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SHRUTSAGAR
31
March-2019
पुस्तक समीक्षा
कर्ताः
३३६
रामप्रकाश झा पुस्तक नाम: कवि मोहनविजयजी 'लटकाला'
डॉ. सीमा रांभिया प्रकाशकः
विवेकग्राम प्रकाशन, मांडवी (कच्छ) कुल पृष्ठः मूल्य:
६००/भाषा:
गुजराती गुजराती साहित्य को समृद्ध करने में जैन कवियों का बहुमूल्य योगदान रहा है। परम पूज्य आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्य से प्रारम्भ हुआ यह जैन साहित्य का प्रवाह अद्यपर्यन्त अस्खलित रूप से निरन्तर आगे बढ़ता रहा है। वे साहित्य गद्य-पद्यरूप अनेक प्रकारो में पाये जाते हैं। पद्य कृतियों में रास, ढाल, गीत सज्झाय, चरित्र, कथा आदि रचनाएँ विपुल मात्रा में पाई जाती हैं। इन रचनाओं में जैन चरित्र, रास व कथा ऐसी रचनाएँ हैं, जिनमें मध्यकालीन गुजराती साहित्य का वास्तविक परिचय प्राप्त होता है।
कवि मोहनविजयजी समग्र मध्यकालीन साहित्य में एक विशिष्ट कवि के रूप में लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति हैं। जैन साहित्य में तो इनका विशिष्ट स्थान है ही, परन्तु गुजराती मध्यकालीन जैन साहित्य में भी इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। संस्कृत परम्परा का गहन अभ्यास, अलंकारों का सहज विनियोग, भावों की रसार्द्रता तथा सहज वक्रोक्ति के कारण उन्होंने लोक हृदय में लटकाला' का उपनाम प्राप्त किया है। उनके काव्यों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि उन्होंने संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का भी अभ्यास किया था।
उनकी काव्यसम्पदा में छः से अधिक रास व चौबीसी तथा अनेक छोटे-मोटे स्तवन हैं। उनके द्वारा रचित रासों में मुख्य रूप से चंदराजानो रास' प्रसिद्ध है। जैन कथानकों में प्रसिद्ध धीरोदात्त कथानायक चंदराजा के पराक्रम तथा विविध परिस्थितियों में अनुभव किए गए भाग्य विपर्यय की कथा है। साथ ही कुटिल स्त्रीचरित्र के साथ पति के लिए प्राण अर्पण करनेवाली नारी के उदात्त स्त्रीचरित्र का भी आलेखन किया गया है। चंदराजा की इस कथा को मोहनविजयजी 'लटकाला' ने शृंगार, वीर आदि अनेक रसों से सुन्दर रूप से सजाया है। इस समग्र रास का अध्ययन, उनकी कथा प्रकृतिओं का अध्ययन तथा इस कथा से सम्बन्धित अन्य कृतियों का भी डॉ. सीमा रंभिया ने गहन
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