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॥ ५८॥
॥ ५९॥
श्रुतसागर
मार्च-२०१९ आमेट विहार घणी गुरु आसत्ति २, लागा पाए लोग। दांन सील तपो धन भाउ ४ दया द्रिढ, थायै वंछित थोक कलिपत्तर जेम फलै केलवै, कीध भविकां काज। हीराणंदसूरि घणे हितसागर, राजै श्रीगछराज सेवंतां श्रावक्क कीध सलाभा५५, बीया देस वंदावि। विहार अनक्रम वाट वहंता, एम मेडतै आवि
॥६०॥ राख्या चोमास रूडी परि रूपक्कं, सीमा ओत्तराई ६ सींघ । करतव्य अनेक जियै घरि कीजै, पूजे कोइ न पींघ ७
॥६१॥ सोभागर पुत्र जियै घरि सोभित, जोतां जोध जुयांण। माता निज तात वखाणां मोटिम, पूर पखे सुप्रमाण
॥६२॥ उदैराज सांगावत जांमलि आवै, दांन तणी विधि दाखि। डागली ए हेम सींघावत दीपक, साह वडा जिम साखि
॥६३॥ राघव(व्व) राजेस जिसो रयणायर, वाधारै गच्छवांन । वड वार चले राइसींघ विसेषां, पुन्यपुरुष प्रधान
दुहा पुरुषप्रधान प्रमाण एहि, सीमा रा सहसीह। देव सगुरु सुदसाई गुरु आसत्ति, लागा पाए लोक। दांन सील तपो धन भाऊ दयाद्रि करि, दीपै चढता दीह
॥६५॥* चालि चढता निज दीह कहावै चावा, रेणायर गच्छराज। मुनिराउ महंत मुरद्धर २ मांहे, आपणि महिम्मा आज
॥६६॥ हीराणंदसूरि घणो हेकणवै३, वाचीजै जस वास। वैरागी चारित्रपात्र विनैवंत, आवि पेखो उल्हासि
॥६७॥ गुरुभ्रात कल्याणमंदिर म्रि पांथ्यो६४, सोभागछी सकाज। साध्यां सिणगार उदार उपाध्यो, दाखीजै देवराज ५३. आसक्ति ५४. भाव ५५. लाभ वाळा ५६. उत्तरावी ५७. ? ५८. ? ५९. ? ६०. ? ६१. रत्नाकर, समुद्र ६२. मारवाड ६३. ? ६४. ?
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