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श्रुतसागर
मार्च-२०१९ उपाध्याय स्वरूपचंदकृत ऋषभजिन स्तुतिलहरी
भरत टी. जोशी प्रस्तावना
मोक्षप्राप्तिना विविध मार्गोमां भक्तिमार्ग सरळ अने सर्वोपयोगी छे। भक्तिने मुक्तिनी दूती कहेली छे । प्रभुभक्ति प्रगट करवामां प्राचीन तीर्थो सबल आलंबनरूप छे। तेमा पण शत्रुजयतीर्थ सर्वतीर्थोमां शिरोमणि अने शाश्वत छ। तेमा बिराजमान आ अवसर्पिणी काळना शिल्प, कला अने संस्कृतिना आद्य स्थापक, प्रथम राजा, प्रथम तीर्थंकर श्रीआदिनाथ भगवान बिराजमान छ । जेमनी भक्ति युगोथी, असंख्य वर्षोथी थती आवी छ। फागण सुद तेरस, कार्तिक पूर्णिमा जेवा दिवसोए विशेष भक्तोनी ज्यां भीड रहेती होय छे। तेवा आदिनाथ दादानी भक्ति प्रस्तुत कृतिमां कर्ताए करी छे । मात्र भक्ति ज नहीं पण रीतसर तेनी लहेर चलावी छ । कृतिना शब्दो, वाक्यो, रचना अने रचनागत विषय वाचकने तेनी लहेरमां ताण्या विना नथी रहेता. आम आ कृतिना नाममा रहेल लहरी' शब्द सार्थक सिद्ध थाय छे । काव्य प्रकारोमां 'लहरी' प्रकारबद्ध मळी आवती कृतिओमां देशी करतां संस्कृतभाषाबद्ध अने तेमां पण पद्यमय अने शिखरिणी जेवा छंदोमां वधु जोवा मळे छ । एवी ज एक कृति ‘आदिजिन स्तुतिलहरी' प्रस्तुत करवामां आवी रही छे । कृति परिचय ____ श्री शत्रुजयतीर्थनुं माहात्म्य दर्शावती श्रीऋषभदेव भगवाननी आ पद्यमय स्तुति छ । आ रचना संस्कृत भाषामां ४४ श्लोकोमां अनुष्टुप अने शिखरिणी जेवा छंदोथी सुशोभित छ । प्रारंभमां कर्ताए श्रीअरिहंत, सद्गुरु तथा शलुंजयाधिपति श्रीआदिनाथ भगवाननु स्मरण करेल छे. तत्पश्चात् भरतचक्री द्वारा करेल यात्रादिनुं वर्णन, तीर्थना १७ उद्धारोनी वात अने अंते आ स्तुतिलहरीनी फलश्रुति तथा भक्तिनो महिमा वर्णवेल छ । फलश्रुतिमां कर्ता कहे छे के आ स्तुतिलहरीनो जे कोई सवारमां नित्य पाठ करशे तेने भवे-भवे ज्ञान-लक्ष्मी अने मंगलनी प्राप्ती थशे । भक्ति माटे जणाव्यु के भक्ति ज्ञानप्रदा, मोक्षनी दाता अने सर्वसिद्धिकरि छ । आवी भक्ति मंगलने करनारी थाओ। प्रस्तुत कृतिनुं लेखन वि.सं. १९०७ मां कर्ताए स्वयं पोताना हाथे कर्यानो उल्लेख मळतो होवाथी तेनी रचना पण ते समये थई होय तेम कही शकाय।
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