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SHRUTSAGAR
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महंत महेसरसूरि मुणंतां, रूपक२६ तो रिषराव" । सोभाग घणो श्री अजितदेवसूरि, पाटि प्रतप्यई प्रभाव संवत्त पनर त्रेयाणूं(१५९३) वरसै, क्रिया-उद्धारह कीध । लाख लोक वडा जिणि पाइ लिगाडी, लाभ घणो जिणि लीध आराधि जिण ध्रम कीध अणसण, एकण चित्त ओदार । पूगै क्रम दीह संजोगसु पाम्यो, इंद्रपुरी अवतार
जिणि पाटि विगत्ति जुगत्तिसुं जोता, हीर अमोलक हीर । अचरिज्ज किसो इणि गछि आखां (खं) ता", वीरह रे हुअ वीर संवत सोल अने अडलै (१६०८), तेण संवच्छर तांम । सुदि चैत्रसु पांचमि दीह पवित्तसु, कीध महोत्सव कांम संघनायक श्रीनगराजसी माउत, पद-ठवणा प्रारंभ । निज पाली नयर गरत्थ” निहस्से, ओप्पम" कीध असंभ३२
दूहा
.३३
ओपम इणि विधि आणीयै, मालवी ए मुहवन्न । हैं सलमल लीलाहरो, जंपै याचिक जन्न
चालि जंपै याचिग घणो जस जांणै, आंगै बिरुद अनंत । हीरानंदसूरिस कहां संघनायक, कीध उदैपुण कम्म
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March-2019
॥२२॥
॥२३॥
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।। २५ ।।
॥२६॥
॥। २७ ॥
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॥२९॥
वछराज सूजावत्त दांन विसेषै न्याइ नवै खंड नाम महिको मणिमत्थ(च्छ?) कहंतां मोटिम, पाटोधर जै पुत्र, लखणे लावण्ण अखूट लिखम्मी, सांमि धरम्म ससूत्र भाई राईसिंघ जियैरै३४ भालिम्म, जांणीजै वलि जैत, खिति खेतलसीह घणो जस खाटे, वहै सुबोल वहैंत नगराज सुतन कृसन्न कहां निज, पाटि औद्धो (द्धा) र प्रवीण |
लहरो गुण भेद लहै लख लावन, लोभाओ लयलीण
॥३३॥
२६. १ २७. ऋषिओमां राजा २८. कहेता २९. धन ३०. १ ३१. उपमा ३२. आश्चर्य कारक ३३. १ ३४. जेना. *अहीं पद्यनो पूर्वार्ध हस्तप्रतमां लखायेलो नथी.
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॥३१॥
॥ ३२ ॥