प्रस्तुत कृति मुख्यत्वे उपरोक्त पल्लीवाल गच्छनी परंपरामां थयेल हीराणंदसूरिजीना चरित्र पर प्रकाश पाडती रचना छ। अहीं काव्यमां कवि शुभंकरे हीरानंदसूरिजीनी यशवेलिने वर्णन करवानी साथे साथे ते ज परंपरामां पूर्वे थई चूकेला आ. यशोदेवसूरिजी, नन्नसूरिजी, अभयदेवसूरिजी, अजितदेवसूरिजी, शांतिसूरिजी, उद्योतनसूरिजी, महेश्वरसूरिजी, अजितदेवसूरिजी (बीजा) विगेरेनो नामोल्लेखपूर्वक आंशिक परिचय पण टांक्यो छे। कृति महत्तम अंशे दस्तावेजी होई काव्यत्त्व करता नामादि ऐतिहासिक सामग्रीने सारूं एवं महत्त्व अपायेलुं अहीं जोई शकाय छे। काव्यमां हीराणंदसूरिजीना पदप्रदान प्रसंगना पद्यो उपरोक्त कथननो पूरावो ज जोई लो। आ सिवाय काव्यमां बीजी पण केटलीक महत्वपूर्ण नोंधो छे, जे आपणे क्रमबंध जोईशुं(१) राठोडवंशना राजवी नयणसेन कुमार द्वारा थयेल सगर्भा मृगलीना घातना अवसरे प्रायश्चित रूपे अन्य दर्शनीओ द्वारा ज्यारे पुरश्चरणादि विधान करवानु थाय छे, त्यारे यशोदेवसूरिजी द्वारा ते अंगे संयम ग्रहण करवानी प्रेरणा करायेली जोवा मळे छ। For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 18 (२) नयणसेन कुमार द्वारा प्रायश्चित रूपे संयम ग्रहण कराये छते वर्षो बाद गुरू भगवंतनो काळधर्म थता तेमना पाट पर नन्नसेनसूरिजी स्थपायानी नोंध महत्त्वपूर्ण छे । मार्च-२ - २०१९ (३) राजादिकने प्रतिबोधित करी पल्लीवाल स्वरूपे गच्छनी प्रसिद्धि थयानी विगत विचारणीय छे । (४) अभयदेवसूरि द्वारा सूर्योदय सुधी काउसग्ग करवानो अभिग्रह कराता तेमना नियमनी परिक्षार्थे त्रण दिवस सूर्यदेवनुं प्रगट न थवुं, अंते सूरिजीना सत्वथी प्रभावित थई दर्शन आपी चिंतामणि रत्ननुं प्रदान करवुं । आ घटना सूरिजीना जीवननी विशेष ध्यानार्ह घटना छे । (५) सं १६०८ मां मुनि हीरानंदविजयजीनो पालीमां पदस्थापना महोत्सव संघनायक नगराज सीमाउत वडे करायानी नोंध संघ नायकनी समर्पण भावनानुं उदाहरण छे। (६) हीरानंदसुरिजीना पदमहोत्सव प्रसंगे अन्य श्रावको द्वारा मोहत्सवमां भाग लेवायानी नोंध, श्रावकोनो गुरु पदस्थापनो आनंद जणावे छे। (७) हीरानंदसूरिजीना मेवाड, मेडतादि क्षेत्रोमा विहारनी नोंध विचरण तेमनी विशाळता जणावे छे। (८) आ सिवाय कृतिनी घणी खरी विगतो अन्य संदर्भोना शब्दो समजी शकाती नथी । कृतिकार परिचय For Private and Personal Use Only प्रस्तुत कृतिकार कवि शुभंकर गृहस्थ छे के साधु छे तेनो काव्यमां कशो उल्लेख मळतो नथी, वळी अन्य पण कोई जग्याए कवि संदर्भे नोंध मळती नथी तेथी कविनो सत्ता समय विगेरे जाणी शकातो नथी परंतु प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत लेखनना मंगलाचरणमां लखायेल ‘हीरानंद सूतो यश भो. (?) शुभंकर' आटला शब्दथी कर्ताने हीरानंदसूरिजीना शिष्य गणीए तो कर्तानो समय १७मी सदीना पूर्वार्धनो कही शकाय । (अहीं यशभो० पद कर्ताना विशेषण वाचक लागे छे (?) जो के हजु ते अंगे विशेष तपास करवी घटे।) प्रान्ते संपादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत नकल आपवा बदल आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर ट्रस्टना व्यवस्थापक श्रीनो खूब खूब आभार । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 19 March-2019 ॥१ ॥ ॥२॥ ॥ ४ ॥ श्रीहीराणंदसूरि यशवेलि अहँ नमः । ऐं नमः॥ GO॥ राग-आसाऊरी ॥ जत्ति ताल ॥ भट्टारक श्री १०८ हीराणंद सूतो यशभो. सुभंकर कृत वेलि लिक्षते ॥ ब्रह्माणी वरदाइनी, परम मनोरथ पूरि। वेल सुजस करि वर्णवां, श्रीहीराणंदसूरि उमयां तन' सांनिधि अधिक, जपि चोवीस जिणंद। गोतम सह गणधर सुगुरु, सुर वै नमै सुरिंद तुम्ह पसायै मूझ मति, सुललित वाणी सार । गुरु गिरूआ गुण गाईयै, चंद्रगछि सुविचार ॥३॥ यसोदेवसूरि जोवतां, जपि तपि वडा जतीस। जस ज्यैरो' जंपे जगत्र, वसुधा विसवावीस नयणसेण कुंअर नरिंद, वंस राठोड विख्यात । मृगी एक आखेट मधि, थाये गरभवति घात दोष तिकइं हुं करि दया, मनि आंणी महिरांण। कोई पंडित जोसी पूछीया, पुहचरण-परियांण ॥६॥ महि जोगी कोई ब्राह्मण, पभणै आल पंपाल। नयणसेन मांने नही, वचन तिके विरसाल पूंनाकर काउसगि प्रगट, सगुरु यसोदेवसूरि । नयणसेन आयो निरखि, पुण तप तणे पडूरि त्रिण प्रदक्षण आपि तिणि, परिसूं कीयो प्रमाण। मृगीदोष लागो मुनै, स(मु?)झि उतारो सांमि ॥९॥ यशोदेवसूरिंद जपि, पुनःचरण ए पोष। अधिपति कुंअर उतरे, दीख्या लीयै (अ?)दोष ॥१०॥ १. गणेश २. जेमनो ३. शिकार ४. पुरश्वचरण (वैदिक विधान) ५. निरस ६. प्रचूरताथी ७. विधि पूर्वक ८. स्वीकार ९.? ॥५॥ ॥ ७ ॥ ॥८॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१९ ॥चालि-जत्ति ताल॥ दृढ हूओ तिवारे लेवा दिख्या, मात-पिता दिसि मन्न। आयो घरि मांगै एम अनुमति, वाणि विनय सुवचन्न ॥११॥ ताइ माता तात विचारि दिख्या, तत दुहुँ अनुमति दीध । सोनईया कोई विलस्सि२ सुखेत्रै, कृत्य-महोछव कीध ॥१२॥ राजा प्रहलाद समो भ्रम्ह ३ राजै, कहां नयणसेणकुमार। पुन-जोगि जसोदेवसूरि पशायै, संयम लीधो सार ॥१३॥ वोलांता दीह अनेक वरस्से, सूरि जसोदेव श्र(स)ग्गि। भणि पाटि कहां नन्हसूरि भट्टारिक, जय जिणसासण जग्गि१६ ॥१४॥ राजांन प्रबोध कीयो जिणि रेणा, श्रावक लोक समृद्धि। गच्छ ब(?)ह्मण हूंता दह दिसि गिणिजै, पल्लीवाल प्रसिद्धि ॥१५॥ काउसग्ग अभयदेवसूरि कीयो कृत, पूरित संध्या-पात । नयणे ती सूर निरख्यसि निम्मल, पारिसि हूं परभात ॥१६॥ निय जांणि इसो मनि सूर न दीन्हो, द्रेठालो त्रिणि दीह। अणडोल अभयदेवसूरि रह्यो इम, सीह तणी परि सीह ॥१७॥ सुप्रसन्न प्रतख्य हूओ ए सूरिज, पाइ करे सुप्रणाम । दिव्य आणि रतन्न चिंतामणि दीन्हो, कीजै ए कुण काम दूहा कांमि किसै सहगुरु कहै, रतनचिंतामणिरूप। श्रीअजितदेवसूरि आखीयो, एहवो नाम अनूप ॥१९॥ चालि सजि ताम प्रसिद्ध दीयो ए, सूरिज साराहइं२२ संसार। सावन्न अजितदेवसूरि सहगुरु, ओपम ए अधिकार ॥२०॥ सुणि शांतिसूरि वडा सिद्धसाक, ध्यान धुरा ध्रमधार५ । श्रीउजोयणसरि सरिंदसरीसर, ग्यांनगणे गणधार ॥ २१॥ १०.? ११. बन्ने १२. वापरी १३. ब्राह्मण १४. कृपाथी १५. पसार थता १६. जगमां १७. ? १८. सूर्यास्त (?) १९. ते २०. जोयो २१. प्रत्यक्ष २२. वखाणे २३. ? २४. सिद्धोमां प्रभावशाळी २५. धर्मने धरनार ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 21 महंत महेसरसूरि मुणंतां, रूपक२६ तो रिषराव" । सोभाग घणो श्री अजितदेवसूरि, पाटि प्रतप्यई प्रभाव संवत्त पनर त्रेयाणूं(१५९३) वरसै, क्रिया-उद्धारह कीध । लाख लोक वडा जिणि पाइ लिगाडी, लाभ घणो जिणि लीध आराधि जिण ध्रम कीध अणसण, एकण चित्त ओदार । पूगै क्रम दीह संजोगसु पाम्यो, इंद्रपुरी अवतार जिणि पाटि विगत्ति जुगत्तिसुं जोता, हीर अमोलक हीर । अचरिज्ज किसो इणि गछि आखां (खं) ता", वीरह रे हुअ वीर संवत सोल अने अडलै (१६०८), तेण संवच्छर तांम । सुदि चैत्रसु पांचमि दीह पवित्तसु, कीध महोत्सव कांम संघनायक श्रीनगराजसी माउत, पद-ठवणा प्रारंभ । निज पाली नयर गरत्थ” निहस्से, ओप्पम" कीध असंभ३२ दूहा .३३ ओपम इणि विधि आणीयै, मालवी ए मुहवन्न । हैं सलमल लीलाहरो, जंपै याचिक जन्न चालि जंपै याचिग घणो जस जांणै, आंगै बिरुद अनंत । हीरानंदसूरिस कहां संघनायक, कीध उदैपुण कम्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1* For Private and Personal Use Only March-2019 ॥२२॥ ॥२३॥ 1128 11 ।। २५ ।। ॥२६॥ ॥। २७ ॥ 11 22 11 ॥२९॥ वछराज सूजावत्त दांन विसेषै न्याइ नवै खंड नाम महिको मणिमत्थ(च्छ?) कहंतां मोटिम, पाटोधर जै पुत्र, लखणे लावण्ण अखूट लिखम्मी, सांमि धरम्म ससूत्र भाई राईसिंघ जियैरै३४ भालिम्म, जांणीजै वलि जैत, खिति खेतलसीह घणो जस खाटे, वहै सुबोल वहैंत नगराज सुतन कृसन्न कहां निज, पाटि औद्धो (द्धा) र प्रवीण | लहरो गुण भेद लहै लख लावन, लोभाओ लयलीण ॥३३॥ २६. १ २७. ऋषिओमां राजा २८. कहेता २९. धन ३०. १ ३१. उपमा ३२. आश्चर्य कारक ३३. १ ३४. जेना. *अहीं पद्यनो पूर्वार्ध हस्तप्रतमां लखायेलो नथी. 11 30 11 ॥३१॥ ॥ ३२ ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च-२०१९ ॥ ३४॥ ॥ ३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥ ३८॥ श्रुतसागर __22 विरधावत दांन धरम विसेषै, रेलोनै राइपाल । दत डुंगरसीह पुणंतां(?) दाने, पात्रांजन-प्रतिपाल थाप्या गछपत्ति करे वड थापन, हीरो हीराणंद। श्रावक्क सदगुरु बेठे सावन्न, छाजै रूपकछंद कचरो कुलि-मोड२५ कहां कंधोधर, सोभा साहसमाल। डीडाउत दांन तणे गुण दाखां, दोमजि दुट्ठ दुझाल जसवंत तणो मंत्रीसर जोतां, दीपकमाल दीवांण। महिका नै डुंगरसीह मणिमच्छ, एम सपुत्रे आणि दूहो आणीजै ओपम इला, इम साहमी अपार । मुहवन करणी मेरहर७, व्रन्नवि८ ताई वड वार चालि बनवांवड वारे तेजो जिम भाणे, राउत तेम राजेस। भोपतिह रावत क्रित भला एणि, थिर थिरपाल थुणेस राइ रीति तिलोकसी रिधि रूपागर, मेघा साह मल्हार । सुतियागी सूरिजमाल समो भ्रमः एम कमो उद्दार थिरपाल तणो निज नाम थुणतां जांणि जसो जणियार । श्रावक्क समृद्धि प्रसिद्ध सराहै एम घणे अधिकार सहसो सावन्न कहां समदडीये सूरिजमाल सुतन्न। महतीक महासंघमांहि महलखें धीग २ बिन्हे पख धन्न गजमाल गंभीर गुणे करि गाजई सोहै सही सुरतांण। पंचाइण पूरव भाग प्रमाणे माल तणा महिरांण पदमा रूपसीह घणो करि प्रारंभ तोडर रा सुतियाग। दातार वले सुरतांण घणै दत्त भेट्यो मोटै भाग ताइने तलसीह कहां तेजाउत मानस दरो मेह। नेत्तोतिम हीर कन्हावत निमल ओपम न्याइ अछेह ॥३९॥ ॥ ४०॥ ॥४१॥ ॥ ४२ ॥ ॥४३॥ ॥४४॥ ॥ ४५ ॥ ३५. कुलमां मुगट ३६. ? ३७. ? ३८. वर्णवी ३९. सारा त्याग वाळा ४१. ? ४२. ? ४३. निर्मल For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 23 March-2019 ॥ ४६॥ ॥४७॥ ॥४८॥ ॥४९॥ ॥५०॥ ॥५१॥ SHRUTSAGAR अमरो गांगावतनै मानो इम एका एक अबीह४ । भंडारी गोत्र सुजस्स भणंता दाने साजा दीह लाखो राजधर गोवल रा लख, वेलि थिरोवर धन्न । तेलहरा हेम तणो भ्रमत्ते हिव, कहि कुंअरो कलिक्रन्न पृथमी ते सूरिजमाल पुणंता नैकचरो नखत्रैत । मंगलोनै उदो रूपो मोटिम, बंगाणी बिरदैत ६ रतनो दूदराज धेनावत रेणा, क्रम वडा क्रमराज। कचरेसु वारं वार कहीजे, हेत पिता हंसराज निका व्रिद जोइ वखांणा नाथो, पीथाउत प्रमाण । सोभागर साहसमाल ससोभित, भाग वडै कुलिभांण वणवट्टां साखि विशेष वखाणां, रायांसींघ राजेस । लीलाउत साह लहै लीलापति, नूरो न्याइ नरेस नांथो मानावत गादहीये' निधि, दाखि वीरा दसरथ । पातलसीहो सहसेरा पेखइ, हींसल मोकल हत्थ सीमो मेहराज नाथा रासाव्रन्न, श्रावक्क ध्रम्म सधीर । वइरसाल भादाउत वांन विशेषइ, हेत सदगुरु हीर हीरानंदसूरि कहां हितसागर, ओपम जेणि अनेक । सासत्र तरक्क अस्थ१ निपूस्सो, विद्या जाणि'२ विवेक सुललित सिद्धांत वखांण सुधा सम, रीझंता राजेस। पुर पाटण नयर तिके पेखंतां, पूजि करै सुप्रवेस दूहा पधारौ जिहां पूजजी, ओच्छव हुवै अपार । श्रावक मोटा सलहीय, धुरि मेवाड ध्रमधार चालि मेवाड धरा चाणोद्र मल्हावा, मालवीये महिराण। मन्यो जसवत्त मया करि मोटिम, देसपती दीवांण ४४. अद्वितीय ४५. सारा ? ४६. ? ४७. सुंदर ४८. ? ४९. तेज ५०. ? ५१. अर्थ ५२. ? ॥५२॥ ॥ ५३॥ ॥ ५४॥ ॥५५॥ ।। ५६॥ ॥ ५७॥ For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 ॥ ५८॥ ॥ ५९॥ श्रुतसागर मार्च-२०१९ आमेट विहार घणी गुरु आसत्ति २, लागा पाए लोग। दांन सील तपो धन भाउ ४ दया द्रिढ, थायै वंछित थोक कलिपत्तर जेम फलै केलवै, कीध भविकां काज। हीराणंदसूरि घणे हितसागर, राजै श्रीगछराज सेवंतां श्रावक्क कीध सलाभा५५, बीया देस वंदावि। विहार अनक्रम वाट वहंता, एम मेडतै आवि ॥६०॥ राख्या चोमास रूडी परि रूपक्कं, सीमा ओत्तराई ६ सींघ । करतव्य अनेक जियै घरि कीजै, पूजे कोइ न पींघ ७ ॥६१॥ सोभागर पुत्र जियै घरि सोभित, जोतां जोध जुयांण। माता निज तात वखाणां मोटिम, पूर पखे सुप्रमाण ॥६२॥ उदैराज सांगावत जांमलि आवै, दांन तणी विधि दाखि। डागली ए हेम सींघावत दीपक, साह वडा जिम साखि ॥६३॥ राघव(व्व) राजेस जिसो रयणायर, वाधारै गच्छवांन । वड वार चले राइसींघ विसेषां, पुन्यपुरुष प्रधान दुहा पुरुषप्रधान प्रमाण एहि, सीमा रा सहसीह। देव सगुरु सुदसाई गुरु आसत्ति, लागा पाए लोक। दांन सील तपो धन भाऊ दयाद्रि करि, दीपै चढता दीह ॥६५॥* चालि चढता निज दीह कहावै चावा, रेणायर गच्छराज। मुनिराउ महंत मुरद्धर २ मांहे, आपणि महिम्मा आज ॥६६॥ हीराणंदसूरि घणो हेकणवै३, वाचीजै जस वास। वैरागी चारित्रपात्र विनैवंत, आवि पेखो उल्हासि ॥६७॥ गुरुभ्रात कल्याणमंदिर म्रि पांथ्यो६४, सोभागछी सकाज। साध्यां सिणगार उदार उपाध्यो, दाखीजै देवराज ५३. आसक्ति ५४. भाव ५५. लाभ वाळा ५६. उत्तरावी ५७. ? ५८. ? ५९. ? ६०. ? ६१. रत्नाकर, समुद्र ६२. मारवाड ६३. ? ६४. ? ॥ ६४॥ ॥६८॥ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir March-2019 ॥६९॥ ॥ ७० ॥ ॥ ७१ ॥ SHRUTSAGAR 25 डोलै न कदे गिर मेर सुडुंगर, धर्म तणो बल धीर । पूरो परिवार सधार सही परि, हीर अमोलिक हीर हिरणांचै गोत्र जियै कुलि हूओ, भाई पिता भुंणराज। भगतादे मात वखाणि भलप्पण६५, लेखै त्रिहुं पख लाज आचार विचार अधिक अनोपम, दोष करे सब दूरि । सझि पंच सुमति गुपति त्रि साझे, प्राझो ६ पुण्यपडूरि७ सामा सीलवंत स्यंगार करे सझि, गीत सुमंगल गाइ। मुगताफल थाल रे सुमनोहर, एम वधावै आइ तप संयम भेद संगीतैं तेहवओ, गंग तणी परि गात्र । कीरत्ति तणी ए वेलि सुभंकर, पेखि पयंपै पात्र दूहो पात्र सुभंकर इम प्रभणि, संघ चतु सहित सभाओ६८ । श्रीहीराणंदसूरिवर, राज करओ गछराओ ॥ इति श्रीहीराणंदसूरि यसवेलि समाप्ता॥ ॥७२॥ ॥७३॥ ॥ ७४॥ श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे. निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर) ६५. भोळपण ६६. ? ६७. पुण्यनी प्रचूरता ६८. भाव सहित । For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 26 उपाध्याय मेघविजयजी कृत सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राहुल आर. त्रिवेदी गुजराती में कहावत है कि 'तारे ते तीर्थ' अनादि काल से पापाचरण में लिप्त, दिन-रात सांसारिक प्रपंचों में घिरे हुए इस जीव को जीवन की सही दिशा देने व श्रेष्ठ कर्त्तव्य के लिए जाग्रत रखने वाले अनेक तीर्थ हैं । मार्च-२०१९ जहाँ जिनेश्वरों के कल्याणक हूए हों ऐसी भूमि तीर्थ के रूप में पूजी जाती है । ऐसा ही एक शाश्वत तीर्थ है श्रीसम्मेतशिखरजी । जहाँ वर्तमान चौबीसी के २० तीर्थंकर भगवान मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। इस तीर्थ के विषय में अद्यपर्यन्त संस्कृत प्राकृत व देशी भाषा में गद्य व पद्यात्मक बहुत सारी कृतियाँ प्राप्त होती हैं, उनमें से प्रायः अप्रकाशित एक कृति मुनि श्री मेघविजयजी के द्वारा रचित सम्मेतगिरितीर्थ स्तवन प्रकाशित की जा रही है। मुनि श्री मेघविजयजी जब संघ लेकर सम्मेतशिखरजी गए हों, उस समय इस कृति की रचना हुई हो, ऐसा संभव है। इस तीर्थ के बारे में प्रस्तुत कृति में कहा गया है कि- “इम अनंत चउवीसी जिनवर सीधा केवलि देखई रे ।” इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि इसकी यात्रा करने से अविचल राजरमणी एवं अष्टसिद्धि की प्राप्ति होती है। कृति परिचय जनम कृतारथ सारथ शिवनउ परमारथ सवि पामई रे । ए तीरथ भेट्यां सुख संपद लबधि घणी इण ठामें रे ॥ 1 कृति की भाषा मारुगुर्जर है । पद्यबद्ध इस कृति में १४ गाथाएँ हैं । कर्त्ता ने प्रथम गाथा में वर्तमान चौवीसी में निर्वाण प्राप्त हुए बीस तीर्थंकरों को स्मरण कर सम्मेतरशिखर को नमस्कार किया है। उसके बाद बीस तीर्थंकरो का नामोल्लेख कर वंदना की है। गिरिराज के प्राकृतिक वर्णन के साथ किया गया यह महिमा गान साहजिकरूप से भक्तों को प्रभावित करता है । कर्त्ता ने तीर्थ की महिमा वर्णन करते हुए दसवीं गाथा में कहा है कि For Private and Personal Use Only कृति के रचना वर्ष का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, किन्तु लेखन वर्ष वि.सं.१७६९ प्राप्त होने से कृति की रचना उससे पूर्व होना स्वाभाविक है। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 27 March-2019 कर्ता परिचय प्रस्तुत कृति के कर्ता उपाध्याय मेघविजयजी हैं। कृति के अंतर्गत उनकी गुरुपरंपरा तथा गच्छ का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर श्री मेघविजयजी नाम के अनेक विद्वान प्राप्त होते हैं, उनमें तपागच्छीय आचार्य देवसूरिजी की परंपरा में मुनि कृपाविजयजी के शिष्य उपाध्याय मेघविजय ने जैनधर्मदीपक सज्झाय, स्तवनचौवीसी आदि अनेक कृतियों की रचना की है, परन्तु प्रस्तुत कृति के कर्ता भी वे ही है, ऐसा निर्णय नहीं किया जा सकता है। अतः इस कृति के कर्ता के गुरु-गच्छपरंपरा के बारे में संशोधन अपेक्षित है। प्रत परिचय प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, हस्तप्रत ग्रंथागार की प्रति क्रमांक-३७८४९ के आधार पर किया गया है। जिसका लेखन संवत् वि.१७६९ फाल्गुन सुद-३ है व गणि भक्तिविजयजी के पठनार्थ यह प्रति लिखी गई है। लेखन स्थल कृष्णगढ प्राप्त होता है। यह प्रति एक पत्र की है, प्रति में पंक्तिसंख्या ११ एवं प्रतिपंक्ति अक्षरसंख्या ३७ है। प्रत को अंक व दंड को लालस्याही से लिखा गया है। प्रत के अक्षर सुंदर व सुवाच्य हैं । सम्मेतगिरितीर्थस्तवन GO॥ ॥ ॐ ह्रीं अहँ ऐं नमः॥ श्रीसमेतसिखर सिर वंदओ, वीस तिथं(र्थं)कर वारु रे। तीरथ यात्र करी थिर नंदउ, शिव पद लेवा सारु (रे) श्रीसमेतसिखर सिर वंदओ॥आंकणी॥॥१॥ अजित संभव अभिनंदन जिनजी, सुमति पदमप्रभ देवा रे। श्रीसुपासचंद्र प्रभुजी, सुविधि सीतल करुं सेवा रे श्री०....॥२॥ श्री श्रेयांस विमल वांदीजई, अनंत प्रभु धरमा रे। शांति कुंथु अरमली सुव्रत नमि, पारसनाथ गुरु परमा रे श्री०....॥३॥ सिद्ध लही परसिद्धि पमायउ, ए गिरिराज विशेषइं रे। इम अनंत चउवीसी जिनवर, सीधा केवलि देखइं रे श्री०....॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 28 ठाण ठाम परणाम करीजइं, सकल संघ लेई साथइं रे । निश्चय भव्य परम पद पामइं, इम बोल्युं वीरनाथइं रे अचल एह अति ऊंचउ दीसै, सुरगिरि वादो वादहं रे । अविचल राज रमणि ते परणइं, जाणउ जैन प्रसादै रे केवलग्यान लही मुनि मोटा, सिद्ध थया जिन साथई रे । पूजी प्रणमी ध्यांन धरीजइं, अष्टसिद्धि तस हाथइं रे मानव मुगति रमणी वीवाहइं, ए गिरि वेदी बनाइ रे । जिनवर वीस करो तिहां साखी, तस चरणे चित लाई रे श्रीवनवाडी आराम मनोहर, बहु फल फूलइं झूलई रे । साख चलावी जननइ तेडइं, ए अवसर मत भूलइ रे जनम कृतारथ सारथ शिवनउ, परमारथ सवि पामइं रे । ए तीरथ भेट्यां सुख संपद, लबद्धि घणी इण ठामें रे नवपल्लवतरु अरनइं रागई, मानुं वात वतावै रे । राग धरइं जे तीरथ सेती, ते उंचा फल पावइ रे वीस विसा तस महिमा वाधई, वीस भेद श्रुत साधई रे । वीसेंदु के जिन आराध, छूटइं ते अपराधई रे जिनवर मुरति पूरति वंछित, भविजन मोहन दीसइं रे । पगलां सघलां शिव सुख आपइं, थाप्या जे जगदीसइं रे संघ समे समेत महाचल, जे जीन वीसइं वंदई रे । मेघविजय उवझाय भणइं इम, नर ते सुख चिर नंदई रे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मार्च-२०१९ श्री०..........।।५।। श्री०............॥६॥ श्री०............॥७॥ श्री०..........।।८।। to....11811 श्री०.........॥१०॥ श्री०.........॥११॥ श्री०..........।।१२।। श्री०..........॥१३॥ श्री०............॥१४॥ इति श्रीसमेतगिरितीर्थ स्तवनं समाप्ता ।। गणि भक्तिविजय पठनार्थं ॥ संवत १७६९ वर्षे लिखतं कृष्णगढ मध्ये फागुण सुदि ३ दिन लिखतं ।। ।। श्री ।। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 29 SHRUTSAGAR March-2019 गुजराती बोलीमा विवृत अने संवृत ए-ओ चुनीलाल वर्धमान शाह (१) गुजराती बोलीमां ए अने ओ जेवा विवृत (पहोळा) उच्चारो हिंदनी बीजी भाषाओनी तुलनामां मूकतां कांइक विशिष्टतावाळा छ । केटलीक भाषाओमां विवृत उच्चार ज नथी। बंगाळी भाषानो विवृत उच्चार गुजराती विवृत उच्चारथी जूदा प्रकारनो छे; मात्र मारवाडी भाषाना विवृत उच्चारनी साथे ज गुजराती बोलीना विवृत उच्चारनी समानता देखाइ आवे छे; अने ते उपरथी मारवाडी तथा गुजराती प्रजानी उच्चारणपद्धतिमां स्वरो पर वजन मुकवानु केटलुक साम्य होवू जोईए एम प्रथम दृष्टिए ज मालूम पडे छ । गुजराती उच्चारनी विवृततामां बीजां पण कारणोनुं अस्तित्व छे, पण मुख्यत्वे करीने मारवाडी उच्चारणपद्धति अने मारवाडनी पडोशमां ज आवेला गुजरात तथा सौराष्ट्रना केटलाक प्रांतोनी उच्चारणपद्धतिमां एवं साम्य मानवानुं कारण ए छे के सौराष्ट्रना गुजराती भाषा बोलता केटलाक भागोमां विवृत उच्चार बहु थोडो छे। सोरठ, बरडो, मच्छुकांठो अने हालारना केटलाक भागनी प्रजाना उच्चारणमां अने सौराष्ट्रना झालावाड, गोहीलवाड जेवा गुजरातनी सीमात पर आवेला प्रांतोनी प्रजानां उच्चारणोमांजे भिन्नता आ विवृतोच्चारना संबंधमां देखाइ आवे छे, ते भिन्नता दर्शावी आपे छे के गुजराती बोलीना विवृत ऍ अने ऑ मारवाडी विवृत उच्चारोनी साथे ज अस्तित्वमां आव्या होवा जोईए । सौराष्ट्रना जे प्रांतोमां विवृत उच्चारण अल्प छे, तेनी उपर कांईक कच्छी बोलीनी असर देखाय छे; जेमां पण विवृत ऍ अने ऑ नुं स्थान बहु ओछु छे। गुजरातमां अने सौराष्ट्रमां प्रांत भेदे उच्चारण भेद जोवामां आवे छे, त्यां विवृत-संवृत (पहोळा-सांकडा)नो एकसरखो नियम जळवायेलो जणातो नथी। अमदावादमां लेवू शब्द सुरतमां लॅq बोलाय छे; घोडो शब्द सोरठमां बराबर बोलाय छे, त्यारे झालावाडमां घॉडॉ बोलाय छे; गुजरातमां ऍ अने ऍमनुं शब्दो सोरठमां *ए अने एमर्नु तथा झालावाडमां ई अने इमर्नु बोलाय छे,. गुजरातना केटलाक वर्णोना गामडीया पॅसे-बॅसें ने पीशी-बीशी बोले छे, सोरठीओ पेसे-बेसे बोले छे अने झालावाडीओ तथा गुजरातीओ पॅसे-बॅसें बोले छे। तात्पर्य ए छे के विवृत (अने अर्धविवृत पण) तथा संवृत उच्चारोमां प्रांतिक भेदो छे अने ए भेदो स्वरोना उच्चारमा *आ आखा लेखमां बाळबोध लिपिनो शुद्ध ए अने ऐ न वापरतां ए अने ऐ वापर्या छे, कारणके ते आ लेखना वाचनमां सुगम्य छे. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 श्रुतसागर मार्च-२०१९ Accent-प्रयत्नभारनो उपयोग करवामां रहेला भेदोने अवलंबे छ। __(२) साधित गुजराती शब्दनी मध्यमां जे ए अने ओ आवे छे ते अइ-अउ ना प्रतिक छे, परंतु ज्यारे वास्तविक उच्चारणमा स्वरभार-प्रयत्न अ (अइ-अउ) उपर आवे छे त्यारे ते ऍ अने ऑ एम विवृत बने छे अने स्वरभार इ के उ (अइ-अउ) उपर आवे छे त्यारे ते ए अने ओ एम संवृत रहे छे । शब्दने अंते अइ-अउ अर्धविवृत अ-ऑकार ने पामे छ। ____ अपभ्रंश अने जूनी गुजराती बोलीमां शब्दनी मध्यमां जे अइ-अउ होय तेनां वर्तमान गुजरातीमां संवृत-विवृत ए-ओ बन्या छे; ए ज स्वरयुग्मो व्रजभाषामां, हिंदीमां अने मारवाडीमां संवृत रूपे ए-ओ अने विवृतरूपे ऐ-औ बने छ । जे गुजराती शब्दोनुं मूळ अपभ्रंश के जूनी गुजरातनी होतुं नथी, पण देश्य, फारसी के उर्दू शब्दो होय छे, ते मूळ शब्दोमांज्यां अय्-अव् होय छे परन्तु गुजरातनी उच्चारणमां अइ-अउ किंवा ऐ-औ प्रचलित थया होय छे, त्यां पण अपभ्रंश तथा जूनी गुजरातीनी पेठे जे विवृतोच्चारनो उपरनो नियम काम करे छे। थोडां उदारहणो ए नियमने स्पष्ट करशे। (क्रमशः) राष्ट्रसंत प.पू. आचार्यश्री पद्मसागरसूरिजी म.सा. की विहार यात्रा गाँव कि.मी. | दिनांक हरीयाणा | १ | फरीदाबाद ९ १९ से २०-०३-१९ दिल्ली मोहनबाबा नगर १२ | २१-०३-१९ महरौली १४ | २२-०३-१९ | चांदनी चौक (दिल्ली) ६ २३-०३ से ०३-०४-१९ | साउथ एक्स १२ | ०४-०४-१९ | महरौली ९ ०४-०४-१९ (शाम) ७ घिटोरजी ६ । गुड गाँव १५ ०५ से ०६-०४-१९ | शिकोहचुर १५ ०७-०४-१९ १० मानेसर ९ ०७-०४-१९(शाम) (अनुसंधान पृष्ठ ३४ पर) For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 31 March-2019 पुस्तक समीक्षा कर्ताः ३३६ रामप्रकाश झा पुस्तक नाम: कवि मोहनविजयजी 'लटकाला' डॉ. सीमा रांभिया प्रकाशकः विवेकग्राम प्रकाशन, मांडवी (कच्छ) कुल पृष्ठः मूल्य: ६००/भाषा: गुजराती गुजराती साहित्य को समृद्ध करने में जैन कवियों का बहुमूल्य योगदान रहा है। परम पूज्य आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य से प्रारम्भ हुआ यह जैन साहित्य का प्रवाह अद्यपर्यन्त अस्खलित रूप से निरन्तर आगे बढ़ता रहा है। वे साहित्य गद्य-पद्यरूप अनेक प्रकारो में पाये जाते हैं। पद्य कृतियों में रास, ढाल, गीत सज्झाय, चरित्र, कथा आदि रचनाएँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं। इन रचनाओं में जैन चरित्र, रास व कथा ऐसी रचनाएँ हैं, जिनमें मध्यकालीन गुजराती साहित्य का वास्तविक परिचय प्राप्त होता है। कवि मोहनविजयजी समग्र मध्यकालीन साहित्य में एक विशिष्ट कवि के रूप में लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति हैं। जैन साहित्य में तो इनका विशिष्ट स्थान है ही, परन्तु गुजराती मध्यकालीन जैन साहित्य में भी इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत परम्परा का गहन अभ्यास, अलंकारों का सहज विनियोग, भावों की रसार्द्रता तथा सहज वक्रोक्ति के कारण उन्होंने लोक हृदय में लटकाला' का उपनाम प्राप्त किया है। उनके काव्यों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि उन्होंने संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का भी अभ्यास किया था। उनकी काव्यसम्पदा में छः से अधिक रास व चौबीसी तथा अनेक छोटे-मोटे स्तवन हैं। उनके द्वारा रचित रासों में मुख्य रूप से चंदराजानो रास' प्रसिद्ध है। जैन कथानकों में प्रसिद्ध धीरोदात्त कथानायक चंदराजा के पराक्रम तथा विविध परिस्थितियों में अनुभव किए गए भाग्य विपर्यय की कथा है। साथ ही कुटिल स्त्रीचरित्र के साथ पति के लिए प्राण अर्पण करनेवाली नारी के उदात्त स्त्रीचरित्र का भी आलेखन किया गया है। चंदराजा की इस कथा को मोहनविजयजी 'लटकाला' ने शृंगार, वीर आदि अनेक रसों से सुन्दर रूप से सजाया है। इस समग्र रास का अध्ययन, उनकी कथा प्रकृतिओं का अध्ययन तथा इस कथा से सम्बन्धित अन्य कृतियों का भी डॉ. सीमा रंभिया ने गहन For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 श्रुतसागर मार्च-२०१९ अध्ययन किया है। इसके अतिरिक्त मानतुंग मानवती, रत्नपाल आदि अन्य कथाओं का सुन्दर अध्ययन भी इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। मानतुंग मानवती में मृषावाद के परिहार की कथा है। इस अध्ययन में समाविष्ट सभी रासों की कथाओं का कथाघटक की अर्वाचीन दृष्टि से किया गया अध्ययन भी उल्लेखनीय है। प्रस्तुत पुस्तक डॉ. सीमा रांभिया के द्वारा कवि श्री मोहनविजयजी म. सा. 'लटकाला' की पद्यरचनाओं से सम्बन्धित एक शोध निबन्ध है। इस पुस्तक के प्रथम प्रकरण में मध्यकालीन गुजराती साहित्य का परिचय देते हुए कवि मोहनविजयजी का जीवनचरित्र प्रस्तुत किया गया है। दूसरे प्रकरण में 'पुण्यपाल-गुणसुन्दरी' का सम्पादन उनके संशोधन का शिखर कहा जा सकता है। भाग्य विपर्यय की यह कथा जैन परम्परा के भावकों को श्रीपाल-मयणा की कथा का स्मरण कराती है। तीसरे प्रकरण में पुण्यपाल गुणसुन्दरी रास' का अध्ययन तथा चौथे अध्ययन में चंदराजानो रास' का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। पाँचवें प्रकरण में 'रत्नपाल रास, 'मानतुंग मानवती रास' तथा 'नर्मदासुंदरी रास' का अध्ययन तथा अन्त में 'हरिवाहनराजानो रास' का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। छठे अध्ययन में चोवीसी तथा अन्य गौण कृतियों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। अंत में परिशिष्ट के अन्तर्गत कवि मोहनविजयजी कृत विजयधर्मसूरिविज्ञप्तिपत्र' का परिचय प्रस्तुत किया गया है तथा सन्दर्भसूची दी गई है। __ इस पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरणपृष्ठ पर छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुम्बई में संरक्षित एक सचित्र हस्तप्रत का आकर्षक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार आवरण पृष्ठ कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। पुस्तक में जगह-जगह काव्यग्रन्थों का मूल पाठ प्रस्तुत किए जाने के कारण प्रकाशन बहूपयोगी सिद्ध होता है। इस पुस्तक के माध्यम से कवि मोहनविजयजी लटकाला तथा उनकी कृतियों के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनाओं की प्राप्ति हुई है। इस प्रकार लेखिका का यह शोधग्रन्थ मध्यकालीन गुजराती साहित्य के ऊपर अध्ययन करनेवाले विद्वानों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा। लेखिका का संशोधनात्मक अभ्यास निरन्तर जारी रहे ऐसी शुभेच्छा है। विद्वद्वर्ग, संशोधक तथा अन्य जिज्ञासुजन इस प्रकार के उत्तम प्रकाशनों से लाभान्वित होंगे। अन्ततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रस्तुत प्रकाशन जैन साहित्य के जिज्ञासुओं को प्रतिबोधित करता रहेगा। इस कार्य की सादर अनुमोदना। For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 33 March-2019 SHRUTSAGAR समाचारसार पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के द्वारा शौरीपुर तीर्थ में श्री नेमिनाथ भगवान की भव्य प्रतिष्ठा प्रभु नेमिनाथ की च्यवन एवं जन्मकल्याणक भूमि श्री शौरीपुरतीर्थ की पावन धरा पर जीर्णोद्धार स्वरूप नवनिर्मित भव्य जिनप्रासाद में श्री नेमिनाथ भगवान आदि की प्रतिष्ठा महोत्सव दि. २१-२-२०१९, फाल्गुन कृष्णपक्ष-२ से दि. २४-२-२०१९ तक समारोहपूर्वक मनाया गया। योगनिष्ठ पू. आ. श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजा के दिव्याशीष एवं तपागच्छाधिपति श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी महाराजा के शुभाशीष से शौरीपुर तीर्थोद्धारक राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा, ज्योतिर्विद् पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी म. सा. आदि श्रमणश्रमणीवृंद की पावन निश्रा में चार दिवसीय महोत्सव भव्य उल्लास के साथ मनाया गया। महोत्सव के प्रथम दिन दि. २१-२-२०१९ गुरुवार को प्रातः ८.०० बजे द्वारिका नगरी, भरत चक्रवर्ती भोजनखंड तथा अतिथिनगर का लाभार्थियों के द्वारा लोकार्पण हुआ। प्रातः ९.३० बजे महाप्रभावी श्री सिद्धचक्र महापूजन और रात्रि में परमात्मा की भक्ति भावना हुई। महोत्सव के दूसरे दिन दि. २२-२-२०१९ शुक्रवार के दिन प्रातः १०.३० बजे राष्ट्रसन्त पू. आ. श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा का हृदयस्पर्शी प्रवचन, दोपहर १२.३९ बजे दशदिग्पाल पूजन, नवग्रह पूजन, अष्टमंगल पूजन, श्री क्षेत्रपाल पूजन तथा श्री लघु नंदावर्त पूजन किया गया। रात्रि में हर्षोल्लास के साथ परमात्मा की भक्ति की गई। ____ महोत्सव के तीसरे दिन दि. २३-२-२०१९ शनिवार को प्रातः ८.३० बजे प्राचीन व नवीन सभी जिनबिम्बों, परमात्मा की चरणपादुका, देव-देवियों की प्रतिमा तथा दण्डकलश आदि का अभिषेक विधान, दोपहर ३.०० बजे सांझी व मेंहदी विचरण और सन्ध्याकाल शुभमुहूर्त में चैत्य अभिषेक एवं प्रासादपुरुष की स्थापना की गई। रात्रि में परमात्मा की भक्ति-भावना में संगीतकार राजीव विजयवर्गी ने अपने कर्णप्रिय संगीत के द्वारा उपस्थित जन समुदाय को मन्त्रमुग्ध कर दिया। ___महोत्सव के चौथे दिन दि. २४-२-२०१९ रविवार को प्रातः शुभवेला में माणक स्तम्भ व मंगल तोरण की स्थापना की गई। तत्पश्चात् प्रातः ६.३० बजे शौरीपुर के मूलनायक श्री नेमिनाथ परमात्मा की प्रतिष्ठा की गई, साथ में देव-देवी, ध्वजदण्ड तथा कलश का भी प्रतिष्ठा विधान किया गया। १०.३० बजे सेठ श्री संवेगभाई लालभाई की ओर से For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१९ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह, श्री शंखेश्वरतीर्थ के ट्रस्टी श्री श्रीयकभाई शाह तथा श्री सुरेन्द्रसिंहजी जैन (मुन्नाबाबू) के हाथों कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची, भाग-२७ का विमोचन किया गया। दोपहर १२.३९ बजे महामंगलकारी बृहद् अष्टोत्तरी शान्तिस्नात्र महापूजन और रात्रि में परमात्मा की भक्ति की गई। महोत्सव के पाँचवें दिन दि. २५-२-२०१९ सोमवार को प्रातः शुभ मुहूर्त में द्वारोद्घाटन किया गया। ८.३० बजे सत्तरभेदी पूजा व रात्रि में परमात्मा की भक्ति भावना की गई। दि. २६-२-२०१९ को पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने शिष्यपरिवार के साथ श्री शौरीपुरतीर्थ से विहार किया। दि. ६-३-२०१९ को पूज्य आचार्यश्री का श्री स्थानकवासी जैन भवन, आगरा में पदार्पण हुआ। जहाँ पूज्यश्री ने अपने भाववाही प्रवचनों के द्वारा उपस्थित जनसमुदाय को मन्त्रमुग्ध कर दिया। (अनुसंधान पृष्ठ ३० से) | क्रम | गाँव ११ अदरापर तीर्थ १२ | थारूहेडा १३ | साहलाबास १४ बावल १५ | शाहजहाँपुर | नीमराना १७ | बहरोड़ १८ | कोटपुतली पावटा २० भाबरू २१ | शाहपुरा २२ | मनोहरपुरा २३ |पंसारी फार्म २४ | बोहरा अरिहंत फार्म कि.मी. | दिनांक १० ०८-०४-१९ १० ०८-०४-१९(शाम) १८ ०९-०४-१९ १० ०९-०४-१९(शाम) १६ |१०-०४-१९ ९ |१०-०४-१९(शाम) | ११-०४-१९ | १२-०४-१९ १२-०४-१९(शाम) |१३-०४-१९ | १४-०४-१९ १० १४-०४-१९(शाम) १६ १५-०४-१९ ८ १६-०४-१९ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानसार पुस्तक का विमोचन करते हुए श्री प्रकाशभाई वसा, श्रीमान् वीरेन्द्रसिंहजी बुरड, श्री किरणभाई जैन, श्री सुरेशभाई देवचंद आदि पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज के साथ दिगम्बर मुनि श्री चैत्यसागरजी न्यु राजामंडी, आगरा ग्रंथ विमोचन के प्रसंग पर उपस्थित जनसमुदाय पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज द्वारा श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा में संघ को सम्बोधन श्री महावीरालय, कोबा की सालगिरह के । निमित्त किया गया ध्वजारोहण पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज द्वारा स्थानकवासी जैनसंघ को सम्बोधन 35/ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No. GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City So, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. OTIRT शौरीपुरतीर्थ में श्री नेमिनाथ भगवान के च्यवनकल्याणक व जन्मकल्याणक भूमि पर नवनिर्मित जिनालय BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स (079) 23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& ndhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only