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March-2019
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SHRUTSAGAR
25 डोलै न कदे गिर मेर सुडुंगर, धर्म तणो बल धीर । पूरो परिवार सधार सही परि, हीर अमोलिक हीर हिरणांचै गोत्र जियै कुलि हूओ, भाई पिता भुंणराज। भगतादे मात वखाणि भलप्पण६५, लेखै त्रिहुं पख लाज आचार विचार अधिक अनोपम, दोष करे सब दूरि । सझि पंच सुमति गुपति त्रि साझे, प्राझो ६ पुण्यपडूरि७ सामा सीलवंत स्यंगार करे सझि, गीत सुमंगल गाइ। मुगताफल थाल रे सुमनोहर, एम वधावै आइ तप संयम भेद संगीतैं तेहवओ, गंग तणी परि गात्र । कीरत्ति तणी ए वेलि सुभंकर, पेखि पयंपै पात्र
दूहो पात्र सुभंकर इम प्रभणि, संघ चतु सहित सभाओ६८ । श्रीहीराणंदसूरिवर, राज करओ गछराओ
॥ इति श्रीहीराणंदसूरि यसवेलि समाप्ता॥
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श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं अथवा किसी महत्त्वपूर्ण कृति का नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, जिसे हम अपने अंक के माध्यम से अन्य विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादनकार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? इस तरह अन्य विद्वानों के श्रम व समय की बचत होगी और उसका उपयोग वे अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों के सम्पादन में कर सकेंगे.
निवेदक सम्पादक (श्रुतसागर)
६५. भोळपण ६६. ? ६७. पुण्यनी प्रचूरता ६८. भाव सहित ।
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